कोटक सिक्योरिटीज के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी श्रीपाल शाह ने सुंदर सेतुरामन को दिए साक्षात्कार में कहा कि ब्रोकिंग कंपनियों के राजस्व में गिरावट आने की संभावना है और यह नरमी वाकई चिंता का विषय है। उनसे बातचीत के अंश:
नकदी और डेरिवेटिव बाजारों में ऊंचे स्तरों से कारोबार में बड़ी गिरावट आई है। क्या यह दबाव बाजार में कमजोरी या सख्त डेरिवेटिव नियमों की वजह से आया है?
नकदी और डेरिवेटिव बाजारों में कारोबार में गिरावट अलग-अलग कारणों से आई है। नकदी बाजार में मंदी मुख्य रूप से शेयर बाजार में गिरावट के कारण आई है। डेरिवेटिव में गिरावट कम अस्थिरता और नए नियामकीय उपायों से जुड़ी है। जून में ऑप्शन ट्रेडिंग में तेजी आई क्योंकि अस्थिरता, चुनाव नतीजों और अन्य घटनाक्रम ने इसमें योगदान दिया।
नए खाते खुलने की रफ्तार भी सुस्त हो रही है। इससे क्या संकेत मिलता है?
नए खातों में मंदी मौजूदा बाजार धारणा को दर्शाती है। जब बाजार धारणा कमजोर होती है तो किसी भी परिसंपत्ति वर्ग के लिए उत्साह कम हो जाता है। जुलाई के आंकड़ों की तुलना में हम लगभग 50 प्रतिशत नीचे हैं।
पिछले साल के दौरान नियामकीय बदलावों से ब्रोकिंग उद्योग किस तरह से प्रभावित हुआ है?
डेरिवेटिव कारोबार पर अंकुश लगाने और लेबलिंग को ध्यान में रखकर बनाए नए नियमों से ब्रोकरेज राजस्व प्रभावित हुआ है खासकर उन फर्मों पर असर पड़ा है जो डेरिवेटिव पर ज्यादा निर्भर हैं। बड़े ब्रोकरों को ज्यादा दबाव का सामना करना पड़ रहा है और यह उद्योग मूल्य निर्धारण की चुनौतियों से जूझ रहा है। खबरें हैं कि डिस्काउंट ब्रोकर शुल्क बढ़ा रहे हैं, लेकिन कोई भी इसके लिए आगे बढ़ना और अपनी बाजार भागीदारी खोना नहीं चाहेगा।
नियामकीय बदलावों से कोटक पर कितना प्रभाव पड़ा है?
नियमन सभी को प्रभावित करते हैं, लेकिन कोटक कम प्रभावित है क्योंकि डेरिवेटिव हमारे लिए राजस्व का प्रमुख स्रोत नहीं हैं। कुछ डिस्काउंट ब्रोकर अपनी आय के 75-85 प्रतिशत के लिए डेरिवेटिव पर निर्भर करते हैं, इसलिए उन्हें अधिक नुकसान होता है।
ब्रोकिंग उद्योग के लिए वित्त वर्ष 2025 कैसा रहा?
वित्त वर्ष 2025 की पहली छमाही मजबूत रही। लेकिन तीसरी में चुनौतियां सामने आईं। भविष्य में राजस्व कमजोर रहने के आसार हैं। कुछ कंपनियां मुनाफे को ध्यान में रखकर लागत में कटौती कर सकती हैं, लेकिन कुल मिलाकर वित्त वर्ष 2026 आकर्षक नहीं लग रहा है।