बीएस बातचीत
केंद्र सरकार की ओर से वाणिज्यक खनन और बिक्री के लिए कोयला खदानों की नीलामी की घोषणा के बाद खदान वाले राज्यों ने कुछ आपत्तियां की हैं। कुछ ने पर्यावरण का मसला उठाया है। श्रेया जय से बातचीत में केंद्रीय कोयला, खदान व संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने इस मसले पर बात की। प्रमुख अंश
महामारी और मंदी के बीच केंद्र ने कोयले के वाणिज्यिक खनन पर आगे बढऩे का फैसला क्यों किया?
कोयले के वाणिज्यिक खनन का विचार अभी का नहीं है। यह पहले से चल रहा है और प्रधानमंत्री ने इसे आत्मनिर्भर भारत पैकेज का हिस्सा बनाया है। इसके पहले हमने राज्यों व अन्य हिस्सेदारों से कई दौर की बात की। मेरे अनुसार यह सबसे बेहतर वक्त है और हिस्सेदारों की ओर से हमें बेहतर प्रतिक्रिया मिलेगी। कुछ छोटे मसले आए हैं। हम महाराष्ट्र के एक इको सेंसिटिव जोन में आने वाली खदान को बदल रहे हैं। ऐसे में नीलामी की प्रक्रिया 30 दिन और बढ़ सकती है। वास्तविक प्रक्रिया में 90 से 120 दिन लगते हैं। उत्पादन के लिए तैयार खदानों के परिचालन में 7-9 महीने और लगते हैं।
पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र और नो गो एरिया को लेकर राज्यों व विपक्षी दलों ने चिंता जताई है? क्या आप मौजूदा सूची की खदानों में और बदलाव करेंगे?
संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान नो-गो एरिया की अवधारणा थी। उन्होंने खुद इसे त्याग दिया था। श्री जयराम रमेश ने ही नो-गो एरिया में अनुमति दी थी। अब कम, मझोले व उच्च संरक्षण क्षेत्र हैं। उच्च संरक्षण क्षेत्रों में ज्यादा प्रतिबंध होंगे, लेकिन खनन को अनुमति होगी।
पर्यावरण पर असर के आकलन को लेकर राज्यों ने चिंता जताई गई है?
जब सफल बोलीकर्ता का चयन हो जाता है उसके बाद वह पर्यावरण संबंधी मंजूरी के लिए जाता है। उसे वास्तविक खनन के लिए पर्यावरण मंजूरी की जरूरत होती है। संबंधित राज्य के विभाग से बात करके पर्यावरण मंत्रालय खदान के आवंटन के बारे में फैसला करेगा। यह प्रक्रिया है।
मैंने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के साथ बात की है और उन्होंने 4 खदानों को लेकर समस्या बताई है। मैंने उनसे कहा है कि विचार विमर्श हो सकता है। अगर राज्य सरकार कहेगी तो हम उन खदानों को हटा देंगे। हम चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ समृद्ध हो। खनन वाले राज्यों झारखंड व छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने वाणिज्यिक खनन का समर्थन किया है।
राज्यों का राजस्व अधिकतम करने के लिए केंद्र क्या कर रहा है? कोयला नियामक की क्या स्थिति है?
जो भी राजस्व आएगा, वह राज्यों को जाएगा। शुरुआत में एक कोल इंडेक्स होगा और उसके बाद नियामक होगा। कोयला नियामक की प्रक्रिया चल रही है और इसमें कुछ वक्त लगेगा।
सरकार का अनुमान है कि आने वाले दशक में कोयले की मांग घटेगी। ऐसी स्थिति में वाणिज्यिक खनन कितना सही है? क्या जलवायु परिवर्तन बाध्यताओं पर असर नहीं होगा?
चीन 3.5 अरब टन कोयले का उत्पादन कर रहा है। हम अभी करोड़ बात कर रहे हैं। वे कोयला उत्पादन कर रहे हैं और पर प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत में इससे ज्यादा जला रहे हैं। अमेरिका तेल का भी उत्पादन कर रहा है। यह सभी देश जीवाश्म ईंधन जला रहे हैं और वे हमें जलवायु परिवर्तन का उपदेश नहीं दे सकते। हम जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धताओं पर काम कर रहे हैं, जो हमने वैश्विक स्तर पर की है। वहीं हम अपने राष्ट्रीय संसाधनों का अपने ऊर्जा सुरक्षा में भी इस्तेमाल कर रहे हैं। देश के गरीब लोगों को सस्ती दर पर बिजली देने की भी जिम्मेदारी हम पर है।
कोल इंडिया लिमिटेड ने खनन क्षेत्र में करोड़ों पौधे लगाए हैं। मॉनसून के दौरान 18 वर्गकिलोमीटर इलाके में 25 लाख पौधे लगाए जाएंगे। निजी कारोबारियों की भी पर्यावरण को लेकर जिम्मेदारी होगी।
हम कोल गैसीफिकेशन और लिक्विफिकेशन, कोल बेड मीथेन का भी इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे कम प्रदूषण होता है।
कुल कितने कोयला उत्पादन का अनुमान है?
मुझे लगता है कि 1 से 1.2 अरब टन उत्पादन होगा।