उज्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मौत की खबरों के बाद केंद्र एवं राज्यों के खाद्य सुरक्षा एवं दवा प्रशासन (एफएसडीए) के संयुक्त जांच दल ने मैरियन बायोटेक (Marion Biotech) के नोएडा संयत्र की जांच की है। जांच दल ने कंपनी के इस संयंत्र से नमूने एकत्र कर उन्हें जांच के लिए भेज दिया है। दूसरी तरफ उज्बेकिस्तान ने कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की है। ऐसी खबरें आई हैं कि उज्बेकिस्तान में सर्दी-जुकाम के इलाज में इस्तेमाल होने वाले इस कंपनी के कफ सिरप एवं टैबलेट के सेवन से कथित तौर पर 18 बच्चों की मौत हो गई है। इस खबर के बाद भारत से दवा निर्यात एक बार फिर विवादों में घिर गया है।
इस बीच, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के प्रवक्ता ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि संगठन उज्बेकिस्तान के स्वास्थ्य अधिकारियों के लगातार संपर्क में है और आगे किसी तरह की जांच में पूरा सहयोग देने के लिए तैयार है। समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार मैरियन बायोटेक ने विवाद में आए कफ सिरप का उत्पादन रोक दिया है। कंपनी के कानूनी प्रतिनिधि हसन हैरिस ने कहा, ‘हम उज्बेकिस्तान में बच्चों की मौत से दुखी हैं। हम जांच की रिपोर्ट के आधार पर कदम उठाएंगे।’
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने ट्विटर पर लिखा कि केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) 27 दिसंबर से उज्बेकिस्तान के राष्ट्रीय दवा नियामक के साथ लगातार संपर्क में है। मांडविया ने कहा, ‘सूचना मिलने पर यूपी एफएसडीए और सीडीएससीओ की टीम ने मैरियन बायोटेक के नोएडा संयंत्र की संयुक्त जांच की है। जांच रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।’ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि मैरियन बायोटेक के कफ सिरप डॉक-1 मैक्स और इसके कथित प्रतिकूल असर को लेकर उज्बेकिस्तान से खबरें आ रही हैं। बयान में कहा गया कि स्वास्थ्य मंत्री के निर्देश पर सीडीएससीओ उज्बेकिस्तान के राष्ट्रीय दवा नियामक के साथ संपर्क में है।
विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि उज्बेकिस्तान में कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे कंपनी से संबद्ध कुछ लोगों को वहां भारतीय दूतावास आवश्यक मदद दे रहा है। समाचार एजेंसी पीटीआई ने विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची के हवाले से बताया कि उज्बेकिस्तान के अधिकारियों ने भारत के साथ यह मुद्दा नहीं उठाया है मगर भारतीय दूतावास ने उज्बेकिस्तान के अधिकारियों से जांच से जुड़े तथ्यों की मांग की है।
बागची ने कहा, ‘हमें खबर मिली है कि उज्बेकिस्तान में कंपनी के स्थानीय प्रतिनिधि सहित कुछ लोगों के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया शुरू की गई है। इसे देखते हुए हम उन्हें अपने दूतावास के माध्यम से जरूरी मदद दे रहे हैं। ‘ उज्बेकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि डॉक-1 मैक्स के नमूने में एथिलीन ग्लाइकॉल पाया गया है। सर्दी-जुकाम के इलाज में डॉक-1 मैक्स सिरप और टैबलेट का इस्तेमाल होता है। एथिलीन ग्लाइकॉल दवाओं में मिलने से जहरीला हो जाता है। यह रसायन उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले ग्लिसरिन होता है और दवा के रूप में इसके इस्तेमाल की अनुमति नहीं है। एथिलीन ग्लाइकॉल के सेवन से दौरे (कन्वल्शन) आ सकते हैं और गुर्दे को क्षति पहुंच सकती है।
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इससे कुछ महीने पहले (डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि भारतीय कंपनी मेडन फार्मास्युटिकल्स द्वारा बनाए गए कफ सिरप से गाम्बिया में 70 बच्चों की मौत हो गई। इसके बाद भारतीय नियामकों ने मेडन फार्मा के सोनीपत कारखाने में उत्पादन रुकवा दिया और नमूने इकट्ठे किए। लेकिन इसी महीने भारतीय औषधि महानियंत्रक ने कहा कि नमूनों में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई। उसने डब्ल्यूएचओ को कड़े शब्दों में पत्र लिखकर कहा कि उसने हड़बड़ी में दोनों घटनाओं को जोड़ दिया था। मगर डब्ल्यूएचओ अपनी बात पर अड़ा रहा और उसने कहा कि घाना तथा स्विट्जरलैंड में उसकी प्रयोगशालाओं में उस कफ सिरप की जांच की गई और उसमें जरूरत से ज्यादा एथिलीन ग्लाइकॉल और डाईएथिलीन ग्लाइकॉल पाया गया। मेडन फार्मा के कारखाने में उत्पादन दोबारा शुरू नहीं किया गया है।