लैटिन अमेरिका की अर्थव्यवस्थाएं ‘एल डोराडो अभिशाप’ से पीडि़त हैं। वहां संसाधन तो हैं लेकिन विकास उनसे दूर है। एल डोराडो सोने का एक पौराणिक खोया हुआ शहर माना जाता है जो संभवत: दक्षिण अमेरिका में है। श्रीलंका और पाकिस्तान भी दक्षिण एशिया के एल डोराडो बनने के लिए तैयार हैं। उनकी अर्थव्यवस्थाएं पहले से ही अस्थिर थीं और कोरोनोवायरस महामारी ने इस संकट को और बढ़ा दिया ।
वर्ष 2019-20 और 2021-22 के बीच भारत के घरेलू और विदेशी कर्ज में 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसी अवधि के दौरान श्रीलंका की सकल उधारी में 33 प्रतिशत और पाकिस्तान में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई और अब दोनों देश कर्ज में डूब रहे हैं।
श्रीलंका इस महीने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज के लिए बातचीत करेगा। जबकि वर्ष 2019-20 में भारत का ऋण-जीडीपी अनुपात 74.1 प्रतिशत था वहीं श्रीलंका के लिए यह अनुपात 86.8 प्रतिशत था। पाकिस्तान का अनुपात 2019 में 87.6 प्रतिशत था। श्रीलंका और पाकिस्तान में कर्ज अदायगी का स्तर 2019 में राष्ट्रीय आय का क्रमश: 7.65 प्रतिशत और 4.02 प्रतिशत थी जबकि भारत में 1.8 प्रतिशत तक था।
कोरोनावायरस महामारी से पहले और उस दौरान आर्थिक नीतियों से जुड़ी समस्याओं के लिए श्रीलंका को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है। पर्यटन में मंदी की वजह से अर्थव्यवस्था की हालत खराब हो रही थी जब राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे की सरकार ने महामारी से पहले करों में कटौती की घोषणा की थी। इसके परिणामस्वरूप कर राजस्व में कमी आई और उस वक्त बाहर से भेजी हुई पूंजी भी कम हो रही थी और कारोबार संतुलन बहुत बढ़ रहा था।
श्रीलंका के केंद्रीय बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि देश ने फरवरी 2020 और फरवरी 2021 के बीच अपने विदेशी मुद्रा भंडार का लगभग आधा हिस्सा खत्म कर दिया। फरवरी 2022 तक एक और आधा हिस्सा खत्म हो गया था। फरवरी 2022 के अंत तक श्रीलंका के केंद्रीय बैंक द्वारा रखे गए सोने में तीन-चौथाई तक की गिरावट आई थी। वर्ष 2021 में श्रीलंका की सरकार ने उर्वरक सब्सिडी पर बचत करने के लिए पूरी तरह से जैविक कृषि पर जोर देना शुरू कर दिया। यह एक ऐसा कदम था जिसकी वजह से संकट और बढ़ गया। इससे कृषि उपज कम हो गई तथा संकट और गहराता चला गया।
श्रीलंका के रुपये में पिछले साल से लगभग 50 प्रतिशत की गिरावट आई है। डॉलर के मुकाबले, यह 1 अप्रैल को 300 रुपये के स्तर पर था। कई अन्य संरचनात्मक मुद्दे राजपक्षे सरकार के पहले से ही हैं। श्रीलंका का कर्ज 2012 में बढऩा शुरू हुआ और चार साल के भीतर इसमें 10 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई। कर्ज सेवा की लागत 2013 से बढऩा शुरू हो गई। इस बीच, सब्सिडी बढ़ती जा रही है। आखिरकार, ऐसा लगता है कि गैरजरूरी कामों या चूक के अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं।
श्रीलंका ने ईंधन की राशन व्यवस्था लागू की
श्रीलंका की सरकारी पेट्रोलियम कॉरपोरेशन ने वाहनों को ईंधन देने के लिए राशन व्यवस्था शुक्रवार से लागू करने की घोषणा की। देश में जारी अभूतपूर्व आर्थिक संकट के मद्देनजर यह कदम उठाया गया है। सीलोन पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (सीपीसी) द्वारा जारी बयान में कहा गया कि मोटरसाइकिल और अन्य दुपहिया वाहन एक बार में पेट्रोल पंप से एक हजार रुपये का ईंधन ही भरा सकते हैं। इसी प्रकार, तीन पहिया वाहन एक बार में 1,500 रुपये का, कार, जीप और वैन पांच हजार रुपये तक का ईंधन खरीद सकते हैं। हालांकि, बस, लॉरी और वाणिज्यिक वाहनों को राशन व्यवस्था से अलग रखा गया है।
पेट्रोल पंप के सामने लंबी कतारों के बाद लोगों में गुस्सा देखने को मिला था। इसके साथ ही घरों में भी 12 घंटे की बिजली कटौती हो रही है और श्रीलंकाई रुपये का मूल्य कम होने की वजह से अन्य आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी हो गई है। इस बीच, राजधानी कोलंबो के गाले फेस पर चल रहा प्रदर्शन शुक्रवार को सातवें दिन में प्रवेश कर गया और हर दिन और युवा इससे जुड़ते जा रहे हैं। प्रदर्शनकारी देश के आर्थिक संकट को ठीक से संभालने में कथित अकुशलता को लेकर राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे से इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के इस्तीफे तक सरकार से वार्ता करने से भी इनकार कर दिया है। भाषा