Maharashtra Elections 2024: अपने आंगन की दीवार से टेक लगाए खड़ी 45 वर्षीय सरस्वती जाधव का सब्र जवाब दे रहा है। वह कुछ दिन पहले हृदयाघात के बाद से अस्पताल में भर्ती अपने पति के बारे में कुछ अच्छी खबर सुनने के लिए बेचैन हैं। देश की अंगूर राजधानी नाशिक के दूरदराज के क्षेत्रों में स्थित मोहादी गांव की रहने वाली जाधव खेतों में मजदूरी करती हैं। कभी सोयाबीन या प्याज तो कभी अंगूर आदि के खेतों में काम करने के एवज में उन्हें प्रति दिन 250 से 300 रुपये दिहाड़ी मिलती है।
इस छोटी सी आमदनी से वह परिवार के लिए भोजन और पोषण जैसी सबसे जरूरी चीजें भी बमुश्किल जुटा पाती हैं। यदि स्वास्थ्य संबंधी कोई संकट खड़ा हो जाए तो जाधव जैसी कम आय वाले दिहाड़ी मजदूरों की वित्तीय गाड़ी फौरन पटरी से उतर जाती है। लेकिन, वह बताती हैं कि अब मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहिन योजना के तहत जुलाई से हर महीने उन्हें 1,500 रुपये मिल रहे हैं। इससे उन्हें अपने खर्च पूरे करने में कुछ हद तक सहारा मिल जाता है।
भरी आंखों से जाधव बताती हैं, ‘लाडकी बहिन योजना के तहत मुझे और मेरी बेटी को अभी तक 7,500-7,500 रुपये मिल चुके हैं। इसके अलावा कुछ हमने अपनी हर महीने की कमाई से बचत की है। यदि यह रकम नहीं होती तो मुझे अपने पति का इलाज कराने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता और पैसा जोड़ने के लिए हर दिन एक वक्त का खाना छोड़ना पड़ता। ‘
महाराष्ट्र में आगामी 20 नवंबर को विधान सभा चुनाव के लिए मतदान होना है। चुनाव के मद्देनजर इसी साल जुलाई में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुति गठबंधन सरकार ने लाडकी बहिन योजना की शुरुआत की थी। इसके तहत वार्षिक स्तर पर 2.5 लाख रुपये तक आमदनी वाले परिवारों की 21 से 65 आयु की पात्र महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये दिए जाते हैं। चुनाव नजदीक आते ही मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने ऐलान किया कि लाडकी बहिन योजना के तहत मिलने वाली रकम को 2,100 रुपये प्रतिमाह किया जाएगा।
महायुति गठबंधन के इस दांव की काट के लिए कांग्रेस नीत विपक्षी गठबंधन महा विकास आघाडी ने घोषणा की है कि वह सत्ता में आया तो महालक्ष्मी योजना के तहत प्रत्येक महिला को हर महीने 3,000 रुपये दिए जाएंगे। इसके अलावा राज्य की सरकारी बसों में महिलाओं का टिकट नहीं लगेगा। महा विकास आघाडी में कांग्रेस के अलावा शिवसेना (उद्धव) और शरद पवार की नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी एसपी) शामिल हैं। दोनों ही गठबंधन महिला मतदाताओं को लुभाने का प्रयास यूं ही नहीं कर रहे। राज्य में कुल 9.5 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें महिलाओं की संख्या 4.67 करोड़ है।
राजनीतिक दलों के इन चुनावी वादों के बावजूद महिलाएं इस बात को लेकर परेशान हैं कि वे खाद्य सामग्री, ईंधन और रोजमर्रा की चीजों की हर रोज बढ़ती महंगाई से कैसे निपटें।
अपना दर्द बयां करते हुए जाधव की पड़ोसी गायकवाड़ कहती हैं, ‘सरकार को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि हम उनकी राजनीति को नहीं समझते। भले ही मुझे हर महीने 1,500 रुपये मिल जाते हों, लेकिन इसमें मेरे बच्चे की पढ़ाई का खर्च भी पूरा नहीं पड़ता। इसके लिए मुझे अपनी बचत से पैसे देने पड़ते हैं। तेल, सब्जियों और अन्य रोजमर्रा की चीजों की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। महंगाई के दौर में सरकारी सहायता कुछ इसी तरह की हो गई है कि सरकार ने मेरे हाथ में कुछ पैसे रखे, मैंने इन्हें छू कर देखा और इतने भर में सरकार ने उन्हें वापस खींच लिया।’
गायकवाड़ की बातों में दम नजर आता है। खाद्य सामग्री के साथ भारत की खुदरा महंगाई दर वार्षिक आधार पर अक्टूबर में 14 महीने के उच्च स्तर पर 6.21 प्रतिशत तक पहुंच गई। पिछले महीने यह 5.49 प्रतिशत थी।
अक्टूबर के महीने में खाद्य महंगाई दर 10.87 प्रतिशत के स्तर पर रही, जो इससे पहले के महीने में 9.24 प्रतिशत थी। इसी प्रकार ग्रामीण महंगाई दर भी 6.68 प्रतिशत दर्ज की गई जो इससे पहले सितंबर में 5.87 प्रतिशत दर्ज की गई थी। वहीं, शहरी महंगाई दर 5.62 प्रतिशत तक चढ़ गई, जो एक महीने पहले 5.05 प्रतिशत थी।
जाधव अपनी पड़ोसी की बातों की काट करते हुए कहती हैं, ‘उनके खाते में कुछ रकम तो आ रही है न। यह कुछ नहीं से तो बेहतर है, जो महीने के खर्च में बड़ा सहारा देती है, क्योंकि खाने-पीने के सामान की कीमतें तो हर रोज बढ़ रही हैं। ऐसी योजनाओं का महिला मतदाताओं पर बहुत असर पड़ता है।’
जब महा विकास आघाडी के 3,000 रुपये हर महीने वाली महालक्ष्मी योजना पर सवाल किया जाता है तो पड़ोसन गायकवाड़ से मुखातिब होकर वह कहती हैं, ‘क्या वे सत्ता में हैं? क्या उन्होंने हमें पैसा दिया है? कम से कम यह सरकार इस बात का तो वादा कर रही है कि यदि वह सत्ता में बनी रही तो अगले पांच साल तक लाडकी बहिन योजना जारी रहेगी।’
सोलापुर के मालशिरस जैसे राज्य के अन्य कस्बों में लोग अलग-अलग तरह से राय व्यक्त करते हैं। अधिकांश यही कहते हैं कि देखते हैं भविष्य में इस प्रकार की प्रोत्साहन योजनाएं किस प्रकार चालू रहती हैं।
मालशिरस में एक महिला ने कहा, ‘महा विकास आघाडी गठबंधन का 3,000 रुपये हर महीने देने का वादा कुछ अवास्तविक सा लगता है। जहां तक महायुति द्वारा 2,100 रुपये देने की बात तो यह ठीक लगती है, लेकिन हमें इस बात पर बहुत कम भरोसा है कि चुनाव बाद इन वादों पर कोई अमल भी करेगा।’
यहां की महिलाएं घर, शौचालय और बच्चों की शिक्षा की सुविधाओं पर भी खुलकर अपनी बात रखती हैं और अपेक्षा करती हैं कि राजनीतिक दल नकद रकम देने के वादों के साथ-साथ इन मुद्दों पर भी कुछ बोलें।
नाशिक से लगभग 230 किलोमीटर दूर रोहिलागढ़ में अपने कपास के खेत में काम कर रहे अंकुश ने लाडकी बहिन योजना पर बहुत ही तीखी प्रतिक्रिया दी। उनका डर यूं ही नहीं है, समाज के कुछ तबकों के लिए इस योजना को अचानक बंद करने से वह इसके भविष्य को लेकर आशंकित नजर आते हैं।
वह अपनी आशंका व्यक्त करते हुए कहते हैं, ‘किसी भी योजना में कागजात की मांग ही पूरी नहीं हो पाती, ताकि खाते में जल्द से जल्द रकम आ जाए। सरकार जुलाई महीने से सभी के लिए यह योजना चला रही है, लेकिन क्या वह इसे जारी रख पाएगी? उन्हें इस बात की पूरी आंशका है कि चुनाव के बाद अधिकारी जन्म, आय, आयु, बैंक खाता संबंधी कागजों में कोई न कोई कमी निकाल कर योजना का लाभ देने से मना कर देंगे।’
पाटिल कहते हैं कि महाराष्ट्र में एक पारंपरिक मतदाता ऐसा रहा है जो पिछले कार्यकाल में सरकार के कामकाज के आधार पर वोट देता है। उन्होंने कहा, ‘हमने राजनीतिक नेताओं को कोविड-19 के साथ-साथ पिछले पांच साल के दौरान देखा है। इस दौरान भयानक सूखे का सामना भी समाज ने किया है। संकट के उस क्षणों में सरकार की ओर से त्वरित सहायता क्यों नहीं पहुंचाई गई? हम अपने घरों में महिलाओं को समझाते हैं कि किसे वोट देना है, इसलिए लाडकी बहिन जैसी योजनाओं का कोई खास असर नहीं होगा।’
पुणे में सरकारी कर्मचारियों को इस योजना से बाहर रखा गया है। यहां बातचीत में वे अपना गुस्सा खुलकर जाहिर करते हैं और सवाल पूछते हैं कि सरकार ने ऐसा क्यों किया?
हडपसर में एक सरकारी कर्मचारी ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा, ‘क्या हमें पैसे की जरूरत नहीं है? उन्होंने लाडकी बहिन योजना से हमें बाहर क्यों रखा? कानूनी कार्रवाई के डर से हमने इस योजना के तहत आवेदन नहीं किया। हम बहुत ज्यादा पैसा नहीं कमाते हैं, इसलिए हमें भी इस योजना का लाभ मिलना चाहिए था।’
वापस नाशिक चलते हैं, जहां, जाधव अपने मंद-मंद रोशनी से घिरे घर की धातु शीट की छत पर मारकर अपनी उंगलियों पर लगी कालिख के निशान लगाती हैं। वह व्यंग्यात्मक लहजे में कहती हैं, ‘यूं तो आप हमारे घर में गैस सिलिंडर रखा हुआ देख सकते हैं, इसके बावजूद हम चूल (लकड़ी के स्टोव) पर खाना बनाते हैं। यही वजह है कि हमारे घर की दीवारें धुएं से काली हो गई हैं। उज्ज्वला योजना का हमें कोई लाभ नहीं मिला है। हमें प्रत्येक सिलिंडर पर 830 रुपये चुकाने पड़ते हैं, जो मेरे बजट से बाहर की बात है।’