विदेश मंत्री एस. जयशंकर | फाइल फोटो
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कनाडा में आयोजित जी-7 विदेश मंत्रियों की बैठक के ऊर्जा सुरक्षा और दुर्लभ खनिजों पर एक सत्र में भाग लिया, जिसमें उन्होंने भारत का दृष्टिकोण पेश किया। जयशंकर ने सोशल मीडिया पर पोस्ट में कहा कि उन्होंने दोनों मुद्दों पर निर्भरता कम करने, भविष्य में उसकी जरूरत को ध्यान में रखते हुए काम करने और आपूर्ति व्यवस्था में लचीलापन लाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस मामले में आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता अंतरराष्ट्रीय सहयोग को और बढ़ाना है।
जयशंकर ने नाइग्रा में जी-7 साझेदार देशों के साथ संवाद सत्र में कहा, ‘वैश्विक आपूर्ति में अनिश्चितता और बाजार में रुकावटें देखी गई हैं। इससे निपटने के लिए अधिक नीतिगत परामर्श और संबंधित देशों के बीच समन्वय कारगर साबित हो सकता है। लेकिन असली जरूरत इन उपायों को जमीनी स्तर पर लागू करने की है। भारत इस दिशा में अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार है।’
इससे पहले, बुधवार को जयशंकर ने ‘जी-7 एफएमएम आउटरीच सत्र’ के दौरान यूक्रेन, सऊदी अरब और यूरोपीय संघ के विदेश मंत्रियों से अलग-अलग मुलाकात की और परस्पर हितों से जुड़े क्षेत्रीय मुद्दों तथा हालिया घटनाक्रमों पर विस्तृत चर्चा की। एक अन्य पोस्ट में विदेश मंत्री ने बताया कि उनकी यूक्रेन के विदेश मंत्री आंद्रेई सिबिहा के साथ उपयोगी बातचीत हुई।
जयशंकर ने सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान से द्विपक्षीय संबंधों, क्षेत्रीय मुद्दों, संपर्क और ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग जैसे कई विषयों पर चर्चा की। यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख कजा कालस से मुलाकात के बाद जयशंकर ने कहा, ‘हमने भारत-यूरोपीय संघ के बीच रणनीतिक साझेदारी को और गहरा करने तथा जी-7 बैठक के एजेंडे पर विचार-विमर्श किया।’ जयशंकर ने अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो के साथ भी मुख्य रूप से व्यापार और आपूर्ति श्रृंखला से जुड़े मुद्दों पर बातचीत की। विदेश मंत्री ने कनाडा की विदेश मंत्री अनीता आनंद से भी मुलाकात की और व्यापार, ऊर्जा, सुरक्षा तथा लोगों के बीच संपर्क जैसे क्षेत्रों में भारत-कनाडा सहयोग की समीक्षा की। दोनों नेताओं ने भारत-कनाडा के रिश्तों को दोबारा मजबूत करने के प्रयासों पर विस्तृत बातचीत की। दो वर्ष पहले राजनयिक विवाद के बाद दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण हो गए थे। जयशंकर ने इसके अलावा जर्मनी, फ्रांस, ब्राजील और ब्रिटेन के विदेश मंत्रियों के साथ भी अलग-अलग द्विपक्षीय वार्ताएं कीं।
फ्रांस के विदेश मंत्री ज्यां-नोएल बारो के साथ बैठक के बाद जयशंकर ने सोशल मीडिया पर कहा, ‘हमने अपनी रणनीतिक साझेदारी की समीक्षा की और बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग को गहरा करने पर चर्चा की।’
ब्राजील के विदेश मंत्री माउरो विएरासे मुलाकात के बाद उन्होंने कहा, ‘हम व्यापार, निवेश, स्वास्थ्य और प्रौद्योगिकी सहयोग के लिए अधिक अवसरों की सक्रिय रूप से तलाश कर रहे हैं।’ जर्मनी के विदेश मंत्री जोहान वेडेफुल के साथ हुई चर्चा में द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी और भारत-यूरोपीय संघ संबंधों को आगे बढ़ाने पर जोर दिया गया। जयशंकर ने बताया कि उन्होंने और वेडेफुल ने पश्चिम एशिया, हिंद-प्रशांत और अफगानिस्तान की स्थिति पर विचार-विमर्श किया। उन्होंने ब्रिटेन के विदेश मंत्री येवेट कूपर के साथ भी बैठक कर आपसी संबंधों की समीक्षा की।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जी7 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेते हुए हिंद-प्रशांत सहयोग पर चर्चा की और भारत के उस दृष्टिकोण को साझा किया जिसमें सुरक्षित समुद्री क्षेत्र पर जोर दिया गया है। बैठक का मुख्य उद्देश्य वैश्विक व्यापार और आर्थिक स्थिरता के लिए खुले और सुरक्षित जलमार्गों को बनाए रखना था। जयशंकर ने सोशल मीडिया पर जारी बयान में कहा कि उन्होंने जी7 विदेश मंत्रियों के समुद्री सुरक्षा और समृद्धि पर केंद्रित सत्र में भाग लिया, जहां उन्होंने भारत के ‘महासागर दृष्टिकोण’, हिंद-प्रशांत सहयोग और बंदरगाह-आधारित विकास पहलों के जरिये समुद्री सुरक्षा के भारतीय दृष्टिकोण को रेखांकित किया।
उन्होंने विश्वसनीय और विविधीकृत समुद्री संपर्कों की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि भारत अपने पोत-परिवहन ढांचे के आधुनिकीकरण और लचीले व्यापार गलियारों के निर्माण के लिए निरंतर प्रयासरत है। विदेश मंत्री ने महत्त्वपूर्ण समुद्री और समुद्र-तल के ढांचे की सुरक्षा के लिए बेहतर समन्वय की भी जरूरत बताई।
उन्होंने समुद्र में डकैती, तस्करी और अवैध, अपंजीकृत व अनियमित तरीके से मछली पकड़ने जैसे समुद्री खतरों और आर्थिक अपराधों पर चिंता व्यक्त की और कहा कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए गहरे अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है। जयशंकर ने कहा, ‘समुद्र के कानून पर ‘यूएनसीएलओएस’ का पालन किया जाना चाहिए।’ उन्होंने भारत की नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्धता को दोहराया। यह समझौता सभी समुद्री गतिविधियों के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करने वाली अंतरराष्ट्रीय संधि है।