केंद्र सरकार ने निर्यातकों को राहत देने तथा प्रतिस्पर्धा में सुधार के लिए बुधवार को दो नई योजनाओं की घोषणा की। अमेरिकी व्यापार नीति में बदलाव इस वर्ष वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता की सबसे बड़ी वजह रहा है और इससे जुड़ी दिक्कतें अब तक हल नहीं हो सकी हैं। भारत 50 फीसदी के दंडात्मक शुल्क से खासतौर पर प्रभावित है।
हालांकि अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने हाल ही में कहा है कि अमेरिका भारत के साथ एक उचित समझौते की दिशा में बढ़ रहा है लेकिन हालिया अनुभवों के बाद कोई भी बात निश्चित तौर पर कहना मुश्किल है। जब तक समझौते की घोषणा नहीं हो जाती है तब तक भारतीय निर्यातकों खासकर छोटे और मझोले उपक्रमों के लिए योजना बनाना मुश्किल होगा। ऐसे में उम्मीद यही है कि नए हस्तक्षेपों की जरूरत होगी ताकि कारोबार चलते रह सकें और निकट से मध्यम अवधि में उनमें विकास हो सके।
इस बारे में निर्यातकों के लिए ऋण गारंटी योजना का इरादा पात्र निर्यातकों को अतिरिक्त ऋण सहायता मुहैया कराना है। इनमें सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रम यानी एमएसएमई भी शामिल हैं। पात्र व्यवसायों को बिना गारंटी वाला ऋण उपलब्ध कराना तरलता की स्थिति सुधारने और संचालन को मजबूत करने में मदद करेगा। ऐसी रिपोर्ट हैं कि अमेरिकी मांग पर केंद्रित व्यवसायों के लिए ऑर्डर कम हो गए हैं।
ऐसे में यह आवश्यक है कि ये इकाइयां इस कठिन दौर में टिक सकें और अमेरिका के साथ समझौता होने के बाद पूर्ण क्षमता पर संचालन फिर से शुरू कर सकें। जैसा कि नोटबंदी और कोविड ने पहले दिखाया है, मांग की कमी के कारण बंद हुई उत्पादन इकाइयों को दोबारा शुरू करना कठिन होता है। भले ही कंपनियां वैकल्पिक बाजारों की तलाश करें, यह प्रक्रिया समय लेगी और तुरंत संभव नहीं होगी।
इसलिए, धन की उपलब्धता निर्यात व्यवसायों के लिए सहायक होगी। चूंकि इसमें सरकारी गारंटी है, इसलिए ऋणदाताओं के लिए जोखिम भी सीमित रहेगा। सरकार को चाहिए कि आवश्यकता होने पर वह घोषित 20,000 करोड़ रुपये की सीमा से अधिक सहयोग देने का विकल्प खुला रखे।
निर्यात संवर्धन मिशन के लिए 25,060 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। यह मध्यम अवधि के लिए है और वर्ष 2030-31 तक चलेगा। पहली बार केंद्रीय बजट में घोषित किए जाने के बाद कार्यक्रम में दो एकीकृत उपयोजनाओं को शामिल किया गया। इनमें से एक किफायती ऋण की उपलब्धता पर केंद्रित होगी तथा एमएसएमई से संबंधित मुद्दों का ध्यान रखेगी।
वहीं दूसरी योजना गैर वित्तीय वजहों मसलन परिवहन, ब्रांडिंग और गुणवत्ता तथा अनुपालन सहायता मुहैया कराएगी। कारोबार, खासकर एमएसएमई आदि अक्सर उपलब्ध निर्यात अवसरों को लेकर जागरूक नहीं होते और उन्हें मदद की आवश्यकता होती है। बहरहाल, वास्तविक नतीजे इस बात पर निर्भर करेंगे इनमें से कुछ को किस प्रकार लागू किया जाता है।
अमेरिका के साथ साझा लाभदायक व्यापार समझौते पर पहुंचना हमारी पहली प्राथमिकता है लेकिन नीति निर्माताओं को अधिक बुनियादी मुद्दों पर ध्यान देना भी शुरू करना होगा। भारत ने जहां ब्रिटेन के साथ व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए हैं और यूरोपीय संघ के साथ समझौते के लिए बातचीत कर रहा है, वहीं व्यापार को लेकर एक किस्म की अनिच्छा के साथ घरेलू कारोबारों को बचाने पर भी ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
समय के साथ, भारत में शुल्क और गैर शुल्क बाधाओं में वृद्धि हुई है, जिससे वैश्विक और क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं में भारत की भागीदारी प्रभावित हुई है। भारत बड़े क्षेत्रीय व्यापार समझौतों का हिस्सा भी नहीं है। चूंकि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) प्रभावहीन हो चुका है, इसलिए क्षेत्रीय व्यापार समझौते एक नियम-आधारित व्यापारिक वातावरण प्रदान करते हैं, जो समय के साथ भारत की संभावनाओं को बेहतर बना सकते हैं।
इसके अलावा, भारत को कुल मिलाकर अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता सुधारने की आवश्यकता है। न्यायसंगत रूप से देखा जाए तो, इस दिशा में कई कदम उठाए गए हैं, और कुछ राज्य सरकारें भी इस दिशा में कार्य कर रही हैं, लेकिन सुधारों की गति को और तेज करने की आवश्यकता है। निर्यात मांग का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत बन सकता है, जो तेज आर्थिक वृद्धि और रोजगार सृजन को सहारा प्रदान करेगा।