भारत अगर प्रतिदिन 56 लाख खुराक की औसत रफ्तार बरकरार रख लेता है, तो वह अपनी पूरी वयस्क आबादी का इस साल नवंबर तक कोविड के टीके की कम से कम एक खुराक के साथ टीकाकरण कर सकता है। 17 सितंबर को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन वाले सप्ताह के आखिर में, जब देश में रिकॉर्ड 2.5 करोड़ खुराक दी गई थीं, तब प्रतिदिन दी जाने वाली पहली खुराक का औसत 56 लाख रहा।
हालांकि अगर हम उस असाधारण दिन को अलग रखते हैं, तो एक दिन पहले (16 सितंबर) तक प्रतिदिन दी जाने वाली पहली खुराक का साप्ताहिक औसत लगभग 43 लाख था। अगर देश इसी रफ्तार को कायम रख लेता है, तो दिसंबर की शुरुआत तक पात्र आबादी के लिए पहली खुराक का टीकाकरण कर लिया जाएगा।
जहां एक ओर 65 प्रतिशत लोगों ने अब तक टीके की पहली खुराक प्राप्त कर ली है, वहीं दूसरी ओर 23 प्रतिशत लोगों का पूर्ण टीकाकरण हो चुका है। कोविशील्ड के लिए खुराक के अधिकतम चार महीने के अंतराल की वजह से आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस साल के अंत तक दूसरी खुराक के लिए भी पात्र नहीं होगा।
इसलिए सभी को पहली खुराक मिलने के तीन से चार महीने बाद पूर्ण टीकाकरण संभव है। अगर सरकार अक्टूबर से बच्चों के टीकाकरण के साथ आगे बढऩे का फैसला करती है, तो 12 वर्ष से अधिक आयु वाली आबादी को इस साल के अंत तक एक खुराक दी जा सकती है। अगर नाक वाले टीके को मंजूरी मिल जाती है, तो बच्चों को टीका लगाने की कवायद को काफी बढ़ावा मिल सकता है। इसके अलावा और टीका लगाने वालों को और अधिक प्रशिक्षित करना तथा और अधिक टीकाकरण स्थलों को खोलने से टीकाकरण में इजाफा हो सकता है। 17 सितंबर को देश भर में 1,10,597 टीकाकरण स्थल सक्रिय थे।
जब तक देश हर रोज रिकॉर्ड 1.3 करोड़ लोगों को पहली खुराक देने का प्रबंधन नहीं कर लेता, जैसा उसने 17 सितंबर को किया था, तब तक दो खुराक वाले टीकाकरण में अप्रैल 2022 तक विस्तार किया जा सकता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा है कि देश को अति संवदेनशील आबादी के पूर्ण टीकाकरण को प्राथमिकता देनी चाहिए। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के श्रीनाथ रेड्डी ने कहा ‘टीके की प्रतिरक्षा कुछ महीनों में कम होने लगेगी। अति संवेदनशील और 45 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लोगों में दो खुराक वाले टीकाकरण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। तब हम अपने तरीके से काम कर सकते हैं, और साथ ही बाकी लोगों में भी एक खुराक के साथ कुछ स्तर की सुरक्षा रहेगी।’ स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि देश में कई लोगों ने प्राकृतिक संक्रमण के जरिये रोग प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर ली है, भले ही यह लंबे समय तक न चल सके। लेकिन जब तक टीके से बचने की क्षमता या अधिक संक्रामकता वाली कोई नई किस्म नहीं आती, तब तक आबादी अगले कुछ महीनों तक अच्छी तरह से सुरक्षित रहेगी।
