भारत का रीसाइक्लिंग उद्योग गति पकड़ चुका है। उद्योग के सामने सबसे बड़ी चुनौती ठोस डेटा बेस न होना है लेकिन उद्योग जगत और सरकार मिलकर सटीक और व्यापक डेटा तैयार कर रहे हैं। प्लास्टिक रीसाइक्लिंग शो और भारत रीसाइक्लिंग शो में दावा किया गया कि अगले डेढ़ साल के भीतर, यह सत्यापित डेटा सार्वजनिक और भारत सरकार को उपलब्ध कराया जाएगा ताकि प्लास्टिक रीसाइक्लिंग सेक्टर को व्यवस्थित और मजबूत करने में मदद मिल सके।
भारत में रीसाइक्लिंग उद्योग अब सिर्फ कचरा बिनने तक सीमित नहीं रहा बल्कि यह असंगठित क्षेत्र से धीरे धीरे संगठित उद्योग की तरफ बढ़ रहा है। रीजनल सेंटर फॉर अर्बन एंड एनवायरनमेंटल स्टडीज के निदेशक अजित साल्वी ने कहा कि रीसाइक्लिंग उद्योग में भारत की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख स्तंभ बनने की अपार क्षमता है। चूंकि राष्ट्र विकसित भारत 2047 की कल्पना कर रहा है, यह दृष्टि रीसाइक्लिंग सेक्टक की सक्रिय भागीदारी और उन्नति के बिना साकार नहीं हो सकती है। इस उद्योग को भारत की विकास यात्रा का एक अनिवार्य हिस्सा माना जाना चाहिए, क्योंकि सतत विकास इसी पर निर्भर करता है।
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मटेरियल रीसाइक्लिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया (MRAI) के अध्यक्ष संजय मेहता ने कहा कि MRAI पिछले 15 वर्षों से ई-कचरा, टायर, प्लास्टिक, तेल, बैटरी और धातु सहित विभिन्न क्षेत्रों में नीति निर्माण और वकालत के लिए केंद्र सरकार के साथ काम कर रहा है। भारत ने ई-कचरा, टायर और धातु जैसे रीसाइक्लिंग सेक्टर्स में महत्वपूर्ण प्रगति की है। प्लास्टिक उद्योग प्रमुख चुनौतियों का सामना कर रहा है।
हमारा सबसे पहला एजेंडा भारत में प्लास्टिक स्क्रैप रीसाइक्लिंग पर सटीक और व्यापक डेटा संकलित करना है। एसोसिएशन का लक्ष्य है कि अगले डेढ़ साल के भीतर, यह सत्यापित डेटा सार्वजनिक और भारत सरकार को उपलब्ध कराया जाएगा ताकि प्लास्टिक रीसाइक्लिंग क्षेत्र को व्यवस्थित और मजबूत करने में मदद मिल सके।
महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष सिद्धेश कदम ने कहा कि महाराष्ट्र पर्यावरण नेतृत्व में सबसे आगे रहा है। यह एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है। रीसाइक्लिंग भविष्य का प्रतिनिधित्व करती है और वास्तव में चक्रीय अर्थव्यवस्था की नींव बनाती है। महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य और केंद्र सरकार के साथ साझेदारी से रीसाइक्लिंग और संसाधन प्रबंधन में युवा-नेतृत्व वाले स्टार्टअप का समर्थन करने के लिए इनक्यूबेशन हब विकसित कर रहा है।
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ऐसे मंच न केवल भारत की प्लास्टिक रीसाइक्लिंग में प्रगति को दर्शाते हैं बल्कि इनोवेशन को भी प्रोत्साहित करते हैं। कचरे को एक मूल्यवान संसाधन में बदलते हैं और एक स्वच्छ, अधिक लचीले भविष्य को संचालित करते हैं, कचरे को अगले सोने में बदल देते हैं।
इको रीसाइक्लिंग के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक बी के सोनी ने बताया कि भारत में रीसाइक्लिंग उद्योग की प्राथमिक चुनौती औपचारिक रीसाइक्लिंग के लिए कच्चे माल की उपलब्धता है। भारत का रीसाइक्लिंग सेक्टर तेजी से बढ़ सकता है, क्योंकि सोना, चांदी, पैलेडियम, लिथियम और कोबाल्ट जैसी कीमती सामग्री की वसूली के लिए संरचना विश्व स्तर पर पहले से ही उपलब्ध हैं। आज, भारत में केवल लगभग 5 फीसदी ई-कचरा ही रीसाइक्लिंग किया जा रहा है, जिसे अनुमानित 2,500 करोड़ रुपये के निवेश से समर्थन मिलता है। पूर्ण पैमाने पर रीसाइक्लिंग हासिल करने के लिए, इस सेक्टर को 50,000 करोड़ रुपये (लगभग 6 बिलियन डॉलर) के करीब की आवश्यकता होगी, जो एक विशाल निवेश अवसर प्रस्तुत करता है।
मीडिया फ्यूजन के प्रबंध निदेशक ताहेर पात्रावाला ने कहा कि भारत का अपशिष्ट प्रबंधन बाजार 2030 तक 18.40 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, फिर भी वर्तमान में केवल 30 फीसदी पुनर्चक्रण योग्य अपशिष्ट पर ही कार्रवाई की जा रही है। यह इनोवेशन और निवेश के लिए एक बड़ा अवसर उजागर करता है। भारत रीसाइक्लिंग शो एक परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में काम करने का लक्ष्य रखता है, जो एक अधिक कुशल और टिकाऊ रीसाइक्लिंग पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिए नेताओं, नवप्रवर्तकों और नीति निर्माताओं को जोड़ता है।
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तीन दिवसीय यह शो आज से मुंबई के बॉम्बे एक्जीबिशन सेंटर में शुरू हुआ। इस शो में 150 प्रदर्शक, 8,000 आगंतुक और 10 से अधिक देशों के प्रतिभागी शामिल हुए, जो रीसाइक्लिंग प्रौद्योगिकियों, समाधानों और नवाचारों का व्यापक 360-डिग्री प्रदर्शन पेश करते हैं। भारत में प्लास्टिक, कागज, धातु और ई-कचरे जैसी हर वस्तु एक संसाधन और जिम्मेदारी दोनों का प्रतिनिधित्व करती है। प्लास्टिक क्षेत्र पहले से ही सालाना 10 मिलियन टन से अधिक कचरे पर प्रक्रिया करता है, जबकि जस्ते जैसी धातुओं की रीसाइक्लिंग दर मात्र 10 फीसदी है, जो दर्शाता है कि हमारी चक्रीय क्षमता का केवल आंशिक रूप से ही उपयोग किया गया है।