महंगाई की मार से बेचैन सरकार के मंत्री इन दिनों रात-रात भर जाग रहे हैं।
सुरसा की तरह मुंह फैलाए खड़ी महंगाई पर काबू पाने के लिए सोमवार की रात 8 बजे केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक शुरू हुई, जो काफी गहमा-गहमी के बीच देर रात तक चली। बढती कीमतों से सरकार कितनी परेशान हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बैठक में मौजूद मंत्री एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने से भी नहीं चूके। वाणिज्य मंत्री कमलनाथ कुछ ज्यादा ही बेचैन दिखे।
उन्होंने कृषि मंत्री शरद पवार से दोटूक लहजे में सवाल किया किया इस बार गेहूं के आयात में देरी क्यों हो रही है? कमलनाथ के सवाल को कृषि सचिव पीके मिश्रा ने झट से लपक लिया और उस पर स्पष्टीकरण देते नजर आए। उन्होंने कहा कि सरकारी खरीद का समय 1 अप्रैल से शुरू होता है। उसके बाद ही इस बारे में कुछ अंदाजा लगाया जा सकेगा कि कितनी मात्रा में गेहूं का आयात किया जाए।
वे इस बात का उल्लेख करने से भी नहीं चूके कि इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमत बहुत ज्यादा है। कमलनाथ इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने सवाल दागा कि भारतीय खाद्य निगम को गेहूं आयात करने की सलाह क्यों नहीं दी गई? इस सवाल को सुन पवार कहां चुप रहने वाले थे, उन्होंने भी लगभग झल्लाते हुए कहा कि जब भारत में किसान 1000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं बेच रहे हों, तब बाहर से महंगी दर से गेहूं का आयात करना कहां तक उचित होगा!
वित्त मंत्री पी. चिदंबरम देर से यह सब बड़ी गंभीरता से सुन रहे थे। उन्होंने कहा कि गेहूं की किल्लत को उजगार करना उचित नहीं होगा।दरअसल, यह बैठक मुद्रास्फीति की बढ़ती दर को काबू में करने के लिए बुलाई गई थी, लेकिन महंगाई की मार से बेचैन मंत्री कमोडिटी की बढ़ती कीमतों को लेकर उलझ पड़े। बैठक में रेल मंत्री लालू प्रसाद भी अपने अंदाज में नजर आए और स्टील व लौह-अयस्क उद्योगों के लिए कुछ सुझाव भी दिए।
जरा उन सुझाव पर गौर करें-क्या होगा अगर हम लौह-अयस्क के निर्यातकों को रेलवे वैगन का इस्तेमाल न करने दें? इसके बाद इधर-उधर देखने के बाद उन्होंने आगे कहा कि इससे निर्यातक अपने उत्पादों को बंदरगाहों तक नहीं पहुंचा सकेंगे, जिससे देश में उसकी कमी नहीं होगी और कीमतें खुद-ब-खुद काबू में आ जाएगी।
दरअसल, यह सुझाव लालू का अपना अंदाज है और वे बैठक की गहमा-गहमी को कुछ कम करना चाहते थे। हुआ भी कुछ ऐसा ही। लालू की बात से सबके होंठों पर मुस्कुराहट आ गई। सच तो यह है कि कोई भी मंत्री लौह-अयस्क के निर्यात को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने के मूड में नहीं दिखे।