वॉरेन बफेट इसे कैलकुलेटेड कहेंगे तो इवान बोस्की लालच को अच्छा मानते हैं लेकिन कैथोलिज्म में इसे पाप माना गया है और यह सात सबसे बड़े पाप में से एक है।
कैथोलिक धर्म के अनुसार यह एक बीमारी है। लालच के लिए अलग अलग लोग अलग अलग परिभाषा देते हैं। यह पूंजीवादी व्यवस्था का आधार है जब यह अपने उच्चतम स्तर पर होती है।
अब लालच की अन्य परिभाषाओं की ओर देखते हैं। पीटर हैमिल्टन कहते हैं कि यह मानवीय मूर्खता का चक्रीय प्रक्रम है।
अपनी किताब द स्टॉक मार्केट बैरोमीटर में पीटर हैमिल्टन लिखते हैं कि यह किसी देश के विकास के लिए बहुत जरुरी है कि उसके नागरिकों में लालच हो। उतार-चढ़ावों से लोगों की जोखिम उठाने की क्षमता बढ़ती है।
कोई देश बिना उतार-चढ़ाव के महान नहीं होता है। ऐसा इसलिये होता है कि कुछ समय के लिए गुणों का संतुलन खत्म हो जाता है और असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाती है।
इसी असंतुलन को खत्म करने के लिए हम कुछ उपाय करते हैं जो हमारे विकास के लिए जिम्मेदार होते हैं। कुछ धार्मिक ग्रंथों में लालच को किसी चीज को पाने की प्रबल इच्छा के रुप में परिभाषित किया जाता है।
यदि हम किसी चीज, धन, स्वास्थय के उच्च स्तर को पाने की इच्छा रखते हैं और यह हमारे अधिकारों से भी ऊपर होता है तो यह लालच कहलाता है। इस प्रकार यह बिल्कुल प्रशंसित बात अचानक एक पाप कैसे बन जाती है?
लोगों को सामान्यत: लालची माना जाता है। अगर लोगों से कमोडिटी की बढ़ती कीमतों और बढ़ती महंगाई केबारे में पूछा जाए तो उनका भावनात्मक उत्तर यही होगा कि यह सब कुछ लोगों के लोभ का परिणाम है।
लालच का मतलब है कि धन का अति आकांक्षी होना। धन को इतना महत्व देना कि उसमें हम खुद को भूल जाएं। लालच एक असंतुलन को जन्म देता है।
मार्टिन पिंग अपनी पुस्तक इनवेस्टमेंट साइकोलॉजी एक्सप्लेंड में कहते हैं कि लोग जब तेजी से धन कमाने की इच्छा रखते हैं तभी लालच का जन्म होता है और यह हमें बबार्दी की ओर ले जाती है।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया केबार्ड एम बार्बर द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार दिन के कारोबारी ज्यादातर अपना दिन हानि के साथ खत्म करते हैं। उनका अध्ययन ताइवान केबाजार पर आधारित है। दिन के कारोबारियों के अलावा कुछ हैवी इनवेस्टर्स भी इनमें शामिल होते हैं। ये बाजार के एक पांचवें भाग का निर्माण करते हैं।
व्यक्तिगत निवेशकों की संख्या को देखा जाए तो यह बाजार का 97 फीसदी होती है। यद्यपि दिन के कारोबार को इस अध्ययन में पूरी तरह से तो निरस्त नहीं किया गया है लेकिन फिर भी सिर्फ दस में से दो निवेशक ही लाभ के साथ अपना दिन का कारोबार खत्म करते हैं और इनमें से कुछ ही होते हैं जो लगातार लाभ कमाना जारी रखते हैं।
इसमें कोई संदेह नही है कि निवेशकों की इच्छा निवेश पर प्राप्त लाभ के साथ बलवती होती जाती है लेकिन फिर भी निवेश करना जोखिम भरा होता है।
कुछ कारोबारी जो लगातार धन बनाते हैं वे नियमित और सोच समझ के निवेश करने पर यकीन करते हैं।
इसके अलावा कुछ अन्य कारण भी हैं जिनसे बाजार में लालच को बढ़ावा मिलता है। लालच गैम्बलिंग की तरह है जो उतार-चढ़ाव से परे नहीं है।
आलोक कुमार के अध्ययन के अनुसार गैम्बलिंग बाजार में बहुत प्रचलित विधा है और इस बात पर भी फोकस किया है कि बाजार में कौन से लोग गैम्बलिंग करते हैं।
पेपर इस तथ्य के साथ खत्म होता है कि गैम्बलिंग सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है। लॉटरी की खरीद और बिक्री में भी ये परिस्थितियां जिम्मेदार होती हैं।
सामान्यत: व्यक्तिगत निवेशक कम कीमत वाले, ज्यादा उतार चढ़ाव वाले शेयर खरीदते हैं जबकि संस्थागत निवेशक ऊंची कीमतों वाले, ज्यादातर स्थिर रहने वाले और कम उतार-चढ़ाव वाले शेयर खरीदते हैं।
किताब में इस बात पर भी फोकस किया गया है कि लोगों के सामाजिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक और धार्मिक हालात से यह भी पता लगाया जा सकता है कि वह निवेश कर सकता है या नहीं।
हमारी लाभ कमाने की एक आधारभूत इच्छा होती है जिसका आर्थिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि से गहरा संबंध होता है। हालांकि कि लॉटरी में पैसे लगाने का ज्यादातर परिणाम नुकसान के रुप में होता है।
मार्टिन पिन कहते हैं कि डर और लालच में वही संबंध होता है जो ऑब्जेक्टिविटी और सब्जेक्टिविटी में है। ये एक दूसरे के विरोधी होते हैं और किसी भी प्रकार इनका एक दूसरे से संबंध नही होता है। एक जमीन है तो एक आसमान।
दोनों एक दूसरे से कभी नहीं मिल सकते हैं। लेकिन लोगों को जब अचानक बाजार के गिरने से कष्ट होता है तो वे अपने लालच के बारे में सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
कभी कभी सामाजिक व्यवहार मे बदलाव से भी लोगों का लालच कम हो जाता है।
(लेखक ग्लोबल अल्टरनेटिव फर्म ओरिफस कैपिटल्स के मुख्य कार्यकारी हैं)