बाली में पिछले साल हुए जी20 सम्मेलन में चीन को बाली घोषणा के प्रस्तावित पैराग्राफ संख्या 33 को लेकर समस्या थी, जिसमें निजी व द्विपक्षीय कर्जदाताओं द्वारा दबाव वाली अर्थव्यवस्थाओं को दिए जाने वाले अपने कर्ज में कमी का आह्वान किया गया था। इसे देखते हुए अंतिम घोषणा में एक फुटनोट जोड़ा गया, जिसमें चीन का रुख शामिल था कि बहुपक्षीय विकास बैंक (एमडीबी) भी इसमें कमी कर सकते हैं।
फुटनोट में कहा गया है, ‘एक सदस्य के अलावा अन्य किसी का पैराग्राफ 33 के कर्ज के मसले पर अलग विचार नहीं था और बहुपक्षीय कर्जदाताओं जैसे एमडीबी द्वारा दिए जाने वाले कर्ज के तरीके के महत्त्व पर जोर दिया गया था।’
शुक्रवार को एक टेलीविजन चैनल ने खबर दी कि एक वरिष्ठ भारतीय प्रतिनिधि ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध पर जी20 के शेरपा स्तर की बातचीत में किसी साझा बयान को लेकर आमराय नहीं बन सकी है, यह बात गलत है। हालांकि उन्होंने विस्तार से कोई जानकारी नहीं दी।
भारत के राजनयिक ने कहा, ‘उसकी (फुटनोट) की निश्चित रूप से संभावना है। लेकिन सिर्फ एक ही समस्या है कि रूस यूक्रेन युद्ध कर्ज मसले की तुलना में ज्यादा गंभीर मसला है, जिस पर अलग अलग देशों की राय अलग अलग है।’
जी7 देश जहां यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस की कड़ी भर्त्सना करना चाहते हैं, साथ ही वे बाली की भाषा में मामले को निपटाने को इच्छुक हैं। वहीं रूस का माना है कि जी7 देशों की स्थिति बहुत ज्यादा बदल चुकी है और वे परोक्ष रूप से युद्ध में शामिल हैं और यूक्रेन को हथियार की आपूर्ति कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ चीन ने आधिकारिक रूप से कहा है कि भूराजनीतिक मसलों पर बात करने के लिए जी20 उचित मंच नहीं है।
ब्रिक्स के पूर्व शेरपा संजय भट्टाचार्य ने कहा कि ये समूह आम राय के आधार पर काम करते हैं, जिसका मतलब यह है कि फुटनोट सहित लिखित दस्तावेज से हर कोई निश्चित रूप से सहमत होगा। उन्होंने कहा, ‘यूएन की व्यवस्था में भी वोट की व्याख्या की जाती है, जो दस्तावेज का हिस्सा होता है। आप विरोध कर सकते हैं, लेकिन आपका विचार दिखना चाहिए। सैद्धांतिक रूप से यह किया जा सकता है। आप देशों के नाम का उल्लेख कर सकते हैं। लेकिन सभी देश निश्चित रूप से इस पर सहमत होने चाहिए।’
बहरहाल भट्टाचार्य ने कहा कि अगर दिल्ली जी20 सम्मेलन का कोई संयुक्त बयान या घोषणा नहीं जारी होता है तो उन्हें आश्चर्य होगा। उन्होंने कहा, ‘जब चर्चा शेरपा स्तर पर नहीं होती बल्कि राजनीतिक स्तर पहुंच जाती है, चाहे वह विदेश मंत्रियों के स्तर पर हो या दुर्लभ मामलों में नेताओं के स्तर पर हो, चीजों को अलग तरीके से देखा जाता है। अगर वे एक या दो मसले को नजरंदाज करना चाहते हैं, तो यह बहुत काम का होगा। अगर चीन सहमत नहीं होता है तो वह अलग थलग और चिह्नित हो जाएगा।’
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जी20 के नेताओं के सम्मेलन में नहीं आ रहे हैं वहीं इस बात को लेकर अटकलें बढ़ रही हैं कि चीन दिल्ली से संयुक्त बयान जारी नहीं होने देना चाहता है।
मीडिया से बातचीत में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलीवान ने कहा कि अगर चीन चाहता है कि वह आगे आए और मामले को बिगाड़ने वाले के रूप में अपनी भूमिका निभाए तो उनके सामने विकल्प है। उन्होंने कहा, ‘मैं यह कहना चाहता हूं कि नेता (चीन) वहां नहीं जा रहे हैं, लेकिन उनकी पूरी टीम उनके प्रमुख की इच्छा के मुताबपिक काम कर रही है। उनके शेरपा और समन्वयक काम पर लगे हैं। इसलिए मैं यह नहीं कह सकता या उनके रुख में कोई बुनियादी बदलाव है क्योंकि वहां राष्ट्रपति शी नहीं हैं।’
बहरहाल सुलीवान ने यह स्वीकार किया कि अंतिम दस्तावेज जारी होने या नेताओं में सहमति होने के पहले कुछ दूरी तय करनी है। उन्होंने कहा, ‘इसलिए हमारे समन्यवयक पिछले कुछ दिन से संयुक्त बयान पर दिन रात काम कर रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका आम राय बनाने की सद्भावना के साथ आया है। हम उम्मीद करते हैं कि अलग अलग मसलों पर समझौते हो सकते हैं, जिन पर विवाद है। हम ऐसा समझौता तैयार कर सकते हैं, जिसके साथ हर कोई हो।’