केंद्र सरकार उन बैंकों के लिए जुर्माना बढ़ाने पर विचार कर सकती है, जो नियामकीय दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने यह जानकारी दी। उन्होंने यह भी बताया कि सरकार इस सिलसिले में नियामक द्वारा अपनाई जाने वाली प्रणाली की समीक्षा भी कर सकती है, जिसके लिए बैंकिंग विनियमन (बीआर) अधिनियम 1949 और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अधिनियम 1934 में संशोधन किया जाएगा।
अधिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, ‘अभी जुर्माना राशि बहुत कम है। हम इस विषय पर नियामक के साथ चर्चा करेंगे। हम संबंधित प्रावधानों में संशोधन की संभावनाओं पर विचार करने को तैयार हैं।’ मौजूदा व्यवस्था में रिजर्व बैंक बीआर अधिनियम की धारा 46 और 47 ए समेत कई प्रावधान के तहत अर्थदंड या जुर्माना लगा सकता है। नियामकीय दिशानिर्देशों का पालन नहीं करने या उनका उल्लंघन करने पर यह जुर्माना लगाया जा सकता है।
फिलहाल आरबीआई या बीआर अधिनियम के तहत जुर्माना इस बात पर निर्भर करता है कि उल्लंघन कितना बड़ा है। जुर्माने की रकम अपराध की प्रकृति पर निर्भर करती है और 1 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये तक हो सकती है। लगातार उल्लंघन होता रहे तो और भी जुर्माना लगाया जा सकता है। जो व्यक्ति जवाबदेह है, उसे 6 महीने से 5 साल तक कारावास हो सकता है और उल्लंघन की गंभीरता के हिसाब से जुर्माना लगाया जा सकता है। बार-बार उल्लंघन करने पर रोजाना जुर्माना लग सकता है।
रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर गांधी ने कहा, ‘जुर्माना इतना तो होना ही चाहिए कि व्यक्तियों या संस्थाओं का तरीका सुधरे। ऐसा तब होता है, जब जुर्माना बड़ा हो। अगर संस्थान जुर्माना आसानी से भर सकता है तो उसका आचरण नहीं बदलेगा। इसलिए जुर्माने की समय-समय पर समीक्षा होनी चाहिए। कानून कोई एक रकम तय कर देगा तो समय गुजरने पर महंगाई बढ़ने या आय बढ़ने के कारण वह रकम मामूली रह जाएगी। इसलिए समय-समय पर उसे बढ़ाना जरूरी है।’
वित्त मंत्रालय को इस बारे में ईमेल किया गया, जिसका खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं आया।
इकनॉमिक लॉ प्रैक्टिस के वरिष्ठ वकील और बैंकिंग तथा आईबीसी प्रैक्टिस के प्रमुख मुकेश चंद ने कहा, ‘इन जुर्मानों की अक्सर अधिकतम सीमा होती है जो बड़े वित्तीय संस्थानों के लिए बहुत अधिक नहीं होती है। बार-बार उल्लंघन करने या अपराध दोहराने के मामलों में ऐसा खास तौर पर है। बीआर अधिनियम, 1949, आरबीआई अधिनियम, 1934 तथा अन्य कानूनों के तहत तय जुर्माना राशि शायद इतनी ज्यादा नहीं होती कि वह बड़े बैंकों, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों तथा अन्य वित्तीय संस्थानों पर असर डाल सके।’
इसके अलावा विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (फेमा) भी रिजर्व बैंक को यह अधिकार देता है कि वह विदेशी मुद्रा लेनदेन के मामलों में जुर्माना लगा सके। सरफेसी अधिनियम की धारा 30ए और भुगतान और निस्तारण व्यवस्था अधिनियम की धारा 26 भी रिजर्व बैंक को जुर्माना लगाने का अधिकार देती है।
चंद ने कहा, ‘बैंकों के कामकाज का पैमाना और जटिलता बढ़ रही है, जिसके कारण केवल जुर्माना उन्हें कायदे में रखने के लिए काफी नहीं होगा। नियामक को केवल मौद्रिक जुर्माने तक सिमटकर नहीं रहना चाहिए बल्कि अनुपालन प्रणाली और प्रतिष्ठा से जुड़े परिणामों के जरिये व्यवस्थागत दिक्कतों को भी दूर करना चाहिए।’
वित्त वर्ष 2024 में रिजर्व बैंक ने विनियमित संस्थानों के खिलाफ प्रवर्तन की कार्रवाई की और समय-समय पर जारी किए गए प्रावधानों तथा निर्देशों का उल्लंघन होने या अनुपालन न होने पर 281 जुर्माने लगाए, जिनकी कुल रकम 86.1 करोड़ रुपये ही थी।
इकनॉमिक लॉ प्रैक्टिस के वरिष्ठ वकील ने सुझाया कि अन्य बड़े देशों के नियामक वित्तीय जुर्माने पर निर्भरता खत्म कर रहे हैं। वे अधिक सख्त अनुपालन रेटिंग व्यवस्था अपना रहे है और व्यापक जवाबदेही तय कर रहे हैं। वे तकनीक का इस्तेमाल करके आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के जरिये रियल टाइम यानी तत्काल निगरानी कर रहे हैं तथा डेटा एनालिटिक्स की मदद से उल्लंघन का जल्द पता लगा रहे हैं।