भारत में बजट के दिन मीडिया कंपनियों की तरह बिजनेस स्टैंडर्ड के कार्यालयों में व्यस्तता चरम पर होती है। देश में आम चुनाव (और कभी कभार क्रिकेट) के बाद यह सबसे ज्यादा रिपोर्ट की जाने वाली घटना होती है।
व्यापारिक समाचार पत्रों के बाहर इस दिन चहल-पहल बहुत बढ़ जाती है। विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका तक में वहां के बजट या राष्ट्रपति के स्टेट आफ द यूनियन भाषण को अमरीकी मीडिया बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं देता है।
बजट को कवर करने के लिए टीवी चैनलों की सतर्कता चौबीसों घंटे बनी रहती है। उस दिन विभिन्न टेलीविजन चैनलों पर वित्त मंत्री सुर्खियों में छाए रहते हैं। वित्त मंत्री उसी दिन टेलीविजन पर प्रसारित होने वाली प्रेस कान्फ्रेंस और विभिन्न साक्षात्कारों में वही बातें दोहराते हैं। वह अगले कई दिन तक उद्योग संगठनों से मिलते हैं और एक बार फिर अपने को दोहराते हैं।
इस अवसर पर उद्योगपति एवं व्यापारी भी कम व्यस्त नहीं रहते हैं। ये उद्योगपति और व्यापारी टेलीविजन पर बयान देते हैं और समाचार पत्रों को अपनी प्रतिक्रियाएं भेजते हैं। इस होड़ में अल्प-चर्चित कारोबारी भी पीछे नहीं रहते। ये अल्प-चर्चित कारोबारी समाचार पत्रों को लिखते हैं कि कृपया अपने ‘प्रतिष्ठित समाचार पत्र’ में इसे प्रकाशित करें।
इस साल का बजट स्पष्ट रूप से चुनावी बजट रहा और वित्त मंत्री द्वारा कृषि ऋण माफी की घोषणा को वित्तीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण फैसला माना जा रहा है। इस घोषणा के बाद वित्त मंत्री के बजट भाषण को एक नया रूप प्रदान हुआ। वित्त मंत्री ने अनुरोध किया था, ”आदरणीय सदस्यों और भारत के लोगों, इस योजना को अपना समर्थन दो और इस महत्वपूर्ण निर्णय के क्रियान्वयन में सरकार की मदद करो।” संक्षेप में कहा जाए तो यह वोट बैंक मजबूत करने की ही कोशिश रही।
यह विडंबना है कि इन सरकारी योजनाओं का लाभ गरीब लोगों तक मुश्किल से ही पहुंच पाता है। मध्य वर्ग के वेतन भोगी तबके की चिंता आय कर को लेकर हमेशा बनी रहती है।
आय कर और प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर प्रस्ताव बजट भाषण के ‘पार्ट बी’ के तहत शामिल किए जाते हैं। यह शायद बजट भाषण के पार्ट ए चयन के बारे में सरकार की अज्ञानता का प्रतीक है। अक्सर बजट में पार्ट ए का हिस्सा पार्ट बी की तुलना में अधिक बड़ा होता है।
यह वर्ष भी इसका अपवाद नहीं रहा। चिदंबरम के 30 पेज के बजट भाषण के 23.5 पेज को पढ़ने में लगभग दो घंटे का समय लगा। वहीं पार्ट बी, जिसमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कराधान में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव शामिल थे, को पढ़ने में मात्र 20 मिनट का समय लगा।
बजट को लेकर भारतीय मीडिया की उत्सुकता वैश्विक मीडिया की निष्क्रियता से थोड़ा अलग हट कर देखी गई। मौजूदा समय में भारत वैश्विक निवेशकों के लिए आकर्षण बनता जा रहा है, लेकिन बजट को अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के स्तर पर मामूली कवरेज मिला। शुक्रवार को केवल बीबीसी और फाइनेंशियल टाइम्स ने बजट के लगभग एक घंटे बाद अपनी वेबसाइटों पर बजट से संबंधित खबरें प्रकाशित कीं, लेकिन इनके एशिया वर्गों में इसे महत्व नहीं दिया गया। यहां तक कि चीनी संवाद एजेंसी शिन्हुआ ने भी अपनी अंग्रेजी वेबसाइट पर अपने व्यापारिक वर्ग की खबरों में भारतीय बजट पर एक शब्द भी नहीं लिखा। वैसे इस एजेंसी ने उस दिन थाकसिन शिनावात्रा की वापसी और आस्ट्रेलिया से संबंधित कई खबरों को तवाो दी। बजट के 6 घंटे बाद वाल स्ट्रीट जर्नल में बजट का संक्षेप में ही जिक्र किया गया था।
यह ध्यान देने की बात है कि एक महीने पहले ही टाटा मोटर्स की विश्व की सबसे सस्ती कार नैनो के लांच की खबरें सभी प्रमुख वेबसाइटों पर छाई रहीं। टाटा मोटर्स की इस कार को लेकर वाहन प्रेमियों में उत्साह पैदा हो गया है। वाहन प्रेमियों में नैनो की लोकप्रियता को लेकर टाटा मोटर्स की भारी उम्मीदें हैं। कार वाहन निर्माण क्षेत्र में टाटा की यह बड़ी उपलब्धि है।
संदेश स्पष्ट है कि भारत का विकास अब निजी क्षेत्र पर केंद्रित हो चुका है। समाचार के भूखे भारतीय मीडिया का उत्साह सरकारी बजट को लेकर हमेशा बना रहेगा।
