भारत और चीन के बीच गतिरोध को कई उद्योग एवं बाजार विशेष घरेलू बिजली उपकरण विनिर्माताओं और पूंजीगत वस्तु कंपनियों के लिए एक अवसर के तौर पर देख रहे हैं। आयात कम करने और चीन पर निर्भरता घटाने से भारत में बिजली उपकरण बनाने वाली कंपनियों के लिए संभावनाएं बढ़ सकती हैं। यही कारण है कि एबीबी, सीमेंस, लार्सन ऐंड टुब्रो, थर्मेक्स आदि कंपनियों के शेयरों में जून के निचले स्तर के बाद 25 फीसदी तक की उल्लेखनीय बढ़त दर्ज की गई है।
हालांकि विशेषज्ञों ने सतर्क रुख अपनाया है। उनका कहना है कि भले ही इससे घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में चीन की कंपनियों को टक्कर देने के लिहाज से घरेलू कंपनियों के लिए क्षमता बढ़ाने के अवसर खुलेंगे लेकिन जहां तक उपकरणों और कलपुर्जों के आयात का सवाल है तो कुछ क्षेत्रों में अभी सीमित विकल्प हैं। ऐसे में आयात को अचानक बंद कर देने से व्यवधान पैदा हो सकता है। वित्त वर्ष 2010 के बाद भारत में स्थापित ताप बिजली परियोजनाओं में चीनी बॉयलर, टरबाइन और जेनेरेटर (बीटीजी) उपकरणों की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय इजाफा हुआ। इसका मुख्य कारण यह था कि चीनी उपकरण सस्ते थे और घरेलू कंपनियों के पास बीटीजी उत्पादन की सीमित क्षमता थी। हालांकि ताप विद्युत क्षमता बढ़ाने का दौर अब खत्म हो चुका है और बीएचईएल, एलऐंडटी आदि कंपनियों की मौजूदा क्षमता घरेलू मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षेत्र में आयात पर आसानी से रोक लगाई जा सकती है।
विश्लेषकों का कहना है कि चीन से बिजली उपकरणों का आयात घरेलू उद्योग का करीब 10 फीसदी है और आयात को घटाया जा सकता है लेकिन शुरू में लागत थोड़ बढ़ सकती है। चीन के उपकरण घरेलू उपकरण के मुकाबले सस्ते हैं जबकि अन्य देशों से सोर्सिंग करने पर लॉजिस्टिक लागत बढ़ेगी।
येस सिक्योरिटीज के उमेश राउट ने कहा कि कमजोर मांग परिदृश्य में जब प्रतिस्पर्धा तगड़ी हो तो बढ़ी हुई लागत का बोझ ग्राहकों के कंधों पर डालना कठिन हो सकता है। उनका मानना है कि ऑर्डर प्रवाह के लाभ मेट्रो रेल परियोजनाओं और बिजली पारेषण एवं वितरण क्षेत्र में दिख सकती है जहां चीन की कंपनियों के बजाय भारतीय कंपनियों को प्राथमिकता दी जा रही है। अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भी थर्मेक्स, केईसी इंटरनैशनल आदि कंपनियों के ऑर्डर प्रवाह में बढ़ोतरी हो सकती है क्योंकि अन्य देश भी अपने उद्योगों में चीन के निवेश को रोकने की कोशिश कर रहे हैं।
सेंट्रम इन्फ्रास्ट्रक्चर एडवाइजरी के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी संदीप उपाध्याय का मानना है कि चीनी आयात पर प्रबंतिध के काणर सौर ऊर्जा परियोजनाओं में सबसे अधिक व्यवधान दिखेगा। ताप बिजली क्षेत्र में निजी क्षेत्र का पूंजीगत खर्च अधिक नहीं है और एनटीपीसी जैसी सरकारी कंपनियां ही अपनी क्षमता बढ़ा रही हैं। लेकिन उपाध्याय के आकलन के अनुसार, सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए चीन पर निर्भरता 50 फीसदी से अधिक है।
भारत फिलहाल विकल्प के तौर पर अमेरिका, कनाडा, जर्मनी और दक्षिण कोरिया की कंपनियों से उपकरणों की आपूर्ति पर गौर कर रहा है लेकिन सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए उसकी लागत बढ़ जाएगी। एलारा कैपिटल के रुपेश शखे ने कहा कि घरेलू कंपनियां चीन के बजाय अन्य देशों से उपकरणों की सोर्सिंग करती हैं तो सौर परियोजनाओं की लागत बढ़ जाएगी जिससे अंतत: सौर बिजली की लागत में 25 से 30 पैसे प्रति यूनिट का इजाफा हो सकता है। क्रिसिल के आंकड़ों के अनुसार, इसी महीने आयोजित सौर बिजली की ताजा नीलामी में बोली की दरें 2.36 से 2.46 रुपये प्रति यूनिट रही थीं।
