जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल (IPCC) ने अपनी अंतिम चेतावनी जारी की है। चेतावनी में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए विभिन्न देशों द्वारा किए जा रहे प्रयास पृथ्वी के तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। ऐेसे में इसे 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना कठिन होता जा रहा है।
IPCC ने अपनी ताजा सिंथेसिस रिपोर्ट में कहा है कि शायद ही ऐसा कोई वैज्ञानिक परिदृश्य होगा जहां दुनिया इस दशक के दौरान तापमान में वृद्धि, कंपाउंड हीटवेव, सूखे और समुद्र के स्तर में वृद्धि से बच सके।
पृथ्वी के औसत तापमान में 1.5 या 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि को औद्योगिकरण से पहले के तापमान के आधार पर मापा जाता है।
नीति निर्माताओं पर लक्षित सिंथेसिस रिपोर्ट सोमवार को जारी की गई। यह IPCC के छठे आकलन चक्र के तहत अंतिम निष्कर्ष है जो 1988 में इसकी स्थापना के बाद का भी अंतिम रिपोर्ट है। पहली आकलन रिपोर्ट (एआर1) 1990 में सामने आई और अंतिम आकलन रिपोर्ट (एआर6) 2021-22 के दौरान जारी की गई थी। IPCC का गठन संयुक्त राष्ट्र द्वारा जलवायु परिवर्तन की मौजूदा स्थिति पर नीति निर्माताओं को नियमित वैज्ञानिक आकलन प्रदान करने के लिए किया गया था।
साल 2040 तक की राह दिखाए जाने के बाद अब निकट भविष्य में IPCC की बैठक होने संभावना काफी कम है। IPCC के इस कार्य यक करीब एक हजार शोधकर्ता एवं वैज्ञानिक जुड़े हैं। इनमें कई मानते हैं कि पर्याप्त वैज्ञानिक चेतावनी जारी किए जा चुके हैं और अब समय आ गया है कि उन पर अमल किया जाए।
IPCC ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि एआर5 चक्र (AR5 cycle) के बाद से ही जलवायु संबंधी नीतियों और कानूनों में लगातार विस्तार हुआ है लेकिन अभी भी कमियां और चुनौतियां अब भी बरकरार हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अक्टूबर 2021 में घोषित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के आधार पर 2030 में वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन के मद्देनजर ऐसी आशंका है कि 21वीं सदी के दौरान पृथ्वी के तापमान में वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाएगी और उसे 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करना कठिन हो जाएगा।’ पिछले साल तक 33 देशों और यूरोपीय संघ ने कानून अथवा नीतिगत घोषणा के जरिये शुद्ध रूप से शून्य कार्बन उत्सर्जन के लिए लक्षित वर्ष की घोषणा की है।
इसके अलावा, सभी क्षेत्रों में जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए वित्तीय प्रवाह भी आवश्यकता से कम है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जीवाश्म ईंधन के लिए सार्वजनिक और निजी निवेश अभी भी काफी अधिक है।
रिपोर्ट में यह भी रेखांकित किया गया है कि विकासशील एवं गरीब देशों को उनके ऊर्जा परिवर्तन एवं जलवायु अनुकूलन योजना के लिए वित्त पोषण में भी काफी अंतर है। हालांकि एआर5 के बाद वैश्विक स्तर पर ट्रैक किए गए जलवायु वित्तपोषण में वृद्धि का रुझान दिखा है। मगर, मौजूदा वैश्विक वित्तीय प्रवाह पर्याप्त नहीं है जो पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों के कार्यान्वयन को बाधित करता है, खासकर विकासशील देशों में।