facebookmetapixel
Lenskart IPO Listing: ₹390 पर लिस्ट हुए शेयर, निवेशकों को नहीं मिला लिस्टिंग गेनराशन कार्ड के लिए सरकारी दफ्तर जाने की जरूरत नहीं, बस ये ऐप डाउनलोड करेंQ2 results today: ONGC से लेकर Vodafone Idea और Reliance Power तक, आज इन कंपनियों के आएंगे नतीजेBihar Elections 2025: हर 3 में 1 उम्मीदवार पर है आपराधिक मामला, जानें कितने हैं करोड़पति!₹70 तक का डिविडेंड पाने का आखिरी मौका! 11 नवंबर से 10 कंपनियों के शेयर होंगे एक्स-डिविडेंडGroww IPO Allotment Today: ग्रो आईपीओ अलॉटमेंट आज फाइनल, ऐसे चेक करें ऑनलाइन स्टेटस1 अक्टूबर से लागू Tata Motors डिमर्जर, जानिए कब मिलेंगे नए शेयर और कब शुरू होगी ट्रेडिंगStock Market Update: शेयर बाजार की पॉजिटिव शुरूआत, सेंसेक्स 200 से ज्यादा अंक चढ़ा; निफ्टी 25550 के करीबअगर अमेरिका ने Google-Meta बंद किए तो क्या होगा? Zoho के फाउंडर ने बताया भारत का ‘Plan B’Stocks To Watch Today: Swiggy, HAL, Patanjali Foods समेत इन 10 दिग्गज कंपनियों से तय होगा आज ट्रेडिंग का मूड

हफ्ते की शख्सियत

Last Updated- December 05, 2022 | 10:03 PM IST

लोकतंत्र की राह में कदम आगे बढ़ाने वाले नेपाल में राजशाही का पूरी तरह सफाया नहीं हुआ है और देश की बागडोर फिलहाल प्रचंड के हाथ में नहीं आई है लेकिन इस हफ्ते की शुरुआत उनके लिए काफी सुकून भरी रही।


आखिर नेपाली चुनाव आयोग से जीत का प्रमाण जो हासिल किया। इस मौके पर प्रचंड काफी धीर गंभीर व ज्ञानवान लगे और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह संदेश देने की कोशिश की कि वह चरम वामपंथी का चोला उतार कर चुके हैं। उन्होंने यह जताया कि भारत और पश्चिमी देशों की तरफ उनका  रवैया भी अब पहले की तरह एक विरोधी जैसा नहीं है।


बहुत कम लोग यह जानते हैं कि चुनाव के समय उसमें भागीदारी के सीमा को लेकर माओवादियों में अंतरविरोध था। चुनाव से एक दिन पहले तक पार्टी में दूसरे नंबर के नेता बाबूराम भत्तराई ने चेतावनी दी थी कि अगर इस चुनाव में माओवादी हारते हैं तो उन्हें काठमांडू पर कब्जा करने में दस मिनट लगेंगे।


यही नहीं पार्टी के राम बहादुर बादल वाले धड़े ने तो शहरी क्रांति लाने का सुझाव रखा था लेकिन यह जनाब भी चुनाव में चितवन से जीत हासिल कर चुके हैं और अब भविष्य में शायद ही क्रांति उनके एजेंडे में शामिल होगी।


अब सवाल यह उठता है कि क्या नेपाल में माओवादियों को काबू में कर लिया गया है? क्या उनका भी वही हश्र होगा जो दुनिया के ज्यादातर चरमपंथी आंदोलनों का होता है? क्या लोकतांत्रिक राजनीति उसकी धार को भोथरा करने में कामयाब हो जाएगी? यह सब इस बात पर निर्भर करती है कि पार्टी प्रमुख प्रचंड अपने साथियों के साथ मिलकर इस जीत का इस्तेमाल कैसे करते हैं। 


प्रचंड के सामने इस समय दो सबसे महत्वपूर्ण काम हैं। पहला, अंतरराष्ट्रीय समुदाय का विश्वास जीतना और अपने साथियों का सम्मान बरकरार रखना।यह काम ज्यादा मुश्किल नहीं है। माओवादियों को जिम्मेदार राजनैतिक विकल्प के रूप में पेश करने के लिए प्रचंड के सामने भारत के जरिए अमेरिका से बातचीत का रास्ता खुला है। फिलहाल अमेरिका ने माओवादियों को प्रतिबंधित आतंकवादी घोषित कर रखा है।


अगर प्रचंड अमेरिका को मना पाते हैं तो यह भारत के लिए भी बड़ी बात होगी लेकिन इतना जरूर है कि चीन के प्रति नेपाल के रुख पर भारत को सजग रहना होगा क्योंकि अब वे राजनैतिक शक्ति हासिल कर चुके हैं।प्रचंड के सामने दूसरा महत्वपूर्ण काम कम्युनिस्ट पार्टी में मौजूद शरारती तत्वों को काबू में रखना है जिस पर भारत और चीन समेत नेपाल के सभी पड़ोसियों की निगाहें लगी हैं ।


माओवादियों को लिबरेशन आर्मी (पीएलए), नेपाली आर्मी और पुलिस का एकीकरण भी करना है। ऐसे में देखना होगा कि यंग कम्युनिस्ट लीग (वाईसीएल) के साथ कैसे पेश आया जाता है। इसका एक और पहलू भी है। अप्रैल 2007 में केबी महारा सूचना और संचार मंत्री थे जो माओवादियों के हितैषी है लेकिन वह भी मिस नेपाल सौंदर्य प्रतियोगिता के टेलीविजन प्रसारण को रोक नहीं पाए थे।


बाद में उन्हें इस प्रतियोगिता का विरोध करने वाले माओवादियों से माफी भी मांगनी पड़ी थी क्योंकि पुलिस ने उन पर लाठिया भांजी थी। दरअसल इस प्रतियोगिता की प्रायोजक उपभोक्ता वस्तुएं बनाने वाली एक भारतीय कंपनी थी जिसका नेपाल टीवी के साथ करार था और वह नेपाल में खासी दिलचस्पी ले रही थी।

First Published - April 18, 2008 | 10:35 PM IST

संबंधित पोस्ट