अमेरिकी मंदी की सबसे अधिक मार झेलने वाले वित्तीय संस्थानों में से प्रमुख सिटीग्रुप बैंक की मुश्किलें थमने का नाम ही नहीं ले रही हैं।
दुनिया के सबसे बड़े बैंक को घाटा भी अपने आकार के अनुसार ही उठाना पड़ रहा है। भारतीय मूल के विक्रम पंडित द्वारा चलाए जा रहे सिटीग्रुप बैंक को 2008 में अभी तक 43 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है।
भारत के सभी बैंकों को हुए नुकसान को जोड़ लिया जाए तब यह सिटी बैंक के नुकसान के बराबर बैठता है। इस साल की शुरूआत के बाद से सिटीग्रुप बैंक के बाजार पूंजीकरण में 26.63 फीसदी की दर से कमी आई है। बैंक की इस स्थिति ने अमेरिका के प्रमुख शेयर बाजार डाउ जोंस सूचकांक में इसके प्रदर्शन को प्रभावित किया है।
30 ब्लू चिप यानी बड़ी कंपनियों पर आधारित डाउ जोंस के सूचकांक में इसकी स्थिति सबसे खराब रही।
सिटीग्रुप बैंक की बाजार पूंजी में कमी बंबई स्टॉक एक्सचेंज के बैंकिंग क्षेत्र के सूचकांक बैंकेक्स की तुलना में कम रही। लेकिन इसका घाटा बैंकेक्स में शामिल 18 बैंकों को हुए नुकसान के बराबर रहा। वैसे नुकसान की होड़ में ये 18 भारतीय बैंक भी पीछे नहीं है। उनको भी इस दौरान लगभग इतना ही चूना लगा है।
सिटीग्रुप बैंक का बाजार मूल्यांकन भी इस दौरान तेजी से गिरा है। 2007 के आखिर में सिटी बैंक की कीमत 161 अरब डॉलर थी जो अब घटकर के वल 118 अरब डॉलर रह गई है। जबकि इसी दौरान बैंकेक्स में शामिल 18 बैकों का बाजार मूल्यांकन 136 अरब डॉलर से घटकर 92 अरब डॉलर हो गया है।