क्रेडिट संकट ने पूरी दुनिया की नींद उड़ा रखी है और इसे हल करने की कोशिशें भी जारी हैं।
महंगाई की मार ने आखिर यूरोपियन सेंट्रल बैंक को भी ब्याज दर बढ़ाने पर मजबूर कर दिया है। यह पहला मौका होगा जब बैंक इस तरह का कदम उठाएगा।
नीति निर्धारकों जैसे एक्जेल वेबर और क्रिस्टियन नोयर के बयानों ने उन निवेशकों और अर्थशास्त्रियों को अपने ख्याल बदलने पर मजबूर कर दिया है जो अब तक यह मानते आ रहे थे कि ईसीबी अमेरिकी फेडरल रिजर्व के रास्ते पर चलते हुए विकास की गति को हवा देने के लिए ब्याज दर घटा देगा।
दरअसल तेल और खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों के कारण महंगाई दर 16 साल के अधिकतम स्तर पर पहुंच गई है। मार्च 2008 में यह 3.6 फीसदी थी और ईसीबी की यह सारी कवायद इस हालत पर काबू पाने की कोशिश है। बेतहाशा बढ़ती महंगाई का नतीजा होगा तनख्वाहों में बढ़ोत्तरी की मांग और कंपनियां इस बोझ से जूझने के लिए कीमतें बढ़ाएंगी।
बैंक के लिए यह चिंता का कारण है। दिलचस्प बात यह है कि एक ही तरह के संकट से निपटने के लिए दुनिया के दो सबसे बड़े बैंकों ने बिल्कुल विरोधी किस्म के कदम उठाए हैं। एम्स्टरडैम के फोर्टिस बैंक एनवी के अर्थशास्त्री निक कोनिस का कहना है कि अधिकारी तुरंत दर बढ़ाने की बात नहीं कह रहे हैं लेकिन वह चर्चा के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं।
आखिर उनकी मजबूरी है क्योंकि मुख्य मंहगाई दर ने उनके होश फाख्ता कर दिए हैं। कोनिस का अनुमान है कि बैंक की यह कवायद यहीं नहीं थम जाएगी और वह साल 2009 के मध्य में भी ब्याज दर बढ़ाएगा।
ईसीबी ने पिछले महीने कहा था कि मुद्रास्फीति इस साल औसतन 2.9 फीसदी होगी और साल 2009 में 2.1 फीसदी रहने का अनुमान है। बैंक चाहता है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को 2 फीसदी के नीचे रखा जाए।