आपराधिक न्याय व्यवस्था में सुधार के लिए एक ऐतिहासिक कदम में, तीन नए कानून – भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) – 1 जुलाई से लागू हो जाएंगे। ये कानून पिछले साल अगस्त में मानसून सत्र के दौरान संसद में पेश किए गए थे। ये क्रमशः औपनिवेशिक युग के भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की जगह लेंगे।
भारतीय न्याय संहिता
आपराधिक न्याय व्यवस्था में सुधार के लिए एक बड़े कदम के रूप में, 1 जुलाई से एक नया कानून, भारतीय न्याय संहिता (BNS) लागू हो जाएगा। यह 163 साल पुराने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की जगह लेगा और सजा से जुड़े मामलों में कई महत्वपूर्ण बदलाव लाएगा। BNS की एक खास बात ये है कि धारा 4 के तहत सजा के रूप में अब समुदाय सेवा को भी शामिल किया गया है। हालांकि, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि किस तरह की समुदाय सेवा कराई जाएगी।
यौन अपराधों के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। नए कानून के अनुसार, जो कोई शादी का झूठा वादा करके और उसे पूरा करने की नियत के बिना यौन संबंध बनाता है, उसे 10 साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। इसी तरह से धोखे से जुड़े मामलों को भी अब सख्ती से निपटाया जाएगा, जिसमें किसी की पहचान छिपाकर रोजगार, प्रमोशन या शादी का झूठा वादा करना शामिल है।
संगठित अपराध पर अब कानून सख्त होगा। इसको लेकर भारतीय न्याय संहिता (BNS) के दायरे में कई तरह की गैरकानूनी गतिविधियां आती हैं, जिनमें अपहरण, डकैती, गाड़ी चोरी, जबरन वसूली, जमीन हड़पना, सुपारी हत्या, आर्थिक अपराध, साइबर अपराध और इंसानों, ड्रग्स, हथियारों या अवैध सामानों और सेवाओं की तस्करी शामिल हैं।
इस कानून के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति या गिरोह मिलकर इन गतिविधियों में लिप्त होता है, तो उन्हें सख्त सजा भुगतनी होगी। भले ही वो किसी संगठित अपराध गिरोह के सदस्य हों या उनकी तरफ से काम करते हों। ये अपराध अक्सर हिंसा, धमकियों, डराने-धमकाने, जबरदस्ती या गैरकानूनी तरीकों से किए जाते हैं। इनका मकसद सीधा या परोक्ष रूप से पैसा या कोई फायदा उठाना होता है। ऐसे अपराध करने वालों को BNS के तहत कड़ी सजा दी जाएगी।
राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाले कार्यों के लिए, BNS आतंकवादी गतिविधि को परिभाषित करता है। इसके अनुसार, कोई भी गतिविधि जो आतंक फैलाने के इरादे से भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता या आर्थिक सुरक्षा को खतरा पहुंचाती है, उसे आतंकवादी गतिविधि माना जाएगा।
यह कानून भीड़ द्वारा हत्या (मॉब लिंचिंग) के गंभीर मुद्दे को भी संबोधित करता है। कानून कहता है, “जब पांच या उससे अधिक व्यक्तियों का समूह मिलकर किसी व्यक्ति की जाति, समुदाय, लिंग, जन्मस्थान, भाषा, व्यक्तिगत आस्था या किसी अन्य समान आधार पर हत्या करता है, तो ऐसे समूह के प्रत्येक सदस्य को मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा सकती है। साथ ही, उन पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।”
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता
अपराधों की जांच प्रक्रिया में भी बदलाव होंगे। 1973 के दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह लेने वाली भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSएस) कानून में कई अहम बदलाव किए गए हैं। इनमें से एक बदलाव विचाराधीन कैदियों से जुड़ा है।
अब पहली बार अपराध करने वालों को अधिकतम सजा की अवधि का एक तिहाई पूरा करने के बाद जमानत मिल सकेगी। हालांकि, इसमें कुछ अपवाद हैं, जैसे कि आजीवन कारावास या एक से ज्यादा आरोपों वाले मामले। इससे जमानत पाना आसान नहीं होगा।
इसके अलावा, कम से कम सात साल की सजा वाले अपराधों में अब फॉरेंसिक जांच अनिवार्य कर दी गई है। इसका मतलब है कि अपराध स्थल पर सबूत जुटाने और उनका रिकॉर्ड रखने का काम फॉरेंसिक विशेषज्ञ करेंगे। अगर किसी राज्य में फॉरेंसिक जांच की सुविधा नहीं है, तो वह दूसरे राज्य की सुविधा का इस्तेमाल कर सकता है।
BNSS में प्रस्तावित प्रमुख परिवर्तन
PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार, यह नया कानून भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली को सुव्यवस्थित और तेज करने के लिए महत्वपूर्ण संशोधन पेश करता है। मुख्य बदलाव इस प्रकार हैं:
कार्रवाई की समय-सीमा: यह विधेयक विभिन्न कानूनी प्रक्रियाओं के लिए विशिष्ट समय-सीमा निर्धारित करता है। मुख्य प्रावधानों में शामिल हैं:
बलात्कार पीड़िता की जांच करने वाले मेडिकल प्रैक्टिशनरों को जांच रिपोर्ट जांच अधिकारी को सात दिनों के भीतर जमा करनी होगी।
बहस पूरी होने के 30 दिनों के भीतर फैसला सुनाया जाना चाहिए, जिसे 60 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।
पीड़ितों को जांच की प्रगति के बारे में 90 दिनों के भीतर सूचित किया जाना चाहिए।
सत्र न्यायालयों को ऐसे आरोपों पर पहली सुनवाई से 60 दिनों के भीतर आरोप तय करना आवश्यक है।
भारत में अदालतों की व्यवस्था
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) अपराधिक मामलों के फैसले के लिए अदालतों की एक श्रेणी स्थापित करती है। इनमें शामिल हैं:
मजिस्ट्रेट की अदालतें: ये निचली अदालतें ज्यादातर आपराधिक मामलों की सुनवाई करती हैं।
सेशन कोर्ट: ये अदालतें सेशन जज की अध्यक्षता में चलती हैं और मजिस्ट्रेट की अदालतों के फैसलों के खिलाफ अपील सुनती हैं।
हाई कोर्ट: इन अदालतों में आपराधिक मामलों और अपीलों को सुनने और फैसला करने का स्वत: अधिकार होता है।
सुप्रीम कोर्ट: यह सर्वोच्च अदालत हाई कोर्ट के फैसलों के खिलाफ अपील सुनती है और कुछ विशेष मामलों में अपने मूल अधिकार का भी प्रयोग करती है।
CrPC राज्य सरकारों को 10 लाख से अधिक आबादी वाले किसी भी शहर या कस्बे को महानगर क्षेत्र घोषित करने का अधिकार देता है, जिससे मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की स्थापना होती है। नया विधेयक इस प्रावधान को हटा देता है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम
पुराने साक्ष्य कानून की जगह अब भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) आ गया है। ये खास तौर पर इलेक्ट्रॉनिक सबूतों से जुड़े मामलों में बदलाव लाता है। NLSIU यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों का कहना है कि ये नया कानून इलेक्ट्रॉनिक सबूतों के नियम को आसान बनाता है और और ऐसे सबूतों को दिखाने के तरीकों को ज्यादा साफ करता है। पहले सिर्फ हलफनामे काफी होते थे, अब और भी विस्तृत जानकारी देनी होगी।
साथ ही, कानून में अब और चीजें भी शामिल हो गई हैं, जैसे लिखी हुई स्वीकृति को भी सबूत माना जाएगा।
लेकिन, प्रोफेसरों का ये भी कहना है कि इस नए कानून में कई सारे बदलाव पहले से मौजूद चीजों को दोबारा बताने या थोड़ा बदलने से जुड़े हैं। ये काम पुराने कानून में ही किया जा सकता था, नया कानून बनाने की जरूरत नहीं थी। साथ ही, उन्होंने कानून में कुछ गलतियां भी पाई हैं जिन्हें सुधारा जाना चाहिए।