फरवरी 2022 में रूसी हमले से पहले यूक्रेन में पढ़ाई कर रहे 23,515 भारतीयों में से करीब आधे छात्रों ने दूसरे देशों के विश्वविद्यालयों में दाखिला ले लिया है। घटनाक्रम की जानकारी रखने वालों ने बताया कि ज्यादातर छात्र पढ़ाई करने रूस, जॉर्जिया, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान और किर्गिस्तान चले गए हैं।
कीव में भारतीय दूतावास से मिले आंकड़ों के मुताबिक करीब 10 फीसदी प्रभावित छात्र अप्रैल 2023 तक भारत लौट आए हैं। इनमें से करीब एक-चौथाई छात्र भारत में रहकर यूक्रेन से ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं और बाकी या तो पढ़ाई पूरी कर चुके हैं या बीच में ही छोड़ चुके हैं।
इन छात्रों, खास तौर पर मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन जाने वाले छात्रों के लिए पिछला डेढ़ साल अनिश्चितता में गुजरा। भारतीय दूतावास के आंकड़ों के अनुसार 2,300 छात्र यूक्रेन से लौट आए हैं। बेंगलूरु में शिक्षा परामर्श क्षेत्र की एक फर्म ने कहा कि युद्ध से प्रभावित छात्रों में से करीब आधे दूसरे देशों में दाखिले ले चुके हैं।
यूक्रेन में पढ़ाई करने वाले गुजरात के मोहित पारेख ने उज्बेकिकस्तान की समरकंद स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया है। पारेख ने कहा, ‘पिछले साल की शुरुआत में यूक्रेन से वापस आने के बाद मैंने पांचवां सेमेस्टर ऑनलाइन पूरा किया। मगर सितंबर में मैंने यूक्रेन की बीएसएमयू से अपना ट्रांसफर उज्बेकिस्तान की समरकंद स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी में करा लिया क्योंकि मेडिकल की पढ़ाई नियमित कक्षा में ही हो सकती है।’
पारेख यूक्रेन में जंग छिड़ने के बाद केंद्र सरकार के ‘ऑपरेशन गंगा’ के तहत भारत लौटे थे। उस अभियान में भारतीय वायु सेना और निजी विमानन कंपनियों की 90 उड़ानों से भारतीय लाए गए थे। यूक्रेन में एमबीबीएस पढ़ रहे छात्रों के अभिभावक संघ के अध्यक्ष आर बी गुप्ता ने कहा कि 8 से 10 हजार छात्रों ने रूस, जॉर्जिया, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान और किर्गिस्तान जैसे देशों के विश्वविद्यालयों में ट्रांसफर करा लिया है। करीब 2,300 छात्र यूक्रेन लौट गए हैं और 4,000 से 5,000 छात्र भारत में रहकर ही ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं।
युद्ध शुरू होने के बाद से करीब 3-4 हजार छात्र पढ़ाई पूरी कर चुके हैं। यूक्रेन वापस जाने वाले छात्र रोमानिया, मालदोवा और पोलैंड के रास्ते यूक्रेन पहुंचे हैं। फरवरी तक यह मार्ग खुला हुआ था और छात्र इनमें से किसी एक देश में पहुंचकर सड़क के रास्ते यूक्रेन पहुंचे। मगर अवैध आव्रजन से बचने के लिए सरकार ने वीजा देना बंद कर दिया है।
यूक्रेन के कई विश्वविद्यालयों के भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले एक शिक्षा सलाहकार ने बताया कि पांचवें और छठे वर्ष के छात्र भारत में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं क्योंकि उन्हें ट्रांसफर लेने का कोई फायदा नहीं था। दूसरे से चौथे वर्ष की पढ़ाई कर रहे छात्र ट्रांसफर ले रहे हैं, जो खर्चीली और पेचीदा प्रक्रिया है।
एक शिक्षा सलाहकार ने कहा, ‘यूक्रेन के कुछ विश्वविद्यालयों ने ट्रांसक्रिप्ट (छात्र का अधिकृत रिकॉर्ड) देने के लिए पूरे साल की फीस मांगी थी। इन विश्वविद्यालयों ने छात्रों को ट्रांसक्रिप्ट लेने के लिए खुद आने या किसी अधिकृत प्रतिनिधि को भेजने के लिए कहा है। यूक्रेन के लिए अभी कोई सीधी उड़ान नहीं है और पड़ोसी देशों के रास्ते वहां पहुंचना काफी कठिन हो गया है।’
यूक्रेन में मेडिकल की डिग्री हासिल करने के लिए दो परीक्षा पास करनी होती है- तीन साल की पढ़ाई पूरी करने पर केआरओके-1 और छठे साल की पढ़ाई पूरी करने पर केआरओके-2। यह परीक्षा ऑफलाइन होती है। मगर युद्ध से प्रभावित छात्रों के लिए इस साल जून-जुलाई में भारत केआरओके परीक्षा आयोजित की जा रही है।
यूक्रेन के विश्वविद्यालय में मेडिकल की छात्र शिवांगी सिंह ने जर्मनी जाना पसंद किया और वहीं से केआरओके परीक्षा में शामिल हुईं। उन्होंने कहा कि जर्मनी पढ़ाई पूरी करने में मदद कर रहा है और यह सुरक्षित भी है।
दूसरे देशों में चिकित्सा की पढ़ाई करने वाले छात्रों को भारत में प्रैक्टिस करने की इजाजत तभी मिलती है, जब वे राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित फॉरेन मेडिकल ग्रैजुएट एक्जाम (एफएमजीई) पास कर लेते हैं। कोविड-19 के बाद और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भारत में रहकर ऑनलाइन पढ़ाई करने और एफएमजीई पास करने वाले छात्रों को भारत में दो साल इंटर्नशिप करनी होगी ताकि उन्हें व्यावहारिक अनुभव मिल सके।
गुप्ता ने कहा कि इसी वजह से अंतिम वर्ष के कई छात्रों ने भारत में रहकर ही ऑनलाइन पढ़ाई करने का फैसला किया क्योंकि उन्हें दो साल इंटर्नशिप तो हर हाल में करनी होगी। दिलचस्प है कि करीब 15 से 20 फीसदी छात्र ही एफएमजीई पास कर पाते हैं और बाकी इसके लिए बार-बार कोशिश करते हैं या डॉक्टर बनने का सपना ही छोड़ देते हैं। गुप्ता ने कहा कि सरकार ने नवंबर 2021 में कहा था कि छात्रों को समय बरबाद करने के बजाय उन देशों में मेडिसिन प्रैक्टिस का लाइसेंस लेने का प्रयास करना चाहिए जहां से उन्होंने डिग्री ली है।
पारेख ने कहा कि उज्बेकिस्तान में मेडिकल की पढ़ाई का खर्च और गुणवत्ता यूक्रेन जैसी ही है। यही वजह है कि कई भारतीय छात्र पिछले 16 महीनों में यूक्रेन से ट्रांसफर लेकर उज्बेकिस्तान चले गए हैं। युद्ध से पहले उज्बेकिस्तान में 150 से 200 भारतीय छात्र मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे, जिनकी संख्या अब बढ़कर करीब 800 हो गई है। इसमें नए छात्र भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि यूक्रेन से भारत आने वाले प्रथम वर्ष के कई छात्रों ने देश में ही दूसरे पाठ्यक्रम में दाखिला ले लिया है।
भारत से हर साल करीब 1 लाख छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने विदेश जाते हैं। इनमें से ज्यादा कैरिबियाई देशों, स्वतंत्र राष्ट्रकुल के देशों, यूरोपीय संघ और चीन का रुख करते हैं। गुप्ता ने कहा कि भारत-चीन तनाव की वजह से चीन से मेडिकल की डिग्री लेने वाले छात्र साल-दर साल कम हुए हैं। यूक्रेन तथा उसके पड़ोसी देशों में मेडिकल की पढ़ाई का खर्च 25 से 30 लाख रुपये आता है जबकि भारत में निजी कॉलेजों से मेडिकल की पढ़ाई करने में 60 लाख से 1 करोड़ रुपये या ज्यादा भी लग जाते हैं।