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यूक्रेन से लौटे छात्रों की पढ़ाई पर प्रश्न चिह्न

Last Updated- December 11, 2022 | 8:46 PM IST

यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्रों को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के हाल के फैसले के बावजूद भारत की शिक्षा प्रणाली से जुडऩे को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। एनएमसी के फैसले के मुताबिक विदेश में स्नातक की डिग्री हासिल वालों को अपने देश में इंटर्नशिप पूरा करने की अनुमति मिलेगी।
अभी, एनएमसी ने राज्य चिकित्सा परिषदों को इन उम्मीदवारों की इंटर्नशिप प्रक्रिया पूरी करने के लिए कहा है बशर्ते कि उन्होंने विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा (एफएमजीई) पास कर ली हो। एफएमजीई लाइसेंस देने की प्रक्रिया से जुड़ी परीक्षा है जिसका आयोजन राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड (एनबीई) करती है और विदेश से मेडिकल की डिग्री हासिल करने वाले भारतीय नागरिकों को देश में मेडिकल प्रैक्टिस करने के लिए इसकी जरूरत होती है।
हालांकि, चिकित्सा आयोग के सूत्रों के अनुसार, यूक्रेन से भारत लौटने वाले छात्रों का समायोजन करने के लिए कोई और कदम उठाना मुश्किल हो सकता है क्योंकि एनएमसी कानून के तहत कुछ नियमों को बदलने की जरूरत पड़ सकती है।
एक सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘अभी एनएमसी ने छात्रों को इंटर्नशिप पूरा करने की अनुमति दी है। लेकिन एनएमसी का गठन संसद में एक अधिनियम पारित होने के बाद किया गया था और छात्रों को आगे समायोजित करने के लिए कुछ नियमों में बदलाव करना पड़ सकता है।’
सूत्र ने कहा, ‘सरकार ऐसा करने के तरीकों पर काम कर रही है लेकिन केवल समय ही बताएगा कि इन कदमों का क्या आकार होगा।’ एनएमसी सहित सरकार के विभिन्न हितधारकों और विभागों की इस महीने के अंत में बैठक होने की संभावना है ताकि इस तरह के कदमों पर विचार-विमर्श किया जा सके।
हालांकि भारतीय चिकित्सा एवं अकादमिक बिरादरी ने इस प्रक्रिया में देश में चिकित्सा शिक्षा के स्तर को कमजोर होने को लेकर चेतावनी दी है। विशेषज्ञों ने एफएमजीई की 2020 की परीक्षा में कम प्रतिशत में पास होने पर भी चिंता जताई है जो 2021 में 24 प्रतिशत हो गई है। यह परीक्षा साल में दो बार आयोजित की जाती है और एफएमजीई परीक्षा इस साल 4 जून और 17 दिसंबर को आयोजित होनी है। एनएचएल मेडिकल कॉलेज, अहमदाबाद के डीन प्रतीक पटेल ने कहा, ‘एफएमजीई एक लाइसेंस वाली परीक्षा है जिसका मानक नीचे नहीं लाया जा सकता है। इस तरह पास के कम प्रतिशत को देखते हुए भारतीय चिकित्सा प्रणाली में प्रवेश करने में सक्षम होने के लिए एफएमजीई की परीक्षा पास करने के लिए कड़ी मेहनत करने की जिम्मेदारी छात्रों पर ही है। आखिर में हमें भारत में गुणवत्ता वाले डॉक्टरों की आवश्यकता है।’
इसी तरह, फेडरेशन ऑफ  ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन द्वारा आयोजित हाल के एक पैनल चर्चा में आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी, पटना के मेडिसन के डीन-फैकल्टी राजीव रंजन प्रसाद ने कहा, ‘एफएमजीई में इतने कम प्रतिशत से पास होने की वजह यह हो सकती है कि कठिन प्रश्न पूछे जाते होंगे या फिर विदेशी मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई की गुणवत्ता अच्छी नहीं होगी।’ उन्होंने कहा, ‘एफएमजीई परीक्षा, विदेश में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों को देश की मेडिकल शिक्षा प्रणाली के बराबर लाने के लिए आयोजित की जाती है।’
प्रसाद ने कहा कि समाधान के रूप में देखा जाए तो एनएमसी नियमों के तहत विदेश में पढ़े मेडिकल स्नातकों को 10 वर्षों में एमबीबीएस पूरा करना होता है ऐसे में यूक्रेन से लौटने वाले छात्रों के पास अब भी अपनी डिग्री पूरी करने के लिए वक्त है। साथ ही, भारत एफएमजीई पास करने में मदद देने के लिए उन्हें विशेष प्रशिक्षण देने पर विचार कर सकता है। दूसरी ओर, दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष जी एस ग्रेवाल जैसे विशेषज्ञों के अनुसार विदेशी चिकित्सा स्नातकों को भारतीय स्नातक पाठ्यक्रमों का आदी होने के लिए कुछ कदम उठाए जाने चाहिए। इसका एक तरीका एफएमजीई लाइसेंस परीक्षा की शुरुआत है।
अन्य संभावित समाधानों में, वल्र्ड मेडिकल एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष रवि वानखेड़कर ने कहा कि यूक्रेन में युद्ध समाप्त होने के बाद छात्र अपने कॉलेज में फिर से जाने की कोशिश कर सकते हैं। हालांकि पोलैंड जैसे पड़ोसी देशों में भी समान शुल्क में इस कोर्स से जोडऩे का विकल्प मिल रहा था। वानखेड़कर ने कहा, ‘सरकार को अकादमिक मानदंडों और मानकों को कमजोर किए बगैर एक समाधान के साथ बाहर आने के लिए सभी हितधारकों के साथ चर्चा करने की आवश्यकता है।’

First Published - March 13, 2022 | 11:19 PM IST

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