सर्वोच्च न्यायालय ने आज अपने एक फैसले में कहा कि राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के एक किलोमीटर के दायरे में खनन कार्यों की अनुमति नहीं होगी। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे क्षेत्रों को औद्योगिक गतिविधियों से दूर रखा जाना चाहिए। इसके साथ ही शीर्ष न्यायालय ने अप्रैल 2023 के अपने उस फैसले में संशोधन किया जिसके तहत गोवा में खनन पर इसी तरह के प्रतिबंध लगाए गए थे। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्र के पीठ ने कहा कि देश भर में समान सिद्धांत को लागू किया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘जहां तक खनन पर प्रतिबंध का सवाल है तो हमारा लगातार मानना रहा है कि संरक्षित क्षेत्र की सीमा के एक किलोमीटर के इलाके में खनन गतिविधियां वन्यजीवों के लिए खतरनाक होंगी। गोवा फाउंडेशन के मामले में निर्देश गोवा राज्य के संबंध में जारी किए गए थे, लेकिन हमें लगता है कि ऐसे निर्देशों को अखिल भारतीय स्तर पर जारी करने की आवश्यकता है।’
शीर्ष अदालत झारखंड के सारंडा क्षेत्र की स्थिति से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इस मामले में न्यायालय ने राज्य को अभयारण्य अधिसूचना जारी करते हुए आगे बढ़ने का निर्देश दिया। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि वन क्षेत्र में रहने वाले समुदायों को वन अधिकार अधिनियम के तहत सभी सुरक्षा की गारंटी मिलनी चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र और रेल लिंक जैसे सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के काम जारी रहेंगे लेकिन खनन संबंधी गतिविधियों पर रोक रहेगी। विशेषज्ञों का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय के ये निर्देश राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के एक किलोमीटर के भीतर मौजूदा अथवा पुरानी खदानों पर भी लागू होते हैं।
एसकेवी लॉ ऑफिसेज के पार्टनर आशुतोष श्रीवास्तव ने कहा, ‘यह फैसला स्पष्ट करता है कि पारिस्थितिक के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों में चालू अथवा प्रस्तावित खनन के लिए भी वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत वैधानिक सुरक्षा का अनुपालन करना होगा। ऐसे में एक निषिद्ध बफर जोन के भीतर आने वाले पुराने खनन कार्यों को अपना संचालन बंद करना होगा अथवा एक सख्त पर्यावरणीय समीक्षा से गुजरना होगा।’
कानूनी फर्म सिरिल अमरचंद मंगलदास की पार्टनर गति प्रकाश ने कहा कि देश भर में मौजूद सभी राष्ट्रीय उद्यानों एवं वन्यजीव अभयारण्यों की सीमा पर 1 किलोमीटर का बफर जोन बनाना होगा जहां खनन प्रतिबंधित रहेगा। इससे देश भर में मौजूदा एवं भविष्य के खनन कार्य प्रभावित होंगे।
उन्होंने कहा, ‘सारंडा वन प्रभाग में भारत के लौह अयस्क भंडार का 26 फीसदी हिस्सा मौजूद है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का सबसे अधिक आर्थिक प्रभाव उन इस्पात कारखानों पर पड़ेगा जो इस क्षेत्र में खनन पर निर्भर हैं। राज्य ने तर्क दिया कि इस फैसले से इलाके में रोजगार के अवसर और राष्ट्रीय इस्पात नीति, 2017 के तहत अनुमानित उत्पादन भी प्रभावित होंगे।’
न्यायालय यह भी आदेश दिया कि इस क्षेत्र में 120 इलाकों को कवर करते हुए एक वन्यजीव अभयारण्य भी तैयार किया जाए। इससे दुनिया के एक सबसे प्राचीन साल वन को वैधानिक सुरक्षा प्रदान होगी। यह क्षेत्र जैव विविधता और वन्यजीवों से समृद्ध है। इसमें बेहद लुप्तप्राय साल वन कछुआ, चार सींग वाला मृग, एशियाई पाम सीवेट, जंगली हाथी, तेंदुए, सांभर, चीतल, हिरण, जंगली भैंसे, और पक्षियों एवं सरीसृपों की कई प्रजातियां शामिल हैं।