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कछुए की चाल से चलने वाली न्यायिक प्रक्रिया में AI से आएगी तेजी !

गत माह सर्वोच्च न्यायालय ने AI आधारित सॉफ्टवेयर की मदद से सुनवाई का लाइव ट्रांसक्रिप्शन (बोली बातों को टेक्स्ट में बदलना) शुरू किया।

Last Updated- April 14, 2023 | 10:34 PM IST
AI will speed up the judicial process running at the speed of a turtle!
BS

भारतीय न्याय व्यवस्था कछुए की चाल से चलती है। गत वर्ष तक देश की अदालतों में 4.7 करोड़ मामले लंबित थे जिनमें से 1.82 लाख बीते 30 वर्षों से लंबित हैं। देश की न्यायिक प्रक्रिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के इस्तेमाल से हालात सुधर सकते हैं। गत माह सर्वोच्च न्यायालय ने AI आधारित सॉफ्टवेयर की मदद से सुनवाई का लाइव ट्रांसक्रिप्शन (बोली बातों को टेक्स्ट में बदलना) शुरू किया।

बेंगलूरु की टेक्नॉलजी इनेबल्ड रिजॉल्युशन (टीईआरईएस) द्वारा विकसित इस सॉफ्टवेयर की मदद से अदालत महाराष्ट्र के राजनीतिक विवाद की सुनवाई को उसी दिन लिखित रूप देने में कामयाब रही। केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने न्यायपालिका से आग्रह किया कि उसे उभरती प्रौद्योगिकी को अपनाना चाहिए।

विधिक प्रक्रिया की गति बढ़ाने के लिए AI का इस्तेमाल शुरू भी हो चुका है। राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना की ई-कोर्ट परियोजना के तीसरे चरण में सर्वोच्च न्यायालय गत अप्रैल में ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस समिति का गठन कर चुका है ताकि उन क्षेत्रों की पहचान की जा सके जहां न्यायिक मामलों में AI का इस्तेमाल हो सकता है।

सन 2019 में स्थापित सुप्रीम कोर्ट विधिक अनुवाद सॉफ्टवेयर (सुवास) तथा 2021 में सुप्रीम कोर्ट पोर्टल फॉर असिस्टेंस इन कोर्ट्स इफीशिएंसी (सुपेस) के बाद यह ट्रांसक्रिप्शन प्रोजेक्ट AI आधारित तीसरी पहल है। सुपेस भी AI पर आधारित एक टूल है जो किसी खास मामले से संबंधित तथ्यों और प्रासंगिक कानूनों को एकत्रित करता है तथा न्यायाधीशों के समक्ष प्रस्तुत करता है।

इसका लक्ष्य है विधिक शोध को और अधिक क्षमता संपन्न तथा कम समय खपत वाला बनाना। जबकि दूसरी ओर सुवास को इसलिए डिजाइन किया गया है ताकि वह नौ क्षेत्रीय भाषाओं में अदालती फैसलों का अनुवाद कर सके। आखिर वे कौन से विधिक और न्यायिक काम हैं जिन्हें AI के माध्यम से किया जा सकता है?

विशेषज्ञों का मानना है कि लंबित मामलों में कमी लाना सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता और इंटरनैशनल कमीशन ऑन साइबर सिक्युरिटी लॉक के चेयरमैन पवन दुग्गल कहते हैं, ‘भारत में लंबित मामलों की तादाद बहुत अधिक है। इसे कम करने के लिए यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि कैसे एक जैसे मामलों को एक साथ लाकर उनका एक साथ निस्तारण किया जा सकता है।’

दुग्गल एस्टोनिया का उदाहरण देते हैं जहां AI अलगोरिदम की मदद से छोटे कानूनी दावों को निपटाया जाता है। वह कहते हैं कि भारतीय अदालतों के यातायात चालान आदि के निपटारे में बहुत अधिक समय लगता है, इन्हें AI अल्गोरिद्म को सौंपा जा सकता है।

डेलॉयट इंडिया के सलाहकार साझेदार प्रशांत कड्डी मानते हैं कि AI की मदद से बार-बार होने वाली प्रक्रियाओं को स्वचालित करके भी क्षमता सुधार किया जा सकता है। वह कहते हैं, ‘AI तथा विश्लेषण की मदद से न केवल बड़ी संख्या में आंकड़ों का संग्रहण और विश्लेषण किया जा सकता है ताकि संबद्ध फैसलों में रुझान और नजीरें तलाश की जा सकें, बल्कि इसकी मदद से क्लाइंट को तत्काल सूचना मुहैया कराके उसके समग्र अनुभव में भी सुधार किया जा सकता है।’

अन्य लोगों का मानना है कि AI सेवाओं को इस प्रकार डिजाइन किया जाना चाहिए कि उन लोगों को लाभ हो जो वकीलों की महंगी फीस नहीं दे सकते। कुछ उच्च न्यायालयों ने पहले ही नए और नवाचारी तरीके से AI का इस्तेमाल शुरू कर दिया था। 2019 में बंबई उच्च न्यायालय ने मामलों का अनुमान लगाने के लिए AI व्यवस्था शुरू की थी।

यह व्यवस्था मशीन लर्निंग अलगोरिद्म का इस्तेमाल करके अतीत के निर्णयों तथा डेटा विश्लेषण के जरिये यह अनुमान लगाती है कि मामलों का नतीजा क्या होगा। झारखंड और पटना उच्च न्यायालयों ने ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकग्नीशन लागू किया है। यह टूल स्कैन किए गए दस्तावेजों को कंप्यूटर द्वारा पठनीय टेक्स्ट में बदलता है। इसकी मदद से कानूनी दस्तावेजों से टेक्स्ट अलग किए जाते हैं।

करंजावाला ऐंड कंपनी एडवोकेट्स की वरिष्ठ साझेदार नंदिनी गोरे कहती हैं कि जप्टाइस जैसे टूल भी है जो एक ऑनलाइन निजी डिजिटल कोर्ट की तरह है। AI और ब्लॉकचेन द्वारा सशक्त यह टूल वाणिज्यिक और दीवानी मामलों को निपटाने के लिए वैकल्पिक विवाद निस्तारण प्रणाली का इस्तेमाल करता है।

इसके अलावा फाइलिंग की जांच, डेटा निपटान तथा प्रबंधन, विधिक शोध, अनुमन्य विश्लेषण, दस्तावेज विश्लेषण, आभासी सुनवाई तथा सोशल मीडिया और समाचार आलेखों का विश्लेषण करके विवाह में बलात्कार तथा समान नागरिक संहिता जैसे मसलों पर जनता की राय जानने के लिहाज से भी एआई महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इन्हें लेकर एआई के इस्तेमाल क्रियान्वयन के अलग-अलग चरणों में है।

चुनौतियां

इन तमाम बातों के बावजूद न्यायपालिका के विभिन्न क्षेत्रों में AI आधारित हलों का एकीकृत और पूर्ण इस्तेमाल अभी भी दूर की कौड़ी है। विशेषज्ञों के अनुसार एक अहम चुनौती यह होगी कि न्यायिक व्यवस्था के भीतर लोगों को किस प्रकार प्रशिक्षित किया जाए कि वे AI आधारित उपाय अपना सकें और उनका प्रबंधन कर सकें।

शार्दूल अमरचंद मंगलदास ऐंड कंपनी के हेड ऑफ आर्बिट्रेशन तेजस करिया कहते हैं, ‘इन सेवाओं को लागू करने में जो बड़ी चुनौतियां हैं उनमें समय पर सही जानकारी अपलोड करना, विधिक भाषा के लिए AI टूल को अपनाना और इस काम में भारी भरकम निवेश करना शामिल है।’
फीनिक्स लीगल में साझेदार प्रणव श्रीवास्तव कहते हैं कि AI सेवाओं को एकीकृत करने में सबसे बड़ी समस्या निम्न न्यायपालिका में उभरेगी क्योंकि हमारे यहां बुनियादी ढांचे की कमी है। इतना ही नहीं कई बार अदालत की शरण में जाने वाले वादियों के पास भी इतने संसाधन नहीं होते कि वे उन्नत तकनीक इस्तेमाल कर सकें।

सबसे बड़ी चुनौती तो AI सॉफ्टवेयर की प्रकृति में ही निहित है। AI के अलगोरिद्म को बड़ी तादाद में आंकड़ों की आवश्यकता होती है और इन आंकड़ों की गुणवत्ता पर ही प्रदर्शन निर्भर करता है। गोरे कहते हैं, ‘भारतीय न्यायपालिका कमजोर डेटा वाले माहौल में काम करती है। कई मामलों का तो डिजिटलीकरण तक नहीं होता और उनकी गुणवत्ता में भी निरंतरता नहीं होती। ऐसे में उपयुक्त AI मॉडल तैयार करना कठिन होता है।’ अगर इसका समुचित जवाबदेही से ध्यान नहीं रखा गया तो यह पूर्वग्रह भी तैयार कर सकता है।

टेकलेजिस एडवोकेट्स ऐंड सोलिसिटर्स के सलमान वारिस कहते हैं कि पीड़ितों की संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी या कारोबारी गोपनीयता वाली सूचना जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध न हो उसे AI बॉट से बाहर रखना होगा ताकि गोपनीयता बरकरार रहे। वहीं दुग्गल कहते हैं कि साइबर सुरक्षा के उपाय न होने के कारण हमारी न्यायपालिका साइबर हमलों की जद में भी आ सकती है।

भारत में AI के नियमन के लिए कानूनी ढांचा भी नहीं है। दुग्गल कहते हैं, ‘भारत में इकलौता साइबर कानून 2000 का सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम है। यह AI के इस्तेमाल पर लागू नहीं होता। कई देशों ने AI को लेकर राष्ट्रीय रणनीति बनाई है। भारत को अमेरिका और यूरोपीय संघ के अनुभवों से सीखने की आवश्यकता है और उसे AI के नियमन के लिए अपना कानूनी ढांचा तैयार करना चाहिए।’

इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इस विषय में नीतिगत खाका तैयार करने के लिए चार समितियां गठित कर दी हैं लेकिन वारिस जैसे विशेषज्ञ मानते हैं कि AI को चरणबद्ध तरीके से लाना चाहिए ताकि लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से हासिल किया जा सके।

First Published - April 14, 2023 | 10:34 PM IST

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