कर्मचारी चयन आयोग (SSC) की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई नई सूचना अभ्यर्थियों को चकित कर रही है। ‘प्रशासनिक कारणों से पदों को निरस्त किया गया है, असुविधा के लिए खेद है…’ यह सूचना वसंत कुमार और उनके दोस्तों के लिए है जो आगामी महीनों में होने वाली पांच भर्ती परीक्षाओं का इंतजार कर रहे थे।
बिहार के 22 वर्षीय ITI स्नातक वसंत कुमार जल संसाधन विभाग में ड्रिल ऑपरेटर की नौकरी के लिए पिछले एक साल से तैयारी कर रहे हैं। एक पखवाड़े पहले वह इस नोटिस से चौंक गए थे, लेकिन हैरान नहीं थे। उन्होंने कहा, ‘यह कोई नई बात नहीं है। अच्छा ही हुआ कि यह पहले ही रद्द हो गई। अगर, बाद में यह सभी औपचारिकताओं के बाद रद्द होती तो और भी कष्ट होता। मेरे पास अपनी किस्मत आजमाने के लिए आगे भी कई साल हैं। आप देखिए, सरकारी नौकरी पाना इतना भी आसान नहीं है।’
कुमार का कहना है कि यह एक ऐसा मुद्दा है जिसका छात्र दशकों से सामना कर रहे हैं। परीक्षाएं स्थगित होना, भर्ती अभियान का रद्द होना, परीक्षा के परिणामों में देरी और अदालत में लंबित मुकदमे उन कुछ बाधाओं में से एक है जिन्हें छात्रों को अपने सपने की नौकरी पाने के लिए पार करनी पड़ती है। हालांकि, सभी अभ्यर्थी कुमार की तरह आशान्वित नहीं हैं।
28 वर्षीय आर कार्तिक श्रीनिवासन याद करते हैं कि 2017 में कौशल परीक्षण के लिए उपस्थित होने के बावजूद वह केंद्रीय भूजल बोर्ड में एक तकनीकी ऑपरेटर के रूप में नौकरी से चूक गए क्योंकि एजेंसी ने प्रशासनिक कारणों का हवाला देते हुए 2019 में भर्ती प्रक्रिया को रद्द कर दिया था।
श्रीनिवासन कहते हैं, ‘एजेंसी ने कुछ अन्य नई रिक्तियों के साथ एक साल बाद फिर से भर्ती का विज्ञापन दिया। मैंने फिर से आवेदन किया, लेकिन पिछले साल अक्टूबर में SSC ने एक नोटिस देकर सूचित किया कि उपयोगकर्ता विभाग द्वारा फिर से प्रशासनिक कारणों का हवाला देते हुए भर्तियां रोक दी गई हैं। खैर, इसके बाद मैंने आगे बढ़ने का फैसला किया और एक निजी ठेकेदार के अधीन काम करना शुरू कर दिया। अब, मेरी सभी आईटीआई डिग्रियां और स्किलिंग वर्कशॉप सर्टिफिकेट बेकार हैं।’
पिछले साल दिसंबर में लोकसभा में परीक्षा रद्द होने, पेपर लीक होने और नकल की बढ़ती घटनाओं पर एक सवाल के जवाब में केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने कहा कि शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची में एक विषय है।
मंत्री ने कहा, ‘इस प्रकार, केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले स्कूलों के अलावा अन्य स्कूलों में परीक्षाओं से संबंधित मामलों को संबंधित राज्य सरकार के संबंधित परीक्षा बोर्डों के नियमों और निर्देशों के अनुसार चलाया जाता है।’ जबकि बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा ऐसे मामलों की संख्या के बारे में विभिन्न भर्ती बोर्डों को भेजे गए प्रश्नों का जवाब नहीं मिला। लाखों छात्र इन अनिश्चितताओं का सामना कर रहे हैं और बेहतर भविष्य के प्रति आशान्वित भी हैं।
लेकिन क्यों?
पूर्वोत्तर दिल्ली के कोचिंग संस्थान में पढ़ाने वाले नील भाटिया का कहना है कि एक तकनीकी डिग्री होने के बाद भी निजी क्षेत्र में उनके कौशल के लिए बहुत कम लोग हैं। सरकारी कौशल परिवेश से तकनीकी डिग्री प्राप्त करने वाले अधिकांश छात्र सीमांत और दूर-दराज के क्षेत्रों से आते हैं। वे पारस्परिक कौशल में भी अक्सर कमजोर होते हैं।
भाटिया ने कहा, ‘उनके पास सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) और अन्य सरकारी परियोजनाओं में सीमित रिक्तियां बची हैं। यह एक दुष्चक्र है। चूंकि उनका प्रशिक्षण सीमित है, इसलिए निजी कंपनियां उन्हें भर्ती करने से बचती हैं। सरकार के विनिवेश की प्रतिबद्धता पर अडिग रहने से इन युवाओं के लिए अवसर गंभीर रूप से सीमित होते जा रहे हैं। युवा अक्सर इन परीक्षाओं में सफल होने की उम्मीद में अपने जीवन के पांच से छह साल तक गंवा देते हैं।’
पश्चिमी दिल्ली में निजी कोचिंग सेंटर चलाने वाले अंकगणित के शिक्षक ध्रुव राठौर कहते हैं, ‘एक ओर, तकनीकी परीक्षाओं के लिए कई तरह के प्रशिक्षण और प्रमाणन की आवश्यकता होती है। दूसरी ओर, सामान्य लिपिक कर्मचारी भर्ती परीक्षाएं होती हैं, जहां तकनीकी और गैर-तकनीकी दोनों पृष्ठभूमि के छात्र पात्र होते हैं।
सुनिश्चित आय और अन्य लाभों के साथ सरकारी नौकरियों का लालच, साथ ही सीमित नौकरी के अवसरों के साथ, लाखों उम्मीदवारों को कुछ सौ रिक्तियों की प्रतीक्षा में रखता है। छात्र इन परीक्षाओं को पास करने के लिए अत्यधिक रिश्वत देने और अनुचित साधनों का उपयोग करने से नहीं कतराते हैं।’
सामान्य लिपिक परीक्षाओं में तकनीकी छात्रों की ‘घुसपैठ’ पर भी हाल के दिनों में संसद में चर्चा हुई है। 2020 में कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने एक लिखित उत्तर में संसद को सूचित किया कि 2017 में संयुक्त स्नातक स्तर की परीक्षा (सीजीएलई) में लगभग 66 फीसदी उत्तीर्ण उम्मीदवार बीटेक, बीएससी, बीफार्मा, प्रबंधन, आदि जैसी तकनीकी पाठ्यक्रम के छात्र थे।
पिछले साल एक शैक्षणिक प्रौद्योगिकी कंपनी की नौकरी छोड़कर राजस्थान शिक्षक पात्रता परीक्षा देने वाली 27 वर्षीय वंदिता वर्मा पूछती हैं, ‘तकनीकी पाठ्यक्रमों को करने पर लाखों खर्च करने का क्या फायदा है, जब आपको केवल लिपिक की नौकरी या बुनियादी स्कूल में शिक्षक की नौकरी मिलेगी।’ इस इम्तिहान को भी बाद में रद्द कर दिया गया क्योंकि बड़ी संख्या में छात्र अनुचित साधनों का उपयोग करते पाए गए और लगभग 50 लोगों को गिरफ्तार किया गया।
राठौर कहते हैं, ‘मुख्य समस्या यह है कि धोखाधड़ी की घटनाओं से निपटने के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं है। समय की मांग है कि केंद्र सरकार इस तरह के कृत्यों की आपराधिक प्रकृति को स्वीकार करे और भर्ती प्रणाली की अखंडता की रक्षा के लिए धोखाधड़ी के मामलों से स्पष्ट रूप से निपटने के लिए एक सख्त कानून लाए।’
पिछले कुछ वर्षों में पेपर लीक के कई मामलों के प्रकाश में आने के बाद, राजस्थान सरकार ने राजस्थान सार्वजनिक परीक्षा अधिनियम, 2022 पारित किया, जिसमें 10 साल तक की कैद और 10 करोड़ रुपये तक के जुर्माने सहित कठोर दंड के प्रावधान हैं।
इससे पहले केंद्र सरकार ने 2020-21 के बजट में सभी गैर-राजपत्रित पदों पर भर्ती के लिए कंप्यूटर आधारित ऑनलाइन सामान्य पात्रता परीक्षा (सीईटी) आयोजित करने के लिए 1,500 करोड़ रुपये में एक स्वतंत्र, पेशेवर और विशेषज्ञ संगठन के रूप में राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी की स्थापना की घोषणा की थी। तीन साल बाद भी एजेंसी को शुरू होने का इंतजार है।
इन सबसे परेशान नील भाटिया कहते हैं, ‘सरकार हकीकत का सामना नहीं करना चाहती। आप न तो लाखों लोगों को कुछ सौ नौकरियों के लिए आवेदन करने से रोकने जा रहे हैं और न ही आप धोखाधड़ी रोकने जा रहे हैं, जब मूल कारण नौकरियों की कमी है, खासकर सामाजिक सुरक्षा वाली नौकरियों की। अब समय आ गया है कि सरकार तकनीकी और गैर-तकनीकी पाठ्यक्रम दोनों में संशोधन करे ताकि हजारों रुपये खर्च करने के बाद छात्रों को कहीं लिपिक की परीक्षा देने के लिए मजबूर न होना पड़े।’
इस बीच, कुमार और श्रीनिवासन जैसे छात्रों को आवश्यक कौशल प्रशिक्षण प्रमाणपत्र होने के बावजूद निजी ठेकेदारों के तहत मामूली मजदूरी पर काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। दिल्ली के मायापुरी में एक मोटर मैकेनिक वर्कशॉप चलाने वाले 48 वर्षीय हरजीत लांबा के पास लगभग 23 सहायक हैं। इनमें से चार आईटीआई स्नातक हैं।
लांबा हंसते हुए कहते हैं, ‘उन्हें कोई ज्ञान नहीं है। मुझे सिद्धांत की आवश्यकता नहीं है। मुझे अपना काम पूरा करना है। इसके अलावा, वे अधिक वेतन की मांग करते हैं, क्योंकि उन्होंने सर्टिफिकेट के लिए निवेश किया है। मैं उन्हें अतिरिक्त भुगतान क्यों करूं, जब वे सब जानते हैं कि मैंने उन्हें सिखाया है, इसके बजाय उन्हें मुझे प्रशिक्षण शुल्क देना चाहिए।’