अमेरिका द्वारा बराबरी के शुल्क लागू किए जाने से पहले अमेरिका के कई खरीदार फिलहाल हालात स्पष्ट होने का इंतजार कर रहे हैं। निर्यातकों का कहना है कि इससे न केवल नए ऑर्डर प्रवाह में कमी आई है बल्कि मौजूदा ऑर्डर भी टाले जा रहे हैं। यह सतर्क रुख काफी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत के लिए अमेरिका सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। वित्त वर्ष 2025 में अप्रैल से फरवरी के दौरान अमेरिका को 76.4 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात किया गया जो देश के कुल निर्यात का करीब 20 फीसदी है।
निर्यातकों ने कहा कि पश्चिमी यूरोपीय देशों से आने वाले ऑर्डर भी प्रभावित हुए हैं क्योंकि इन देशों को भी अमेरिका के साथ यूरोपीय संघ के तनाव के प्रभाव से जूझना पड़ रहा है। भारतीय निर्यातकों के संगठन फियो के महानिदेशक और मुख्य कार्याधिकारी अजय सहाय ने कहा कि ऑर्डर का प्रवाह फिलहाल थम सा गया है क्योंकि अमेरिकी खरीदार बराबरी के शुल्क को लागू किए जाने के बारे में अनिश्चितता खत्म होने और स्थिति स्पष्ट होने का इंतजार कर रहे हैं। अमेरिकी प्रशासन ने अभी यह स्पष्ट नहीं किया है कि बराबरी के शुल्क की गणना किस प्रकार की जाएगी और उसे किस तरह लागू किया जाएगा। ऐसे में भारत सहित अन्य तमाम देशों और कारोबारियों के लिए उससे निपटने के लिए कोई ठोस रणनीति बनाना कठिन हो गया है।
सहाय ने कहा, ‘अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि अतिरिक्त शुल्क का बोझ ग्राहकों पर डाला जाएगा अथवा निर्यातक/आयातक खुद उसका बोझ उठाएंगे। इन सब बातों पर गौर करने की जरूरत है और उसके बाद ही कोई निर्णय लिया जाएगा।’ माल की खेप को फिलहाल रोकने के लिए कहा गया है क्योंकि समुद्री मार्ग से भेजा गया सामान 2 अप्रैल के बाद ही अमेरिका पहुंचेगा और इसलिए उस पर अमेरिका के अतिरिक्त शुल्क लागू होंगे।
भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ की महासचिव चंद्रिमा चटर्जी ने कहा कि कुछ ग्राहकों ने शिपमेंट को फिलहाल रोकने के लिए कहा है। मगर ऑर्डर कम होने का कोई तत्काल जोखिम नहीं है। फार्मेक्सिल के महानिदेशक राजा भानु ने उम्मीद जताई कि पहले दिए गए ऑर्डर पूरे किए जाएंगे। उन्होंने कहा, ‘अभी कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है। घोषणा के आधार पर भविष्य की योजनाएं तय की जाएंगी।’