बहुराष्ट्रीय दवा कंपनी ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन फार्मास्युटिकल्स की भारतीय इकाई अपनी कमाई में इजाफा करने के लिए अब नई दवाओं को लॉन्च करने और छोटे शहरों में अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिश में लगी है।
कंपनी ने पिछले साल कैंसर रोधी दवा ‘टाइक्रब’ को बाजार में उतारा था, और इस साल भी वह कई दवाओं को उतरने की कोशिश में लगी हुई है। जीएसके की अपनी कमाई में इजाफा करने की अलग-अलग रणनीतियों के बारे में कंपनी के प्रबंध निदेशक हसित जोशीपुरा से बात की बीएस संवाददाता राम प्रसाद साहू ने। पेश हैं मुख्य अंश :
भारत में कैंसर रोधी दवाओं का क्या भविष्य है? इसके कारोबार से आपने कितनी कमाई का लक्ष्य रखा है?
कैंसर रोधी दवाओं का भारत में बड़ा बाजार मौजूदा है, जिसमें काफी इजाफा भी हो रहा है। मोटे तौर पर इस वक्त भारत में इन दवाओं का 400-450 करोड़ रुपये का बाजार है। हालांकि, ‘टाइक्रब’ इस बाजार में हमारी पहली दवा है, लेकिन हमने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है। हमें इस बाजार से अगले पांच सालों में कम से कम 15 करोड़ रुपये की कमाई की उम्मीद है ही।
आप किन कैटेगरीज पर जोर देंगे?
ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन एक बड़ी कंपनी है। इसीलिए मुझे नहीं लगता कि हमारे लिए किसी खास कैटेगरी पर फोकस करना सही होगा। हमें एक साथ कई सेक्टरों में काम करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए। पारंपरिक तौर पर हमने आम दवाओं के बाजार में अच्छा काम किया है। लेकिन यही काफी नहीं है।
दरअसल, यह बाजार तो बढ़ता ही रहेगा, लेकिन हमें खुद को खास दवाओं के क्षेत्र में भी स्थापित करना चाहिए। जीएसके के स्तर और आकार को देखें तो कैंसर रोधी दवाओं से होने वाली कमाई कोई मायने नहीं रखती, लेकिन यह हमारी लीक से हटके कुछ कर दिखाने की क्षमता को दिखाती है। इससे हमें उन क्षेत्रों में मदद मिलती है, जहां हम अपनी क्षमताओं का विस्तार करना चाहते हैं।
छोटे शहरों में विस्तार के बारे में आपकी क्या योजना है?
दरअसल, हमारा पोर्टफोलियो ही ऐसा है कि हमें छोटे शहरों में मजबूत रहना पड़ेगा। हमारे पास इस वक्त 1,800 मेडिकल रिप्रेजेंटेटिवों की फौज है। अब हम छोटे शहरों अपनी पैठ को और मजबूत करना चाहते हैं, क्योंकि यह हमारे लिए विकास के ईंजन साबित होंगे।
कुल फार्मा बाजार का 40 फीसदी हिस्सा तो इन्हीं छोटे शहरों और गांवों से आता है, लेकिन यहां देश की कुल आबादी का 60 फीसदी से ज्यादा हिस्सा रहता है। जो कंज्यूमर उत्पादों के बाजार में 1980 के दशक में हुआ था, वही मेरे ख्याल से अब फार्मा बाजार के साथ हो रहा है। तब करीब 65 फीसदी आबादी गांवों में रहती थी, लेकिन वहां से कंज्यूमर उत्पादों की कुल मांग का 40 फीसदी हिस्सा ही आता था।
उसके बाद जरा देखिए कि कितनी तेजी से गांवों से कंज्यूमर उत्पादों की मांग में तेजी आई है। आज तो करीब-करीब गांवों में भी कंज्यूमर उत्पादों की उतनी ही मांग है, जितनी शहरों में है। अब फार्मा सेक्टर भी उसी राह पर चल रहा है। इसलिए हमें अपने बिक्री मॉडल को उतना ही मजबूत बनाना पड़ेगा, ताकि इससे फायदा कमा सकें।
एफएमसीजी सेक्टर में मांग, मीडिया के पहुंच पर तय होती है। ठीक उसी तरह फार्मा सेक्टर में गांवों से मांग बढ़ाने के लिए हमें अपने स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाना पड़ेगा। इसीलिए हमारी रणनीति वहां जाकर अपनी पहुंच और कवरेज को बढ़ाने की है। साथ ही, हम वहां कर्मचारियों की तादाद में भी इजाफा करना चाहते हैं।
आपने अगले दो सालों में कौन-कौन से उत्पादों को लॉन्च करने की योजना बनाई है?
इस साल की पहली तिमाही में हमने सेर्वारिस को बाजार में उतारा था। यह सर्वाइकल कैंसर की दवा है। साल की तीसरी तिमाही में हमने माइकाफ्यूजिन नाम की एंटी-फंगस दवा को उतारने की योजना बनाई है। इस दवा का लाइसेंस हमने पिछले साल एस्टेलास से खरीदा था।
अगर सब कुछ ठीक रहा, तो हम इस साल की आखिरी या अगले साल की पहली तिमाही में प्रोमैक्टा नामक दवा को भी लॉन्च कर सकते हैं। यह दवा शरीर में प्लेटलेट्स के उत्पादन में इजाफा करती है।