रूस के व्यापारियों ने भारत को अपने निर्यात के लिए रूबल में भुगतान करने को कहना शुरू कर दिया है। यह कदम दोनों देशों के बीच व्यापार को बिगाड़ सकता है, जिसने यूरोप में युद्ध के बाद रफ्तार पकड़ी है। इसकी वजह यह है कि भारतीय आयातक अपने आयात के लिए रूबल में भुगतान करने में असमर्थ हैं।
इस साल फरवरी में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद भारत-रूस व्यापार ने रफ्तार पकड़ी थी। अप्रैल-जून तिमाही में रूस से भारत का आयात 9.27 अरब डॉलर रहा, जो सालाना आधार पर 369 प्रतिशत अधिक है। इस देश से होने वाले आयात में कच्चे तेल का योगदान करीब दो-तिहाई रहा। रूस से आयात की जाने वाली अन्य प्रमुख वस्तुओं में कोयला, सोयाबीन और सूरजमुखी का कच्चा तेल, उर्वरक वगैरह शामिल हैं।
तेल उद्योग के एक सूत्र के मुताबिक ऊर्जा क्षेत्र की रूस की दिग्गज गैजप्रोम द्वारा चीन को गैस आपूर्ति के लिए अमेरिकी डॉलर के बजाय युआन और रूबल में भुगतान शुरू करने के लिए रूस के साथ समझौता किए जाने के बाद रूस कच्चे तेल के आयात के लिए रूबल में भुगतान पर जोर दे रहा है।
इस साल फरवरी में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण किए जाने के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसने रूसी तेल कंपनियों को प्रति बैरल कच्चे तेल पर 25 से 28 डॉलर की छूट के लिए प्रेरित किया। अपनी तेल आवश्यकता का 80 प्रतिशत हिस्सा आयात से पूरा करने वाले भारत ने इस अवसर को अपने तेल आयात बिल में कमी के तौर पर देखा, क्योंकि युद्ध शुरू होने के बाद कच्चे तेल के दाम तकरीबन 130 डॉलर प्रति बैरल थे। दरअसल वर्ष 2014 के बाद कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय दाम पहली बार 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हुए थे। हालांकि पिछले कुछ सप्ताह में कच्चे तेल के दाम 100 डॉलर से नीचे आए हैं।
सूत्रों ने कहा कि भारतीय आयातकों ने रूसी मुद्रा में भुगतान करने में असमर्थता के संबंध में बताते हुए सरकार के सामने यह मसला उठाया है। भारतीय तेल क्षेत्र के कई सूत्रों के अनुसार न तो तेल कंपनियां और न ही सरकार रूबल में भुगतान के लिए उत्सुक हैं। तेल क्षेत्र के एक सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि अब तक हम डॉलर में भुगतान कर रहे थे। कंपनियों के लिए रूबल में भुगतान करना काफी मुश्किल होगा, क्योंकि अगर हम रूबल में भुगतान करना चाहें, तो भी मुद्रा की तरलता नहीं है। भारत में रूबल का व्यापार काफी सीमित है। वे भले ही हमें रूबल में भुगतान करने के लिए कह रहे हों, लेकिन कहीं न कहीं हमें डॉलर देना पड़ेगा और भारत के बाहर रूबल खरीदना होगा।
जून और जुलाई में रूस भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया था, जबकि इराक शीर्ष स्थान पर बना रहा। रूसी तेल कंपनियों द्वारा भारी छूट की पेशकश किए जाने के बाद मार्च महीने से यूराल (कच्चे तेल का मिश्रण) के रूप में प्रसिद्ध रूसी तेल के आयात में इजाफा शुरू हो गया। रिपोर्टों के मुताबिक अगस्त में भारत ने रूस से प्रतिदिन 7,38,024 बैरल तेल आयात किया, जो जुलाई में किए गए तकरीबन 18 प्रतिशत कम है।
दिलचस्प बात यह है कि अगस्त में सऊदी अरब 20.8 प्रतिशत के साथ भारत का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा। इसके बाद 20.6 प्रतिशत के साथ ईराक और 18.2 प्रतिशत के साथ रूस का स्थान रहा।