एक भारतीय वार्ताकार ने पिछले हफ्ते बाकू में कहा कि समृद्ध देशों (ग्लोबल नॉर्थ) ने कम समय में अमीर बनने के लिए पृथ्वी को प्रदूषित कर दिया है। अब वे हमसे (विकासशील देशों से) इस समस्या को दूर करने का दबाव देकर और भी अमीर बनने का प्रयास कर रहे हैं। संक्षेप में कहें तो यह वैश्विक जलवायु वित्त प्रस्ताव का सार था, जिसे पूरा करने के लिए 11 साल की समय सीमा के साथ आज अपनाया गया।
अंतिम मसौदे में विकासशील देशों की कुल जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पैसों की जरूरतों के लिए 6 लाख करोड़ डॉलर सालाना की मांग को बेहद कम करके 1.3 लाख करोड़ डॉलर कर दिया गया। इसके साथ ही सार्वजनिक और निजी स्रोतों से 1.3 लाख करोड़ डॉलर वार्षिक अनुदान की आवश्यकता को घटाकर 300 अरब डॉलर कर दिया गया है।
29वें संयुक्त राष्ट्र वैश्विक जलवायु शिखर सम्मेलन का आयोजन स्थल बाकू का ओलिंपिक स्टेडियम उस समय तालियों की आवाज से गूंज उठा जब भारत ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन द्वारा पेश किए गए वैश्विक जलवायु फाइनैंस प्रस्ताव को अस्वीकार करने में विकासशील देशों का जोरदार नेतृत्व किया।
भारत ने इस समझौते को ‘अनुचित’, ‘बेहद खराब’, और ‘भ्रामक’ करार दिया। नाइजीरिया ने इसे ‘मजाक’ बताया और बोलीविया ने कहा कि यह कुछ इस तरह का है कि ‘हर आदमी अपना बचाव खुद करे’। विकासशील देशों के समूह और छोटे द्वीप राष्ट्रों का संघ सम्मेलन कक्ष से बाहर निकल गए।
भारत ने कहा, ‘संबंधित पक्षों को अपनी बात नहीं रखने देना और उन्हें नजरअंदाज करने का प्रयास यूएनएफसीसीसी (जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र रूपरेखा सम्मेलन) के त्रिपक्षीय प्रणाली के विरूद्ध है और हम इस प्रस्ताव को अपनाए जाने वाले अनुचित तरीकों पर घोर आपत्ति जताते हैं।’
लेकिन जब कॉप29 के प्रेसिडेंट मुख्तार बाबायेव ने सुबह के एजेंडा आइटम 11ए, जलवायु वित्त पर नए सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य (एनसीक्यूजी) को अपनाते हुए जलवायु फाइनैंस के लिए ज्यादातर कर्ज के जरिये में 300 अरब डॉलर का प्रस्ताव किया तो भारत सहित किसी ने भी आपत्ति नहीं जताई।
टेरी की फेलो और पूर्व वार्ताकार आर आर रश्मि ने कहा कि कॉप अध्यक्षों ने पहले भी कानकुन और दोहा में भी आपत्तियों के बावजूद प्रस्ताव पर फैसला किया है। यदि आपत्ति करने वालों की गैर-मौजूदगी में प्रसताव किया जाता है तो उसे अपना लिया जाता है और सभी को इसका पालन करना होता है। उन्होंने कहा कि यूएनएफसीसीसी में प्रस्ताव अपनाने के लिए कोई मतदान नहीं होता है।
क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क की कार्यकारी निदेशक तस्नीम इस्सप ने कहा, ‘विकसित देशों में विश्वास की कमी के कारण यह बीते कई वर्षों का सबसे भयावह जलवायु वार्ता रही है। यह सम्मेलन कॉप के लिए धन का प्रबंध करना था मगर ग्लोबल नॉर्थ ने इसमें ग्लोबल साउथ को एक तरह से धोखा दिया है। कुल मिलाकर विकासशील देशों के पास इस अनुचित समझौते को स्वीकार करने का कोई विकल्प नहीं था।’
‘अनुचित करार’ से तीन साल की योजना पर पानी फिरने का खतरा है, जिसमें ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5-2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने की योजना बनाई गई थी। निष्पक्ष फाइनैंस समझौता राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित नए योगदान की बुनियाद थी।