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उच्चतम न्यायालय ने ‘OTT’, अन्य प्लेटफॉर्म के लिए ऑटोनोमस रेगुलेटरी बॉडी स्थापित करने संबंधी याचिका खारिज की

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘जनहित याचिकाओं की यही समस्या है। सभी जनहित याचिकाएं अब नीतिगत (मामलों) पर दायर की जाती हैं और हम वास्तविक जनहित याचिकाओं को छोड़ देते हैं।’’

Last Updated- October 18, 2024 | 2:47 PM IST
Supreme Court rejects petition for regulatory body over OTT platforms न्यायालय ने ‘OTT’, अन्य प्लेटफॉर्म के लिए ऑटोनोमस रेगुलेटरी बॉडी स्थापित करने संबंधी याचिका खारिज की

उच्चतम न्यायालय ने ‘ओवर-द-टॉप’ (OTT) एवं अन्य मंचों पर सामग्री की निगरानी तथा वीडियो के नियमन के लिए एक स्वायत्त निकाय स्थापित करने का निर्देश देने के अनुरोध से संबंधित जनहित याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी। ओवर-द-टॉप सीधे इंटरनेट के माध्यम से दर्शकों को प्रदान की जाने वाली मीडिया सेवा है।

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि इस तरह के मुद्दे कार्यपालिका के नीति निर्माण क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं और इसके लिए विभिन्न हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श की आवश्यकता होती है।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘जनहित याचिकाओं की यही समस्या है। सभी जनहित याचिकाएं अब नीतिगत (मामलों) पर दायर की जाती हैं और हम वास्तविक जनहित याचिकाओं को छोड़ देते हैं।’’ जनहित याचिका दायर करने वाले वकील शशांक शेखर झा ने याचिका वापस लेने और अपनी शिकायतों को लेकर संबंधित केंद्रीय मंत्रालय से संपर्क करने की अनुमति देने का अनुरोध किया।

इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘नहीं, याचिका खारिज की जाती है।’’ जनहित याचिका में इस तरह के नियामक तंत्र की आवश्यकता पर जोर देते हुए ‘नेटफ्लिक्स’ पर प्रसारित ‘आईसी 814: द कंधार हाईजैक’ सीरीज का भी उल्लेख किया गया है। हालांकि, ओटीटी प्लेटफॉर्म का दावा है कि यह सीरीज वास्तविक जीवन की घटनाओं पर आधारित है।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इसके लिए एक वैधानिक फिल्म प्रमाणन निकाय – केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) मौजूद है, जिसे सिनेमैटोग्राफ अधिनियम के तहत फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन को विनियमित करने का काम सौंपा गया है।

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शीर्ष अदालत ने कहा कि सिनेमैटोग्राफ कानून सार्वजनिक स्थानों पर दिखाई जाने वाली व्यावसायिक फिल्मों के लिए एक सख्त प्रमाणन प्रक्रिया की रूपरेखा तैयार करता है। जनहित याचिका के अनुसार, ‘‘ओटीटी’ सामग्री की निगरानी / विनियमन के लिए ऐसा कोई निकाय उपलब्ध नहीं है और वे केवल स्व-नियमन से बंधे हैं जिन्हें ठीक से संकलित नहीं किया गया है और विवादास्पद सामग्री बिना किसी जांच तथा संतुलन के, बड़े पैमाने पर लोगों को दिखाई जाती है।’’

जनहित याचिका में कहा गया है कि 40 से अधिक ‘ओटीटी’ और ‘वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म’ नागरिकों को ‘‘भुगतान, विज्ञापन-समावेशी और मुफ्त सामग्री’’ प्रदान कर रहे हैं और अनुच्छेद 19 में दिए गए अभिव्यक्ति के अधिकार का दुरुपयोग कर रहे हैं।

First Published - October 18, 2024 | 2:34 PM IST (बिजनेस स्टैंडर्ड के स्टाफ ने इस रिपोर्ट की हेडलाइन और फोटो ही बदली है, बाकी खबर एक साझा समाचार स्रोत से बिना किसी बदलाव के प्रकाशित हुई है।)

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