सर्वोच्च न्यायालय के संविधान पीठ ने गुरुवार को कहा कि प्रत्यक्ष सबूतों का अभाव होने पर भी लोक सेवक को परिस्थितिजन्य सबूत के आधार पर भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम (पीएसी) के तहत दोषी ठहराया जा सकता है। इस संविधान पीठ में न्यायमूर्ति एस ए नजीर, न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन, न्यायमूर्ति बी आर गवाई, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना शामिल थे। पीठ ने कहा कि यदि भ्रष्टाचार मामले में प्रत्यक्ष मौखिक या दस्तावेजी सबूत ना हो तो परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर साबित किया जा सकता है।
पीठ ने अपने आदेश को पढ़कर सुनाते हुए कहा कि अभियुक्त को कठघरे में लाने के लिए अभियोजन पक्ष को सबसे पहले रिश्वत की मांग और उसे स्वीकार करने को तथ्य के रूप में साबित करना होगा। इस तथ्य को मौखिक प्रमाण/दस्तावेजी प्रमाण के रूप में प्रत्यक्ष प्रमाण से साबित किया जा सकता है। प्रत्यक्ष, मौखिक या दस्तावेजी सबूतों के अभाव में रिश्वत मांगने और स्वीकारने को परिस्थितिजन्य सबूतों से भी साबित किया जा सकता है। इस मामले में अदालत ने स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार के बुनियादी तथ्यों की पुष्टि के बाद ही न्यायालय रिश्वत की मांग और स्वीकार करने के अनुमान को स्वीकार करेगा।
पीठ ने कहा कि यदि शिकायतकर्ता बयान से मुकर जाता है या उसकी मृत्यु हो जाती है या फिर सुनवाई के दौरान वह साक्ष्य पेश करने में असमर्थ रहता है तो किसी अन्य गवाह के मौखिक या दस्तावेजी सबूत को स्वीकार कर रिश्वत की मांग संबंधी अपराध को साबित किया जा सकता है या अभियोजन पक्ष परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर मामला साबित कर सकता है।
पीठ ने कहा, ‘मुकदमा कमजोर नहीं पड़ना चाहिए और न ही लोक सेवक के बरी होने के परिणाम के रूप में समाप्त होना चाहिए।’ न्यायालय ने प्रत्यक्ष सबूतों का अभाव होने पर भी लोक सेवक परिस्थितिजन्य सबूत के आधार पर भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत दोषी ठहराने के मुद्दे पर 22 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। खंड पीठ ने 2019 में यह मामला बड़े पीठ के सुपुर्द किया था।