अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का साझा अभियान ‘निसार’ एस-बैंड का एसएआर पेलोड भेजे जाने के साथ ही लॉन्चिंग के करीब पहुंच चुका है।
धरती की बेहद साफ तस्वीरें ले पाने में सक्षम एसएआर पेलोड को इसरो के चेयरमैन के शिवन ने 4 मार्च को अमेरिका के लिए रवाना किया। नासा और इसरो के सिंथेटिक अपर्चर रडार (निसार) अभियान में इस्तेमाल होने वाले एस-बैंड एसएआर को अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र अहमदाबाद से अमेरिका के पासाडेना स्थित जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी (जेपीएल) के लिए भेजा गया। वहां पर इसे जेपीएल के एल-बैंड एसएआर पेलोड के साथ जोड़ा जाएगा।
निसार अभियान के तहत धरती की तस्वीरें खींचने वाला सबसे महंगा उपग्रह स्थापित किया जाएगा। निसार को इसरो के जीएसएलवी रॉकेट की मदद से वर्ष 2022 में धरती की कक्षा में स्थापित किया जाएगा। परियोजना पर इसरो करीब 788 करोड़ रुपये और जेपीएल करीब 80.8 करोड़ डॉलर का खर्च करेंगे। श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन प्रक्षेपण केंद्र से इस उपग्रह को लगभग-ध्रुवीय कक्षा में भेजा जाएगा।
भारतीय वैज्ञानिकों ने क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी देने से अमेरिका के इनकार के बाद करीब तीन दशकों की मेहनत से अपने दम पर यह तकनीक विकसित कर ली है। वर्ष 2017 में स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का सफल परीक्षण किया गया था और इसने भारत को अंतरिक्ष जगत की महाशक्तियों में शामिल कर दिया था। इस तकनीक की मदद से भारत उपग्रहों के प्रक्षेपण का भी बड़ा केंद्र बनकर उभरा है। भारतीय अंतरिक्ष संगठन अब अमेरिका समेत तमाम देशों के उपग्रह प्रक्षेपित कर रहा है। निसार उपग्रह इसरो के कामयाब सफर का एक और अध्याय साबित होगा। इसरो के अधिकारियों का कहना है कि प्रक्षेपण के बाद निसार उपग्रह का इस्तेमाल शोध संस्थानों एवं अकादमिक जगत में सघन गतिविधियों के संचालन और डेटा प्रोसेसिंग एवं अनुप्रयोग में किया जाएगा। इस उपग्रह में लगने वाले एल एवं एस- बैंड रडार से मिलने वाले सूक्ष्म-तरंग आंकड़े फसल चक्र के दौरान बायोमॉस के अनुमान और मिट्टी में नमी का पता लगाने जैसे तमाम कामों में उपयोगी साबित होंगे। बाढ़ की निगरानी, तटीय इलाके में होने वाले कटाव, तटरेखीय बदलावों, मैंग्रोव वनों का जायजा लेने और सतह संबंधी अध्ययनों में भी ये आंकड़े मददगार होंगे। नासा को एल-बैंड रडार के साथ कम-से-कम तीन साल वैश्विक वैज्ञानिक कामकाज की जरूरत है और इसरो को एस-बैंड रडार के साथ पांच साल तक काम करने की जरूरत होगी।
नासा और इसरो ने सितंबर 2014 में निसार परियोजना संबंधी समझौता किया था। इसके तहत धरती की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए एल एवं एस बैंड के रडार लगाए जाएंगे। निसार उपग्रह बर्फ के विशाल खंडों में होने वाली टूटन के अलावा भूकंप, सुनामी, चक्रवात एवं भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं के बारे में भी जानकारी जुटाने में मददगार होगा।
नासा अपनी तरफ से एल-बैंड का सिंथेटिक अपर्चर रडार, वैज्ञानिक आंकड़ों के लिए एक आला दर्जे की संचार प्रणाली, जीपीएस रिसीवर और पेलोड डेटा प्रणाली मुहैया करा रहा है। वहीं इसरो एस-बैंड रडार के अलावा अंतरिक्ष यान बस, प्रक्षेपण यान और प्रक्षेपण सेवाएं दे रहा है।
