नोएडा में कागज के सह-उत्पादों का निर्माण करने वाली कंपनियों के लिए बाजार में टिके रहना काफी कठिन होता जा रहा है।
पिछले कुछ समय से घाटे में चल रही इन कंपनियों में से कई अब बंद होने के कागार पर पहुंच गई हैं। इनमें मुख्य तौर पर कागज के कप, प्लेट, लिफाफे, मुद्रित कागज और पैकेजिंग का काम होता है। नोएडा में करीब 400 से 500 कंपनियां इस क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं।
शुरुआती दौर में ये कंपनियां अच्छा प्रदर्शन कर लाभ कमा रही थीं, लेकिन समय के फेर के साथ इन कंपनियों की नियति भी बदल गई और उत्पादन पिछले तीन सालों में लगभग 25 फीसदी तक घट गया है। नोएडा में स्थित शगुन इंटरप्राइजेज के निदेशक रामधन धीमान ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि कंपनियों के हालात बिगड़ने का मुख्य कारण बड़ी कंपनियों का बाजार में उतरना, उत्पादन का घटना, खराब बुनियादी सुविधाएं और ऊंची कर दरें हैं।
यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों के भीतर इन कंपनियों में से करीब 25 बंद हो चुकी हैं। नोएडा में बुनियादी सुविधाओं, जैसे-बिजली और पानी की आपूर्ति में कमी के चलते ज्यादातर लोगों ने पर्याप्त सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए अपनी कंपनियों को दूसरे राज्यों में स्थापित कर लिया है।
कंपनी मालिकों को उत्पाद कर और ब्रिकी कर के अलावा उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एक जिले से दूसरे जिले में कच्चा माल मंगाने पर 5 फीसदी अतिरिक्त कर भी देना पड़ता है। धीमान का कहना है कि पहले उनकी कंपनी में लगभग 150 लोग काम करते थे, लेकिन अब घाटे के चलते मात्र 120 लोग बचे हैं। नोएडा उद्यम संघ के उपाध्यक्ष मल्लन जी ने बताया कि अपर्याप्त बुनियादी सुविधाएं और बढ़ती प्रतिस्पर्धा इन कंपनियों के लिए घाटे का सबब बन रही है।