सरकार कारोबारी सुगमता, लक्षित व्यापार समर्थन और समय पर नीतिगत हस्तक्षेप के जरिये अमेरिका द्वारा कई भारतीय उत्पादों पर लगाए गए 50 फीसदी शुल्क के प्रभाव को कम करने की कोशिश कर रही है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने आज उद्योग को आश्वस्त करते हुए यह बात कही। गोयल ने आज निर्यात संवर्धन परिषदों और उद्योग संघों के साथ एक बैठक की अध्यक्षता की। बैठक में बढ़ते वैश्विक शुल्कों से निपटने के उपायों और बदलते व्यापार परिदृश्य के बीच आगे की राह पर चर्चा की गई। बैठक में वाणिज्य विभाग के शीर्ष अधिकारी भी शामिल हुए।
मंत्री ने जोर देकर कहा कि सरकार मौजूदा परिस्थितियों से निपटने के लिए दीर्घकालिक समाधान तलाशने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। उन्होंने निर्यातकों से उत्पाद की गुणवत्ता को सुधारने, वैश्विक मानकों के अनुरूप ढलने, आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने और वैकल्पिक बाजारों की तलाश करने का आग्रह किया।
वाणिज्य विभाग ने एक बयान में कहा, ‘वैकल्पिक व्यवस्थाओं की जरूरत पर व्यापक सहमति बनी। सरकार विभिन्न क्षेत्रों की चिंताओं को दूर करने और निर्यात में हो रही लगातार वृद्धि को और रफ्तार देने के लिए प्रतिबद्ध है।’बयान में कहा गया है, ‘गोयल ने उभरते वैश्विक व्यापार परिदृश्य के बीच भारतीय निर्यातकों के हितों की रक्षा के लिए सरकार की अटूट प्रतिबद्धता की पुष्टि की। उन्होंने उद्योग प्रतिनिधियों को आश्वस्त किया कि सरकार निर्यातकों को हालिया चुनौतियों से निपटने के लिए उपयुक्त माहौल तैयार करने में सक्रियता से लगी है।’
निर्यातकों और उद्योग प्रतिनिधियों ने भारी अतिरिक्त शुल्क लगाए जाने के कारण पैदा हुई चुनौतियों, प्रमुख अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारतीय वस्तुओं की प्रतिस्पर्धात्मकता पर उनके प्रभाव और लक्षित एवं क्षेत्र-विशिष्ट के लिए हस्तक्षेपों की आवश्यकता पर चर्चा की। समझा जाता है कि निर्यातकों ने आग्रह किया कि सरकार 50 फीसदी ट्रंप शुल्क के अतिरिक्त लागत बोझ का वहन करे। उन्होंने प्रस्तावित निर्यात संवर्धन मिशन (ईपीएम) के तहत योजनाओं को जल्द से जल्द लागू करने की भी मांग की।
फरवरी में चालू वित्त वर्ष के लिए पेश किए गए केंद्रीय बजट में 2,250 करोड़ रुपये के निर्यात संवर्धन मिशन की घोषणा की गई थी, लेकिन उसे अब तक लागू नहीं किया गया है। सरकारी अधिकारियों ने बताया कि इस योजना पर वित्त मंत्रालय के साथ विचार-विमर्श अभी भी जारी है। इस मिशन के तहत विश्व व्यापार संगठन के अनुरूप हस्तक्षेपों के अलावा ऋण मुहैया उपलब्ध कराने और निर्यातकों के लिए बाजार पहुंच को आसान बनाते हुए विभिन्न योजनाएं तैयार की गई हैं।
सरकार श्रम प्रधान क्षेत्रों में छोटे निर्यातकों की नकदी संबंधी चुनौतियों से निपटने, कार्यशील पूंजी पर दबाव कम करने, रोजगार की रक्षा करने और नए बाजारों के खुलने तक निर्यातकों को अपना काम जारी रखने में मदद करने के उपायों पर भी काम कर रही है। सबसे प्रभावित क्षेत्रों में कपड़ा एवं परिधान, रत्न एवं आभूषण, चमड़ा एवं फुटवियर, रसायन एवं इंजीनियरिंग वस्तुएं और कृषि एवं समुद्री निर्यात शामिल हैं।