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दुनिया का सबसे ज्यादा फंड पाने वाला देश, फिर भी भारत के 5 शहर सबसे प्रदूषित

नैशनल क्लीन एयर प्रोग्राम पर पांच साल में अरबों डॉलर खर्च हुए, लेकिन न दिल्ली की हवा सुधरी न अन्य राज्यों की।

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शिखा चतुर्वेदी   
Last Updated- November 27, 2025 | 8:21 AM IST

सरकार दशक भर से तमाम तरह की कोशिशें कर रही है मगर राष्ट्रीय राजधानी में हवा की गुणवत्ता लगातार गिर रही है। शहरों को पीएम2.5 में कमी लाने के लिए प्रोत्साहित करने के मकसद से 2019 में नैशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनकैप) शुरू किया गया, लेकिन उसका भी खास असर नहीं दिख रहा क्योंकि इस कार्यक्रम के पांच साल गुजरने के बाद 2024 में दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार रही। अन्य राज्यों में भी इस कार्यक्रम की प्रगति एक जैसी नहीं रही। एनकैप के तहत मिले धन का सही तरीके से और पूरा उपयोग नहीं करने के कारण कई प्रदेश वायु गुणवत्ता लक्ष्यों में पिछड़ गए।

तमाम देशों की तुलना करें तो भारत को वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए दुनिया भर में सबसे ज्यादा रकम मिलती है किंतु इसका बहुत कम हिस्सा उन कार्यक्रमों में लगाया जाता है, जिनसे वायु प्रदूषण कम किया जा सकता है। यही वजह है कि वर्ष 2024 में दुनिया के दस सबसे प्रदूषित शहरों में से आधे भारत से हैं। मेघालय का बिरनीहाट रैंकिंग में सबसे ऊपर रहा। इसके बाद नई दिल्ली, फरीदाबाद, लोनी और गुरुग्राम जैसे शहर हैं। इस साल रैंकिंग में भले कुछ बदलाव देखने को मिले, लेकिन बुधवार सुबह तक दिल्ली और कुछ अन्य शहरों में वायु प्रदूषण पहले की तरह बड़ी समस्या बना हुआ है।

वायु गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए वैश्विक एजेंसी से भारत को सबसे अधिक धन मिलता है। वर्ष 2019 और 2023 के बीच इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारत को कुल 19.8 अरब डॉलर मिले थे, जितनी रकम दुनिया के किसी और मुल्क को नहीं मिली। इस श्रेणी में बाहरी हवा को बेहतर बनाने के लिए वित्तीय सहायता और और व्यापक शहरी, ऊर्जा या परिवहन परियोजनाओं के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से स्वच्छ हवा प्राप्त करने के लिए धन शामिल है।
बाहरी प्रदूषण से सीधे निपटने के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं हो रहा है।

First Published : November 27, 2025 | 8:21 AM IST