हिंदी के सर्वाधिक प्रतिष्ठित समकालीन साहित्यकारों में से एक विनोद कुमार शुक्ल (86) वर्ष को साहित्य में उनके योगदान के लिए 2023 का प्रतिष्ठित पेन/नाबोकोव (PEN/Nabokov Award) अवार्ड देने की घोषणा की गई है। उनके साथ ही यह पुरस्कार जानी मानी नाटककार एरिका डिक्सन डेस्पेंजा को भी दिया जा रहा है।
पेन अमेरिका ने इसकी घोषणा करते हुए कहा, ‘कथाकार, उपन्यासकार, कवि और निबंधकार विनोद कुमार शुक्ल को हिंदी भाषा के महानतम समकालीन रचनाकारों में शुमार किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें 2023 का पेन/नाबोकोव अवार्ड दिया जा रहा है।’
शुक्ल को ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह’, ‘नौकर की कमीज’, ‘सबकुछ होना बचा रहेगा’ और ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ जैसी उनकी रचनाओं के लिए न केवल हिंदी बल्कि तमाम भाषाओं में अच्छी तरह जाना-पहचाना जाता है।
पेन अमेरिका अवार्ड के निर्णयकर्ताओं अमित चौधुरी, रोया हाकाकियान और माजा मेंजिस्टे ने एक वक्तव्य में कहा, ‘शुक्ल का गद्य और उनकी कविताएं गहरे प्रेक्षण का प्रतीक हैं। उनसे निकलने वाले स्वर एक अत्यंत सजग और बुद्धिमान प्रेक्षक के स्वर हैं। वह दशकों से लेखन कर रहे हैं और अब तक उन्हें वह पहचान नहीं मिली जिसके वे हकदार हैं। शुक्ला ने ऐसा साहित्य रचा है जिसने आधुनिकता को लेकर हमारी समझ को बदला है।’
गौरतलब है कि अविभाजित मध्य प्रदेश के राजनांदगांव जिले में जन्में शुक्ल की रचनाओं में जादुई यथार्थवाद की झलक देखी जा सकती है। उनके उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ और कहानी ‘बोझ’ पर मणि कौल ने एक फिल्म का निर्माण भी किया था।
वरिष्ठ साहित्यकार उदय प्रकाश ने इस घोषणा पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘विनोद कुमार शुक्ल एक विलक्षण रचनाकार हैं। उनके पास अपने आसपास की चीजों को देखने का एक अलग नजरिया है। उनकी रचनाओं में दृश्य और उनकी देखने की क्षमता दोनों बहु प्रभावी हैं। ज्यूरी ने भी इसी बात को रेखांकित किया है। उनके भीतर के लेखक को किसी खांचे में नहीं बांधा जा सकता है। मणि कौल ने उनकी पर्यवेक्षण क्षमता को बहुत पहले पहचान लिया था और उन्होंने उनकी रचनाओं पर फिल्में भी बनाईं।’
एक अन्य वरिष्ठ कवि-कथाकार कुमार अंबुज ने कहा, ‘विनोद कुमार शुक्ल ने अपनी कविता, कहानी और उपन्यास, तीनों विधाओं में वाक्यों की नयी, अप्रत्याशित संरचनाएँ संभव की हैं। हिंदी के शब्दों को अपूर्व दीप्ति और व्यंजक अर्थों से संपन्न कर दिया है। कल्पनाशीलता और फंतासी को जीवन की अनोखी रचनाशीलता में तब्दील करते हुए सामान्य मनुष्यों की दुविधा, मुश्किलों और विडंबनाओं के बयान दर्ज किए हैं। वे हिंदी की परंपरा में होते हुए भी सर्जना के नये प्रस्ताव करते रहे हैं कि देखिए, यथार्थ मेरी कला दृष्टि में इस तरह, इस शैली में मुखर होता है। यह शैली केवल विनोद कुमार शुक्ल से ही संलग्न हुई।
उन्होंने पाठकों को नये आस्वाद से परिचित ही नहीं कराया बल्कि उनमें उस आस्वाद को ग्रहण करने की क्षमता भी विकसित की। उन्होंने पाठकों को ही नया कर दिया। हिंदी के व्याकरण को अपनी कहन के अनुकूल बनाया और हमारे रोजमर्रा के अनुभवों को उस तरह कहा जैसा उनसे पहले नहीं कहा गया। उनको पढ़ते हुए आप अब तक देखी हुई चीज़ों का, आसपास की हलचलों और चुप्पियों का पुनराविष्कार करते हैं। विश्व पटल पर वे हिंदी रचनाशीलता के सच्चे, आधुनिक और योग्यतम प्रतिनिधि हैं। उनको प्राप्त यह सम्मान हिंदी और पूरे देश के लिए गौरव का विषय है।’