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प्राइवेट कंपनियों के लिए आसान होगी लड़ाकू विमान बनाने की राह: रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह

रक्षा सचिव ने कहा, ‘इस क्षेत्र में आने वाली किसी भी नई कंपनी के लिए चुनौतियां जरूर होंगी, लेकिन हम कम से कम मौजूदा बाधाओं को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं।’

Last Updated- July 07, 2025 | 11:20 PM IST
Defence Secretary Rajesh Kumar Singh

सरकार लड़ाकू विमानों के विनिर्माण क्षेत्र में आने वाली नई कंपनियों को ल​​​क्षित सहायता देने के लिए तैयार है। इसके जरिये वह दूसरे लड़ाकू विमान विनिर्माता तैयार करने के लिए अनुकूल माहौल बनाने के अपने लक्ष्य को हासिल करना चाहती है। लड़ाकू विमान बनाने वाली दूसरी कंपनी संभवत: निजी क्षेत्र से होगी।

रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि सरकार उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान (एएमसीए) कार्यान्वयन मॉडल के जरिये सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ-साथ इस क्षेत्र में उतरने वाली नई कंपनियों को ल​क्षित सहायता देने के लिए तैयार है। उन्होंने एएमसीए की डिजाइन एजेंसी एरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (एडीए) की बेंगलूरु में शुक्रवार को हुई एक महत्त्वपूर्ण बैठक के बाद यह बात कही। बैठक में लड़ाकू विमान क्षेत्र में दिलचस्पी रखने वाली दो दर्जन से ज्यादा कंपनियों ने भाग लिया।

रक्षा सचिव ने कहा कि पांचवीं पीढ़ी के पहले लड़ाकू विमान का प्रोटोटाइप तैयार करने की निविदा हासिल करने में एचएएल के फायदे को सरकार भी स्वीकार करती है। मगर सरकार का मानना है कि देश में कम से कम ऐसी दो संस्थाओं के लिए गुंजाइश है।

इस प्रतिस्पर्धा में दिलचस्पी रखने वाली निजी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों की एक प्रमुख चिंता के बारे में रक्षा सचिव ने कहा, ‘एएमसीए प्रोटोटाइप के लिए विकास-सह-उत्पादन भागीदार के रूप में पात्रता ​हासिल करने वाली निजी कंपनियों को संभवत: रियायती दरों पर भारतीय वायु सेना के अड्डे और सामान्य परीक्षण प्रतिष्ठानों तक पहुंच उपलब्ध कराई जा सकती है। ये कंपनियां अकेले अथवा किसी संयुक्त उद्यम या कंसोर्टियम के भागीदार के रूप में यह पात्रता हासिल कर सकती हैं।’

निजी उद्योग ने एएमसीए कार्यान्वयन मॉडल का स्वागत किया है। इसके तहत निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्र की भारतीय रक्षा कंपनियों को स्टेल्थ लड़ाकू विमान का प्रोटोटाइप तैयार करने के लिए प्रतिस्पर्धा करने का समान अवसर दिया गया है। मगर उन्हें एचएएल की तरह समान अवसर अभी उपलब्ध नहीं होगा। उद्योग के एक आंतरिक सूत्र ने बताया कि बेंगलूरु की इस महारत्न कंपनी की परिसंपत्तियां सरकार द्वारा वित्त पो​षित हैं। इसका मतलब साफ है कि एचएएल परिसंप​त्ति निर्माण एवं उनके रखरखाव का खर्च वहन नहीं करती है। इन परिसंपत्तियों में परीक्षण एवं विकास के लिए उसके विमानन प्रतिष्ठान भी शामिल हैं।

निजी कंपनियों का कहना है कि खुद अपने दम पर बुनियादी ढांचे को नए सिरे से तैयार करना काफी महंगा होगा। निजी क्षेत्र की एक रक्षा कंपनी के अधिकारी ने अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि एचएएल अपने मौजूदा और संभावित ऑर्डर वॉल्यूम के आधार पर एएमसीए विकास कार्यक्रम के लिए प्रतिस्पर्धियों से कम बोली लगाने की स्थिति में है। फरवरी में एचएएल ने संकेत दिया था कि 2025-26 में उसका ऑर्डर बुक 2.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है। कल्याणी समूह, लार्सन ऐंड टुब्रो, टाटा समूह और अदाणी समूह जैसी निजी क्षेत्र की प्रमुख कंपनियां इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए उत्सुक हैं।

रक्षा सचिव ने कहा, ‘इस क्षेत्र में आने वाली किसी भी नई कंपनी के लिए चुनौतियां जरूर होंगी, लेकिन हम कम से कम मौजूदा बाधाओं को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं।’

इस निष्पादन मॉडल को मई के आ​खिर में मंजूरी दी गई थी। इसके तहत निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा कंपनियां स्वतंत्र रूप से, संयुक्त उद्यम बनाकर अथवा किसी कंसोर्टियम में शामिल होकर एएमसीए विकास कार्यक्रम के लिए बोली लगा सकती हैं। बोली लगाने वालों में राष्ट्रीय कानूनों और विनियमों का अनुपालन करने वाली भारतीय कंपनियां होनी चाहिए।

यह देश में लंबे समय से चली आ रही परंपरा से हटकर है। अब तक एचएएल ने लड़ाकू विमानों के लिए घरेलू उत्पादन एजेंसी के रूप में काम किया है। वह ऐसे प्लेटफॉर्म बनाने वाली एकमात्र भारतीय कंपनी है। मगर सरकार के इस कदम को एचएएल के एकाधिकार को खत्म करने के लिए उठाए गए एक ठोस कदम के रूप में देखा जा रहा है।

जून में एडीए ने एएमसीए के प्रोटोटाइप विकास के लिए अ​भिरुचि पत्र (ईओआई) आमंत्रित किए। इसमें दिलचस्पी रखने वाली कुछ निजी फर्मों ने कथित तौर पर चिंता जताई है कि इसका मूल्यांकन मानदंड एचएएल के पक्ष में हैं। मगर हाल ही में बिज़नेस स्टैंडर्ड से बातचीत में एचएएल के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक डीके सुनील ने कहा कि मूल्यांकन ढांचे के कुछ पहलू वास्तव में रक्षा सार्वजनिक उपक्रम के खिलाफ थे।

रक्षा सचिव ने माना कि एचएएल और कुछ निजी कंपनियां आपस में गठजोड़ कर सकती हैं, भले ही सरकार का लक्ष्य दूसरा लड़ाकू विमान विनिर्माता तैयार करना हो। उन्होंने कहा, ‘एचएएल निजी क्षेत्र के साथ गठजोड़ कर सकती है। मगर मैं अटकलें लगाने के बजाय इसे बाजार और कंपनियों पर छोड़ता हूं। संयुक्त उद्यम अथवा कंसोर्टियम होने से भी एरोस्पेस क्षेत्र को कुछ हद तक गति मिलेगी।’

First Published - July 7, 2025 | 10:40 PM IST

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