केंद्र सरकार को अगले 4 साल में अहम खनिजों का उत्पादन शुरू हो जाने की उम्मीद है। इनकी खदानों की नीलामी जल्द की जाएगी। अधिकारियों ने कहा कि सरकार अहम खनिजों के खनन में तेजी लाने पर विचार कर रही है और उसने वित्त वर्ष 2028 के अंत तक उत्पादन के चरण की शुरुआत का लक्ष्य रखा है।
इससे आयात करने वाले देशों की तुलना में भारत आगे निकल जाएगा क्योंकि अहम खनिजों की खनन प्रक्रिया में सामान्यतया एक दशक का वक्त लगता है। खनन मंत्रालय में सचिव वीएल कांता राव ने कहा, ‘खनन प्रक्रिया में तेजी लाने और 4 साल के भीतर उत्पादन चरण में पहुंचने का लक्ष्य है।’
इंटरनैशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) ने 2021 में जारी रिपोर्ट ‘द रोल आफ क्रिटिकल मिनरल्स इन क्लीन एनर्जी ट्रांजिशन’ में संकेत दिया है कि 2010 से 2019 के बीच शुरू हुई बड़ी वैश्विक खनन परियोजनाओं में खोज से लेकर शुरुआती उत्पादन में औसतन 16.5 साल वक्त लगा है।
आईईए की रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्वेषण और व्यवहार्यता अध्ययन पूरा करने में औसतन 12 साल लगे हैं, जबकि उत्पादन सहित निर्माण के चरण में 4 से 5 साल लगे हैं।
हालांकि उत्पादन में लगने वाला वक्त कई वजहों से अलग-अलग हो सकता है, जिसमें खनिज का प्रकार, भौगोलिक क्षेत्र और खनन का तरीका शामिल है। उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलिया में खोज से लेकर उत्पादन तक लीथियम के मामले में लगने वाला वक्त करीब 4 साल है, जबकि दक्षिण अमेरिका में 7 साल लगते हैं। इसी तरह से खनिज की गुणवत्ता के हिसाब से भी वक्त घटता बढ़ता है।
आईईए की रिपोर्ट के मुताबिक निकल (सल्फाइड) खनन में परिचालन शुरू होने में 13 साल लगते हैं, जबकि निकल (टैटेराइट) के उत्पादन में 19 साल लगते हैं। साथ ही खनन में लगने वाला समय तकनीकी उन्नति और खनन की प्रक्रिया में बदलाव से भी प्रभावित होता है।
केंद्र सरकार द्वारा बोली की प्रक्रिया में डाले गए 20 ब्लॉक अन्वेषण स्तर पार कर गए हैं, जबकि कुछ के समग्र व्यवहार्यता अध्ययन की जरूरत है। इन 20 ब्लॉकों में से सिर्फ 3 को ‘खनन पट्टे’ के लिए चिह्नित किया गया है, जबकि अन्य ‘कंपोजिट लाइसेंस’ के लिए हैं।
खनन पट्टे के तहत लाइसेंसधारक सीधे खनन कर सकता है, जबकि कंपोजिट लाइसेंस धारक पूर्वेक्षण और खनन दोनों करता है।
जिन ब्लॉकों की नीलामी होनी है, वे 7 राज्यों बिहार, गुजरात, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ व केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में स्थित हैं।