Pollution: राजस्थान और दिल्ली में पिछले पांच साल में इस बार पराली जलाने की सबसे अधिक घटनाएं दर्ज की गई हैं, जबकि इसके उलट पंजाब और हरियाणा में प्रशासन की सख्ती का कुछ असर दिखा है। प्रमुखता से धान उत्पादन करने वाले इन दोनों ही राज्यों में 2020 के बाद सबसे कम पराली जलाई गई है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के आंकड़ों के मुताबिक धान उत्पादन करने वाले प्रमुख छह राज्यों में इस साल 15 सितंबर से 17 नवंबर के बीच खेतों में पराली जलाने की कुल 25,108 घटनाएं सामने आई हैं। इनमें मध्य प्रदेश में सबसे अधिक 10,743, पंजाब में 8,404, हरियाणा में 1,082, उत्तर प्रदेश में 2,807, दिल्ली में 12 और राजस्थान में 2,060 जगह धान की पराली जलाने के मामले दर्ज किए गए।
दिल्ली में उत्तरी और उतरी-पश्चिमी जिलों में पराली जलाने के सबसे अधिक मामले देखे गए। राजस्थान में पराली जलाकर वायु को प्रदूषित करने में सबसे अधिक योगदान बारां, बूंदी, चित्तौड़गढ़, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, कोटा और सवाई माधोपुर का रहा।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सोमवार को औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 494 पर रहा। यहां प्रदूषण की कई दिन से ऐसी ही गंभीर स्थिति बनी हुई है। रविवार को शहर में एक्यूआई 441 पर था। दिल्ली के कई हिस्सों में यह 450 से ऊपर भी दर्ज किया गया। इसीलिए एजेंसियों ने यहां प्रदूषण को काबू करने के लिए ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) के चौथे चरण की पाबंदियां लागू कर दी थीं। ये पाबंदियां तभी लागू की जाती हैं जब एक्यूआई 450 या इससे ऊपर जाता है।
इसके तहत शहर में ट्रकों के प्रवेश पर प्रतिबंध, सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं में निर्माण कार्यों पर रोक तथा स्कूलों में 10वीं व 12वीं को छोड़ अन्य छात्रों की पढ़ाई बंद कर ऑनलाइन कक्षाएं चलाने जैसे उपाय शामिल हैं।
मौसम एजेंसियों ने सोमवार को वायु गुणवत्ता की स्थिति और खराब होने का पूर्वानुमान जाहिर किया था। वही हुआ भी। शहर के वातावरण में सोमवार को पूरे दिन धुंध छाई रही और शाम तक सूरज के दर्शन नहीं हुए। लोगों को घरों में भी सांस लेने में तकलीफ हुई।
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को सवाल उठाया कि दिल्ली सरकार ने प्रदूषण का स्तर बढ़ने के संकेतों के बावजूद इसे काबू करने के उपायों को लागू करने में इतनी देर क्यों लगाई? न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह के पीठ ने कहा, ‘जब शहर में एक्यूआई 300 और 400 बिंदु की तरफ बढ़ रहा था, उसी समय ग्रेप के चौथे चरण के तहत लगने वाली पाबंदियों को अमल में लाया जाना चाहिए था।’
दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने वायु प्रदूषण की खतरनाक होती स्थिति को उत्तर भारत के लिए ‘चिकित्सीय दृष्टि से आपातकाल’ करार दिया और इसे रोकने के लिए फौरन कदम उठाए जाने की जरूरत पर बल दिया। हालांकि दिल्ली सरकार को इस संकट का पता लगाने और इससे निपटने के लिए अभी विस्तृत कार्ययोजना पेश करनी है। अदालत ने प्रदूषण के स्तर में लगातार हो रही बढ़ोतरी से निपटने के लिए किए जाने वाले उपायों पर रिपोर्ट पेश करने को कहा है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन आने वाली मौसम पूर्वानुमान एजेंसी सफर के मुताबिक राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण में पराली के धुएं का योगदान 40 फीसदी होता है। तमाम उपायों के बावजूद पराली जलाने से रोकना अभी भी एक चुनौती बना हुआ है।
कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और विश्व बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु कहते हैं कि सरकार के लिए प्रदूषण पर काबू पाना शीर्ष प्राथमिकताओं में शामिल होना चाहिए। उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा, ‘यदि प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं किया गया तो भारत की विकास यात्रा को गहरा धक्का लग सकता है और लगातार वृद्धि का सिलसिला थम सकता है।’