भारत को 2047 तक जैव प्रौद्योगिकी में वर्चस्व हासिल करने पर जोर देना चाहिए। यह बात बेंगलूरु प्रौद्योगिकी सम्मेलन के दौरान बायोकॉन की कार्यकारी चेयरपर्सन किरण मजूमदार शॉ ने कही है। उन्होंने कहा कि यह लक्ष्य देश को वैश्विक मानकों पर अपने स्वयं के आविष्कारों की कल्पना करने, डिजाइन बनाने, इंजीनियरिंग, विनिर्माण और विनियमन करने के वास्ते सशक्त करेगा।
भारतीय जैव प्रौद्योगिकी की आगे की रणनीति पर मजूमदार शॉ ने भारत की जैव अर्थव्यवस्था के तेजी से हो रही वृद्धि पर प्रकाश डाला। यह 2014 में मात्र 10 अरब डॉलर से बढ़कर 2024 में 165 अरब डॉलर हो गई है और 2030 तक इसके 330 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। उन्होंने कहा कि इस गति को बरकरार रखने और इसकी पूरी क्षमता को भुनाने के वास्ते हमें एक बड़ी छलांग की दरकार है।
आगे का रास्ता बायो ई-3 ढांचे को गति देने पर टिका है। यह एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण है, जो जैव-अर्थव्यवस्था, जैव-पर्यावरण और जैव-रोजगार को एक साथ लाता है। इसमें उन्नत जैव-विनिर्माण को बढ़ावा देना शामिल है ताकि भारत को बायोसिमिलर, कॉम्प्लेक्स जेनेरिक, स्मार्ट प्रोटीन, टीके, औद्योगिक जैव-प्रौद्योगिकी और सिंथेटिक जीव विज्ञान के क्षेत्र में एक वैश्विक महाशक्ति के रूप में स्थापित किया जा सके। इस पैमाने को हासिल करने के वास्ते मजूमदार शॉ ने बुनियादी ढांचे में भारी भरकम निवेश करने पर जोर दिया।