प्रतीकात्मक तस्वीर
महाराष्ट्र में असामान्य न्यूरोलॉजिकल बीमारी गुइलेन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के 127 संदिग्ध मरीज मिले हैं और दो लोगों की मौत भी इसी बीमारी से होने का संदेह है। हालांकि, पश्चिम बंगाल को छोड़कर देश के अन्य राज्यों में अभी इसका असर देखने को नहीं मिला है। पश्चिम बंगाल में चिकित्सकों ने बीमार पड़े कुछ बच्चों में जीबीएस होने का अंदेशा जताया है।
आखिर महाराष्ट्र और खासकर पुणे में इसका प्रकोप क्यों देखा जा रहा है? जानकारों का कहना है कि इसका एक बड़ा कारण दूषित जलस्रोत हो सकता है।
फोर्टिस हॉस्पिटल मुलुंड (मुंबई) के कंसल्टेंट-न्यूरोलॉजी डॉ. निखिल जाधव ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि भारत में शरद ऋतु के दौरान ही जीबीएस के मामले दिखते हैं और मरीजों की संख्या बढ़ती है। उन्होंने कहा, ‘कैंपिलोबैक्टर जेजुनी संक्रमण के कारण जीबीएस का प्रकोप पहले चीन में देखने को मिला था। पुणे में जो मौजूदा प्रकोप है उसका एक बड़ा कारण बड़ी आबादी के लिए दूषित जलस्रोत हो सकता है।’
जाधव का कहना है कि किसी चिकित्सक से अगर तुरंत इलाज शुरू कराया जाए तो यह सही रहेगा। जिन मरीजों ने लक्षण शुरू होने के 5 से 7 दिनों के भीतर इलाज शुरू करा दिया तो आगे चलकर वे स्वस्थ हो जाते हैं।
मौजूदा प्रकोप का एक और कारण रोगाणु का म्यूटेंट वेरियंट भी हो सकता है और पहले स्थानीय लोगों ने इसका सामना नहीं किया था।
मुंबई के सैफी हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. आशिष गोसर ने समझाया कि मामले में वृद्धि एक नए स्ट्रेन के कारण हो सकती है, जो म्यूटेट होकर महाराष्ट्र में फैल गया है। उन्होंने कहा, ‘हर बार जब कोई व्यक्ति इस वायरस के संपर्क में आता है तो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता काफी अधिक होती है। इस वायरस में संभवतः शरीर के साथ कुछ प्रतिजनी समानताएं हैं, यही कारण है कि हम इस भौगोलिक क्षेत्र में जीबीएस के अधिक मामले देख रहे हैं।’ जीबीएस एक असामान्य, लेकिन गंभीर दाहक बीमारी है, जो तंत्रिकाओं को प्रभावित करती है। आमतौर पर जीबीएस किसी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल अथवा श्वसन संक्रमण के बाद होता है, जब शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली संक्रमण के खिलाफ एंटीबॉडी तैयार करती है। दुर्भाग्य से ये एंटीबॉडी गलती से शरीर की ही तंत्रिकाओं पर हमला करती हैं, जिससे काफी कमजोरी हो सकती है, जो अक्सर हाथ-पैरों से शुरू होकर श्वसन प्रणाली को प्रभावित कर सकती है।
सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल के वरिष्ठ कंसल्टेंट डॉ. मनीष छाबड़िया ने कहा कि आमतौर पर जीबीएस कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी जैसे जीवाणु संक्रमण से शुरू होता है, जो दूषित पानी से फैल सकता है। श्वसन संक्रमण को भी जीबीएस का कारण माना गया है। उन्होंने कहा, ‘भले ही अभी महाराष्ट्र में मामले बढ़ रहे हैं मगर यह ध्यान रखना होगा कि यह कहीं भी फैल सकता है। शुरुआती संक्रमण कम होने के कुछ दिनों अथवा हफ्तों के बाद इसके लक्षण दिखते हैं।’
हालिया रिपोर्ट्स ने पश्चिम बंगाल में इसकी चिंताजनक स्थिति बयां की है, जहां कई बच्चों में जीबीएस का इलाज किया गया है। सबसे दुखद मामला उत्तर 24 परगना का था, जहां एक 17 वर्षीय छात्र की सेप्टिक शॉक और मायोकार्डिटिस से मौत हो गई, डॉक्टर ने उसमें जीबीएस होने का अंदेशा जताया था। सात और आठ साल के दो अन्य छात्र भी कोलकाता में वेंटिलेटर पर हैं, जिनमें एक की हालत कई हफ्तों बाद सुधर रही है।
जीबीएस भले ही एक असामान्य बीमारी है, लेकिन महाराष्ट्र में बढ़ते मामलों ने चिंता बढ़ा दी है। पीने से पहले पानी को उबालना, बासी और खुला भोजन नहीं करना और समय-समय पर हाथ धोने जैसे कुछ स्वच्छता उपायों के जरिये संक्रमण के खतरे को कम किया जा सकता है। जैसे-जैसे मामला बढ़ता जा रहा है, स्वास्थ्य अधिकारी लोगों से सतर्क रहने की अपील कर रहे हैं। साथ ही उनका कहना है कि मांसपेशियों में कमजोरी जैसे लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।