एक साल पहले तक, नीलोफर डिसूजा (बदला हुआ नाम) यूक्रेन के कीव में बोगोमोलेट्स नैशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में मेडिकल की पढ़ाई कर रही थीं। फिर रूस ने हमला कर दिया। वह उन हजारों भारतीय छात्रों में से एक थीं जिन्होंने डॉक्टर बनने का सपना देखा था और जिन्हें युद्ध से घिरे देश से भाग कर वापस घर आना पड़ा। उस साल से ही यहां अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है।
अहमदाबाद की 21 वर्षीय स्नातक मेडिकल के चौथे वर्ष की छात्रा नीलोफर अब जॉर्जिया के एक विश्वविद्यालय में स्थानांतरित होना चाहती हैं। हालांकि, यह आसान नहीं होगा। वह कहती हैं कि सिर्फ ट्यूशन फीस के लिए उन्हें 2-4 लाख रुपये का अतिरिक्त खर्च करना पड़ सकता है और उन्हें रहने के लिए कम से कम 150 प्रतिशत अधिक खर्च करना होगा। यह इसका सिर्फ एक हिस्सा है।
डिसूजा कहती हैं, ‘हममें से अधिकांश को कम से कम एक सेमेस्टर दोहराना ही होगा। कुछ कॉलेजों और देशों में यह एक वर्ष और लंबी पढ़ाई हो सकती है। लेकिन प्रैक्टिकल कक्षाओं की कमी और भविष्य से जुड़ी अनिश्चितताओं की वजह से हमें इस चुनौती का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।‘
पैरेंट्स एसोसिएशन ऑफ यूक्रेन एमबीबीएस स्टूडेंट्स (पीएयूएमएस) का अनुमान है कि पिछले साल भारत लौटे 18,000 मेडिकल छात्रों में से 5,000-7,000 छात्र जॉर्जिया, रूस, सर्बिया, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान और मोल्दोवा के विश्वविद्यालयों में स्थानांतरित हो गए हैं या उनमें स्थानांतरण के लिए दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
चेन्नई में मौजूद मेडिकल एजुकेशन सलाहकार कंपनी मेडिसीट्स अब्रॉड के निदेशक एम कालिदास कहते हैं, ‘यूक्रेन से वापस लौटने वाले 60-70 प्रतिशत छात्रों ने ऑनलाइन पढ़ाई जारी रखी है। छात्रों को विशेष रूप से चौथे वर्ष के बाद, प्रैक्टिकल कक्षाओं की सख्त आवश्यकता होगी।’
यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में कुछ विश्वविद्यालय युद्ध से पूरी तरह से तबाह हो गए हैं, ऐसे में छात्र अब वहां वापस भी नहीं जा पाएंगे। इनमें अधिकांश विश्वविद्यालयों ने अपने छात्रों को यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से में खुले हुए कॉलेजों में स्थानांतरित कर दिया है।
उदाहरण के तौर पर खार्कीव नैशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी ने अपने छात्रों को इवानो-फ्रैंकिव्स्क नैशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में स्थानांतरित कर दिया है। यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में करीब सात-आठ विश्वविद्यालय रूस के साथ युद्ध संघर्ष से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं, खासकर खार्कीव और कीएफ जैसी जगहों में।
यूक्रेन में 18-20 मेडिकल विश्वविद्यालय या कॉलेज हैं, जिनमें भारत के लगभग 3,000 छात्र हर साल नामांकन कराते हैं। यह छह साल का पाठ्यक्रम है इसलिए लगभग 18,000 भारतीय छात्रों का ताल्लुक यूक्रेन से हर वक्त जुड़ा ही होता है। हाल के दिनों में, भारत के छात्रों के छोटे समूहों ने पोलैंड के रास्ते लूव्यू नैशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी, बकावेनियन स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी, टेरनोपिल नैशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी और अजहेराड नैशनल यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों की यात्रा की है।
यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से में मौजूद कुछ विश्वविद्यालयों ने हाल के हफ्ते में चरणबद्ध तरीके से ऑफलाइन कक्षाएं शुरू की हैं। पीएयूएमएस के अध्यक्ष आर बी गुप्ता कहते हैं, ‘जो लोग यात्रा करने में सक्षम हैं, वे पोलैंड के रास्ते यूक्रेन में जा रहे हैं। लेकिन बहुत से लोग उस जोखिम को लेने के लिए तैयार नहीं हैं जब तक कि ऑफलाइन कक्षाओं के फिर से शुरू होने की कोई निश्चितता न हो।’
उन्होंने कहा, ‘कुछ विश्वविद्यालयों ने 17 जनवरी, 25 जनवरी और 1 फरवरी, 2023 से कक्षाएं शुरू की हैं। लेकिन इन पिछले कुछ हफ्तों में, वे बड़े पैमाने पर केवल चौथे, पांचवें और छठे वर्ष के छात्रों के लिए प्रैक्टिकल क्लिनिकल अनुभव को कवर करने की कोशिश कर रहे हैं।’
नीलोफर डिसूजा जैसे लोग स्थानांतरण की मांग कर रहे हैं और यूक्रेन विश्वविद्यालय उन प्रतिलिपियों को जारी करने में समय ले रहे हैं जिनकी आवश्यकता इन छात्रों को कहीं और आवेदन करने के लिए होगी।
एक कारण है कि जो छात्र, भारत के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में जगह नहीं बना पाते हैं, वे यूक्रेन जैसे देशों की ओर रुख करते हैं। एक सरकारी मेडिकल कॉलेज के संकाय सदस्य कहते हैं, ‘भारत के एक निजी कॉलेज में स्नातक मेडिकल कोर्स की लागत 80 लाख रुपये से एक करोड़ रुपये के बीच होगी।
यूक्रेन, रूस और चीन जैसी जगहों पर इसकी लागत 25 लाख रुपये या उससे अधिक होगी।’ जो लोग जॉर्जिया जाने की सोच रहे हैं इस पाठ्यक्रम की लागत 5,500-6,000 डॉलर प्रति वर्ष होगी वहीं यूक्रेन में इसकी लागत 4,500 डॉलर है। छात्रावास शुल्क भी अधिक है और यह यूक्रेन के 100 डॉलर प्रति माह की तुलना में जॉर्जिया में 250-400 डॉलर प्रति माह है।
डिसूजा कहती हैं, ‘मेरे साथ पढ़ने वाले लोग और मेरे सीनियर कुछ बैचमेट्स और सीनियर मोल्दोवा, किर्गिस्तान और कजाकिस्तान जैसी जगहों पर आवेदन दे रहे हैं लेकिन बाकी हम सब अपने विकल्पों पर विचार कर रहे हैं क्योंकि इन देशों में अब भी व्यक्तिगत सुरक्षा और उनके पाठ्यक्रमों की स्वीकार्यता के लिहाज से दोनों ही मामले में जोखिम की स्थिति बनी हुई है।
छात्रों और उनके माता-पिता का कहना है कि भारत की तरफ से विदेशी मेडिकल स्नातकों (एफएमजी) के लिए बहुत अधिक समर्थन नहीं मिला है। उदाहरण के तौर पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के नवंबर 2021 की एक अधिसूचना अब एफएमजी को अपने पाठ्यक्रमों को एक कॉलेज से दूसरे कॉलेज में स्थानांतरित करने से रोकती है। कालीदास कहते हैं, ‘ जब युद्ध छिड़ गया, तब कई छात्र जो पहले और दूसरे वर्ष में थे उन्होंने या तो विदेश में अपनी पढ़ाई छोड़ दी या अन्य देशों में नए सिरे से शुरुआत की।’
इस बीच, एनएमसी ने हाल ही में 21 अक्टूबर, 2022 को या उससे पहले ही पुरानी मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) सूची के तहत अनुमोदित कॉलेजों और अस्पतालों में एफएमजी के लिए इंटर्नशिप की अनुमति दी है।’ कई प्रयासों के बावजूद एनएमसी अधिकारियों से संपर्क नहीं हो सका लेकिन सूत्रों का कहना है कि आयोग ने यूक्रेन, चीन और फिलिपींस के कॉलेजों में पढ़ने वाले एफएमजी से संबंधित मुद्दों के लिए एक समिति का गठन किया है।
पीएयूएमएस के गुप्ता कहते हैं, ‘समिति मार्च 2023 में अपनी रिपोर्ट पेश करेगी लेकिन हर गुजरते दिन के साथ एफएमजी का भविष्य अनिश्चित होता जा रहा है।’