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कहीं खुशी कहीं गम

Last Updated- December 07, 2022 | 11:00 AM IST

महज कुछ तिमाही पहले ही भारतीय कार्पोरेट जगत अपने सुनहरे दौर से रूबरू हो रहा था। लेकिन वक्त तेजी से बदल चुका है और भारतीय कंपनियों पर बदहाली की मार पड़ रही है।


ज्यादा समय नहीं बीता जब जबरदस्त मांग और मुनाफे में इजाफे की वजह से बिक्री बढ़ रही थी और भारतीय कंपनियां जमकर चांदी काट रही थीं। लेकिन आज वही बात एक सपना बनकर रह गई है। विस्तार से कहें तो कच्चे तेल और इस्पात समेत तमाम जिंसों की कीमतों में इजाफे और रुपये के कमजोर होने की वजह से कंपनियों के मुनाफे पर तो कैंची चल ही गई है, उनकी लागत में भी लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है।

मांग में कमी होने की वजह से कुछ और क्षेत्रों में भी राजस्व वृद्धि के पहिये की रफ्तार धीमी पड़ने की संभावना है। अहम बात यह है कि लागत में हो रहे इजाफे को उपभोक्ताओं पर डालने में विभिन्न कारणों से (मसलन सरकार ने कंपनियों को दाम बढ़ाने से रोक दिया है) कंपनियों की नाकामी का सीधा मतलब यह है कि उनके ईबीआईडीटीए (ब्याज से पूर्व आय, अवमूल्यन, कर और अमॉर्टाइजेशन) मार्जिन आगे भी कम होते रहेंगे। इसके अतिरिक्त ब्याज दर में लगातार  हो रही बढ़ोतरी का अर्थ है कंपनियों को कर्जों पर  ज्यादा खर्च करना होगा।

दूसरी ओर अन्य स्रोतों से होने वाली आय में बहुत ज्यादा इजाफे का जो दौर कुछ तिमाहियों में देखा गया था, वह भी जारी रहने की संभावना न के बराबर है। चालू तिमाही में रुपये की कीमत 7 फीसद गिर चुकी है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में यह कीमत 6 फीसद बढ़ी थी। इससे वित्तीय आंकड़ों पर गहरा असर पड़ने की उम्मीद है। ये सभी बातें साफ इशारा करती हैं कि भारतीय कॉर्पोरेट जगत को होने वाले मुनाफे में इजाफा पिछली 8-10 तिमाहियों की तुलना में इस बार सबसे कम रहने वाला है।

तमाम अनुमानों के मुताबिक जून 2008 में समाप्त तिमाही में शुद्ध मुनाफे में वृद्धि की दर 9 से 15 फीसद के बीच रहेगी, जबकि मार्च 2008 में समाप्त तिमाही में यह दर लगभग 25 फीसद थी। मंदी की सबसे अधिक मार सीमेंट, ऑटो, विमानन और तेल मार्केटिंग कंपनियों पर पड़ने की आशंका है।

लेकिन सभी क्षेत्रों और  कंपनियों के  लिए मायूसी का ही हाल हो, ऐसा भी नहीं है। कुछ ऐसे क्षेत्र और कंपनियां हैं, जिनसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है। इनमें दूरसंचार (वायरलेस), स्टील (मुख्यत: टाटा स्टील और सेल जैसी एकीकृत कंपनियां ), रिटेलिंग, एफएमसीजी और पूंजीगत वस्तुएं प्रमुख हैं। और जानना चाहते हैं, तो पढ़ते रहिए।

ऑटो

मौजूदा हालात में ऑटो क्षेत्र की हालत एक तो करेला उस पर नीम चढ़ा जैसी हो गई है। एक तरफ लागत में इजाफा हुआ है, वहीं ब्याज दर में बढ़ोतरी होने की वजह से मांग में कमी आई है। इससे वाहन उद्योग पर दोहरी मार पड़ी है। इसके चलते भारी व्यावसायिक वाहनों से लेकर दोपहिया वाहनों के क्षेत्र का भी प्रदर्शन खराब रहा।

हालांकि नए उत्पादों के लाँच होने से यात्री वाहन और हल्के व्यावसायिक वाहनों की अच्छी खासी बिक्री हुई। कंपनियों के लागत घटाने के कार्यक्रम, उत्पादकता उन्नयन के साथ करमुक्त क्षेत्र में उत्पादन इकाई स्थापित करने की रणनीति के कारण लागत को कम करने में मदद मिली है। लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की सख्त मौद्रिक नीतियों के कारण इस क्षेत्र की हालत खस्ता होने के पूरे आसार हैं।

इन नीतियों के कारण ही वाहन ऋणों पर ब्याज की दरों में आधे से एक फीसद तक का इजाफा हुआ है। पिछले एक साल में व्यावसायिक वाहनों की बिक्री में लगभग 20 फीसद का इजाफा हुआ, वहीं व्यावसायिक वाहन और दोपहिया वाहनों की बिक्री में 7.1 और 8.1 फीसद की बढ़ोतरी देखी गई। हालांकि ज्यादातर वाहन कंपनियों के शेयर संभावनाओं से भरे पड़े हैं, लेकिन निवेशकों को ब्याज दरों में  नरमी आने का इंतजार करना चाहिए।

बैंकिंग व वित्तीय सेवाएं

आरबीआई द्वारा रेपो रेट को 0.75 बेसिस प्वाइंट से बढ़ाकर 8.5 फीसद करने और सीआरआर को 1.25 फीसद बढ़ाकर 8.75 फीसद करने से बैंकिंग क्षेत्र की हालत और खराब हो गई है। पूंजी बाजार के दरकने  और बांड की बेरुखी से इस क्षेत्र की हालत और खराब हुई है।

रिजर्व बैंक ने बैंकों को दिए जाने वाली उधार पर ब्याज की दरों को बढ़ा दिया है। बढ़ी ब्याज दरों से ग्राहक टर्म डिपाजिट को चालू या बचत खाते पर तरजीह दे रहा है। इसकी वजह है इन खातों से मिलने वाली ब्याज दर 0 से लेकर 3.5 फीसदी कम है। इससे बैंकों पर दबाव बढ़ा है।

हालांकि बैंकों ने दबाव घटाने के लिए कर्ज की दरों में इजाफा कर दिया है और क्रेडिट ऑफ टेक की स्थिति भी बेहतर है। इन सबके बाद भी पूरी स्थिति अधिक उत्साहवर्धक नहीं है। विश्लेषकों ने गैर निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) के बढ़ने की संभावना जताई है। इसके चलते इनसे निपटने के  लिए उपायों की संख्या भी बढ़ी है। इंडिया इन्फोलाइन के आशुतोष दतार का कहना है कुछ निजी बैंकों को दूसरे मदों से होने वाली आय में वृध्दि कम होने की उम्मीद है।

उन्होंने नए निजी बैंकों के लिए गैर ब्याज आय में पिछले साल के मुकाबले 10 फीसद का इजाफा होने की उम्मीद जताई है। यह वित्तीय वर्ष 2008 की पहली तिमाही में 55 फीसदी ही थी। आशुतोष ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों के पास  एएफएस के तहत नान-एसएलआर बांड पोर्टफोलियो की हिस्सेदारी अधिक है। वे बांड से होने वाली आय के बढ़ने से हुए नुकसान की भरपाई के लिए और उपाय करेंगे। एक ओर जहां बैंकों से परिचालन के स्तर पर सशक्त प्रदर्शन की उम्मीद है, वहीं दूसरे मदों से होने वाली आय में आई कमी और बांड से बढ़ी आय से निपटने के लिए किए जा रहे उपायों से मुनाफे में इजाफे की रफ्तार मंद पडने की उम्मीद है।  

पूंजीगत वस्तु और इंजीनियरिंग

मजबूत ऑर्डर बुक और मांग बनीरहने की वजह से कंपनियों को पिछले सालों में अपने लाभ को आगे बढ़ाने में मदद मिली है। हालांकि बाजार में अब यह शंका है कि यह रुझान बना रहेगा या नहीं। बीएसईएल, एलऐंडटी और कुछ और कंपनियों ने मार्च की तिमाही में लोअर मार्जिन अर्जित किया था और पिछले दो महीनों में उनकी आईआईपी भी काफी कम रही। स्टील की कीमतों में पिछली कुछ तिमाहियों में 50 फीसद से भी ज्यादा का इजाफा हुआ है, ऐसे मं कंपनियों के लिए लाभ  बरकरार रखना मुश्किल है।

कंपनियों को अपने लाभ में आठ से 66 फीसद की कमी देखनी पड़ सकती है लेकिन परेशानी की यह मुख्य वजह नहीं है। अन्य जो कारक है वह है प्रोजेक्ट को समय से पूरा करना और योग्य कर्मचारियों की भर्ती करना। विश्लेषकों का मानना है कि बीएचईएल , एलएंडटी और एबीबी अपने लाभ को बढ़ा सकती हैं। बीएचईएल को क्षमता को बढ़ाने से मदद मिल सकती है जबकि एलएंडटी को पहली तिमाही में जबरदस्त बढ़त मिली थी और इसके राजस्व की बढ़त के 30 फीसदी से ज्यादा रहने की संभावना है।

सूचना तकनीक

रुपये का सात फीसद कमजोर होना इस क्षेत्र के लिए सबसे सकारात्मक पहलू है क्योंकि रुपये के एक फीसद भी कमजोर होने का मतलब है कि इस सेक्टर के परिचालन मुनाफे में आधा फीसद का इजाफा। लिहाजा कम फॉरेक्स हेज वाली कंपनियां मसलन इन्फोसिस, सत्यम के लिए यह सबसे खुशखबरी है क्योंकि रुपये के कमजोर होने का सबसे ज्यादा लाभ इन्ही दो कंपनियों को मिलनेवाला है।

हालांकि ऐसा पूरी तौर पर कह देना भी जल्दबाजी होगा क्योंकि अमेरिकी मंदी अब भी बरकरार है और आईटी कंपनियों का ज्यादा से ज्यादा कारोबार अमेरिका पर निर्भर है। इसका स्पष्ट तौर पर उदाहरण हमें इन्फोसिस के नतीजों से पता चल सकता है कि किस कदर उनकी राजस्व वृद्धि की दर में मंदी आई है।

इसके अलावा कारोबारी मुनाफा भी प्रभावित हो सकता है क्योंकि मालभाड़े और वीजा के शुल्क भी काफी बढ़ गए हैं। इसके अलावा भारतीय आईटी सेक्टर के लिए नकारात्मक संकेत खुदरा, बैंकिंग समेत वित्तीय सेवाओं के ग्राहकों द्वारा खर्च में कमीकरने की बात ला रहे हैं। लिहाजा इस सेक्टर के लिए फिलहाल तो रुपये की कमजोरी का स्तर ही सबसे बड़ी खुशखबरी है।

धातु

कच्चे माल की कमी के कारण पिछले पांच महीनों के दौरान स्टील उत्पादों की कीमतें खासी चढ़ी हैं। सपाट उत्पादों की कीमतों में कुल 31 फीसद का इजाफा हुआ है जबकि लंबे उत्पादों की कीमतों में 50 फीसद से भी ज्यादा का इजाफा हुआ है। हॉट रॉल्ड क्वाइल्स की बात करें, तो घरेलू बाजारों में इसकी कीमतों के चढ़ने के आसार हैं क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनकी कीमतें 1,200 डॉलर हो गई है।

इनके अलावा धातु कारोबार के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि इनकी मांग जबरदस्त है, ऊंची कीमत है और इस पर से निर्यात शुल्क हटा लिया गया है। इसी वजह से स्टील कंपनियां आजकल चांदी काट रही हैं। अलौह धातु वर्ग की बात करें तो इनकी कीमतों में कुल 10 फीसद का इजाफा देखा गया है। खासकर पिछली तिमाही की बात करें तो एल्युमिनियम और तांबे की कीमतों में कुल दस फीसद का इजाफा देखा गया है। लिहाजा इनका कारोबार करने वाली कंपनियां मसलन नाल्को और हिंडाल्को के मुनाफे में इजाफा ही हो सकता है और नतीजतन इन कंपनियों के लिए लागत में इजाफे की भरपाई हो सकती है।

कंस्ट्रक्शन

इस क्षेत्र की कंपनियों के पास पहले से ही कई परियोजनाएं होने के कारण उनके मुनाफे में 25 से 40 फीसद का इजाफा होने की उम्मीद है। लेकिन यह इजाफा बरकरार रहने की उम्मीद कम ही है क्योंकि कमोडिटी की बढ़ती कीमतों, कर्मचारियों पर बढ़ता खर्च समेत तय कीमत सौदों यानी फिक्सड प्राइस कांट्रेक्ट में इजाफे से कंस्ट्रक्शन कंपनियों के लिए मुश्किलें खासी बढ़ी हैं। इसके अलावा नकदी की कमी और शेयर  बाजार में उतार-चढ़ाव से इन कंपनियों के लिए मुश्किलें आन पड़ सकती हैं।

एफएमसीजी

यह सेक्टर भी बढ़ती लागत के दवाब से अछूता नहीं है। खासकर इन उत्पादों को तैयार करने में प्रयुक्त होनेवाली वस्तुएं मसलन गेहूं, दूध, सोडा ऐश की कीमतों में उछाल आने के कारण इस सेक्टर के लिए मुश्किलें ज्यादा हो गई हैं। इसके अलावा मालभाड़े में भी इजाफे के चलते इन कंपनियों के  लिए दुश्वारियां बढ़ गई हैं।

हालांकि इस सेक्टर की कंपनियों के लिए मुफीद बात यह है कि जिस कदर लोगों की आय में इजाफा हुआ है वह इस सेक्टर को बढ़ी हुई लागत कीमतों की मुश्किल से उबार सकता है। ज्यादातर एफएमसीजी कंपनियां उम्मीद कर रही हैं कि उनके मुनाफे में कुल 13 से 25 फीसद का इजाफा दर्ज हो सकता है। जबकि इबीआईडीटीए की बात करें तो इनमें आंशिक गिरावट दर्ज हो सकती है।

ध्यान देने वाली बात है कि लगभग सारी कंपनियों को अपने बॉटमलाइन में  इजाफे की उम्मीद है क्योंकि टैक्स इंसेटिव क्षेत्रों में ज्यादा उत्पादन होने ओर बेहतर ब्याज दर इसके पीछे कारण है। हालांकि विश्लेषकों का इन सबके बीच एक कंपनी(आईटीसी) के बारे में ख्याल है कि इसके लिए हालांकि बात कुछ और हो सकती है क्योंकि एक्साइज डयूटी बढ़ने के कारण पहली तिमाही में नॉन-फि ल्टर सिगरेटों के उत्पादन में खासी गिरावट देखने को मिली है। इसके अलावा नॉन-फिल्टर सिगरेटों के उत्पादन में गिरावट का एक और सबब इस क्षेत्र में नई कंपनियों का नये-नये ब्रांडों के साथ उतरना है जो इसके लिए और ज्यादा प्रतिस्पर्धा पैदा कर रहे हैं।

सीमेंट

इस तिमाही में करीब सभी सीमेंट कंपनियों के बेहतर प्रदर्शन करने के आसार हैं। बढ़ती लागत की वजह से कंपनी की ईबीआईडीटीए मार्जिन के दबाव में रहने की संभावना है और ऊंचे मालभाड़े की वजह से उन्हें अपनी कीमतें बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। हालांकि सीमेंट क्षेत्र में चार बड़ी कंपनियों का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा लेकिन क्षेत्रीय सीमेंट कंपनियों ने बेहतर प्रदर्शन किया।

मद्रास सीमेंट , इंडिया सीमेंट और श्री सीमेंट ने बेहतर प्रदर्शन किया। सीमेंट केनिर्यात पर कुछ समय के लिए लगाए प्रतिबंध का प्रभाव सीमेंट केनिर्यात पर पडा जिससे सेक्टर की बिक्री की मात्रा प्रभावित हुई। विश्लेषकों का मानना है कि कंपनियों की टॉपलाइन में बढ़त होगी लेकिन यह कंपनियों की लागत को कवर करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

कंपनियों पर नजर डाली जाए तो अंबुजा सीमेंट की ईबीआईडीटीए मार्जिन में सबसे ज्यादा गिरावट आने की संभावना है क्योंकि कोयले की कीमतों में तेज बढ़त आई है और कंपनी अपनी जरुरत के ज्यादातर कोयले का आयात करती है। ग्रैसिम के लिए सीमेंट और वीएसएफ दोनों कारोबारों से मिलने वाला दबाव उसके राजस्व को प्रभावित करने वाला होगा। हाल में ही कंपनियों ने अपनी क्षमता मे इजाफा किया है और कुछ कंपनियां अपनी क्षमता में इजाफा करने वाली हैं।

तेल,गैस और पेट्रोकेमिकल्स

तेल की मार्केटिंग करने वाली कंपनियों जैसे एचपीसीएल,बीपीसीएल और इंडियन ऑयल से थोड़ा बेहतर प्रदर्शन की आशा है। सब्सिडी के आवंटन को देखा जाए तो ओएनजीसी को इससे सबसे ज्यादा राहत मिलने की संभावना है क्योंकि कंपनी पर पहले से ही काफी कर्ज है। हालांकि ओएनजीसी विदेश से कंपनी का राजस्व बढ़ना चाहिए और अगर कच्चे तेल में होने वाली किसी भी कमी से कंपनी को लाभ होगा।

गेल के लिए गैस ट्रांसमिशन वॉल्यूम और गैस की  ऊंची कीमतें लाभ देने वाली होंगी। कंपनी की बढ़ी हुई पेट्रोकेमिकल क्षमता से भी उसे पहली तिमाही में अपना लाभ बढ़ाने में मदद मिलेगी। हालांकि अनुमान से ज्यादा सब्सिडी का बोझ कंपनी की टॉपलाइन और बॉटमलाइन बढ़त को प्रभावित कर सकता है। रिलायंस इंड्रस्टीज के लिए कच्चे तेल की ऊंची कीमतें लाभ प्रदान करने वाली होंगी । कुल मिलाकर तेल का विपणन करने वाली कंपनियां अपने ग्रास रिफायनिंग मार्जिन और पोटेंशियल इनवेंटरी ग्रोथ को बरकरार रख सकती हैं।

फार्मास्युटिकल्स

रुपए की कीमत में सात फीसदी गिरावट से ऐसी फार्मा कंपनियों की संख्या बढ़ेगी जिनके राजस्व का बड़ा भाग उनके विदेशी कारोबार से आता है। हालांकि इन कंपनियों के लागत में बढ़ोतरी हो सकती है जिसकी वजह दवाईयों के निर्माण में लगने वाला कच्चा माल है।

गौरतलब है कि भारतीय कंपनियां एक्टिव इंडीग्रेडेंट्स और इंटरमीडियरी के एक बड़े हिस्से का आयात चीन से करती हैं। हाल में ही जापानी कंपनी द्वारा भारतीय कंपनी रेनबैक्सी के अधिग्रहण से अधिग्रहणों का सिलसिला बढ़ेगा। ये अधिग्रहण सिर्फ नवप्रवर्तित कंपनियों के न होकर इजराइल की टेवा जैसी जेनेरिक कंपनियों के भी होंगे। जून की तिमाही में घरेलू बाजार के भी 15 फीसद की गति से बढ़ने के आसार हैं क्योंकि कई कंपनियां लाइफस्टाइल दवाओं की श्रेणी में नए उत्पाद ला रही  हैं।

बिजली

रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर के अलावा इस क्षेत्र की दो अन्य  कंपनियों का प्रदर्शन भी पहली तिमाही के समान रहने केकम ही आसार हैं। हालांकि कंपनियां लागत पर नियंत्रण रख लाभ को बरकरार रखने में सफल रहेंगी जैसा कि टाटा पॉवर ने निवेश और फॉरेक्स गेन की बिक्री से किया। टाटा पॉवर ने वित्त्तीय वर्ष 2008 की पहली तिमाही में इसके जरिये 43 करोड़ रुपये की राशि अर्जित की। इससे कंपनी के शुद्ध लाभ में 21 फीसद की बढ़त दर्ज की गई।

90 मेगावॉट की नई क्षमता अर्जित करने, कोयले की कीमत के लगातार बढ़ने और बूमि कोयला खानों में हिस्सेदारी से कंपनी को ऊंचा संचित लाभ अर्जित होना चाहिए। एनटीपीसी की बॉटमलाइन दबाव में रहने की संभावना है। इसके अतिरिक्त कंपनी को अपने कोयले और गैस आधारित संयंत्रों में कम लोड फैक्टर रहने का अनुमान है। अगर रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर की बात की जाए तो कंपनी की ग्रोथ रेट के ऊंचे रहने की संभावना है क्योंकि विश्लेषकों का मानना है कि कंपनी को अपने ईपीसी कारोबार से ऊंचा टैरिफ और ज्यादा आय प्राप्त होने की संभावना है।

रियल्टी

संपत्ति के दाम में बढ़ोतरी की वजह से मुख्य शहरों में संपत्ति के पंजीकरण में आई गिरावट से रियल्टी कंपनियों की बिक्री कम रहने की संभावना है। परिचालन के क्षेत्र में भी कंपनियों को कठोर प्रावधानों, निर्माण लागत बढ़ने और कमोडिटी की कीमतों में 20 फीसद से भी अधिक की वृद्धि होने की वजह से परियोजना के संचालन में देरी का सामना करना पड़ सकता है।

ब्याज दरों के बढ़ने की वजह से ईएमआई की दर लोगों के लिए भारी पड़ रही है और बैंकों ने भी कठोर प्रावधानों की वजह से इस क्षेत्र से बेरुखी दिखानी शुरू कर दी है। ये हालात अगली तिमाही में भी जारी रहने की संभावना है क्योंकि आपूर्ति तो ऊंची रहेगी लेकिन मांग कम रहने की संभावना है।

हालांकि व्यावसायिक वर्ग पर उतना प्रभाव नहीं पड़ा है लेकिन एनसीआर में डेवलेपर्स के लिए ज्यादा परेशानी आने वाली हैं क्योंकि वहां संपत्ति की कीमतें ऊंचाईयों तक पहुंच गई थी लेकिन अब सबसे ज्यादा गिरावट भी वहीं देखने में आई है। रियल्टी सूचकांक जनवरी की अपनी ऊंचाई के स्तर की तुलना में आधे से भी ज्यादा नीचे गिर चुका है और इसके अगली कुछ तिमाहियों में भी इसी प्रकार का प्रदर्शन करने की संभावना है।

टेलीकॉम

देश में 80 लाख मोबाइल ग्राहक हर माह बढ रहे हैं और यह क्रम वित्तीय वर्ष 2009 की पहली तिमाही में भी बरकरार रहा और 2.5 करोड नए ग्राहक जुडे। देश में मोबाइल धारकों की संख्या 30 करोड़ के आंकडे क़ो पार कर गई है। इन हालातों में सेवा प्रदाता कंपनियों के लिए ग्रोथ के चिंता करने का कोई सवाल नहीं होता है। हां, प्रति ग्राहक आय में गिरावट चिंता का सबब है।

कंपनियों की प्रति मिनट आय में भी कमी आई है। हालांकि पहली तिमाही में इन कंपनियों ईबीआईडीटीए मार्जिन बरकरार रहने की संभावना है। इसकेअलावा उनके शुद्ध लाभ में कुछ फीसद की गिरावट होने की संभावना है। हालांकि 3 जी सेवाओं के आने से और कुछ नए खिलाड़ियों के मैदान में आने से स्थिति सुधर सकती है। बुनियादी ढांचे की बढ़ती हिस्सेदारी की वजह से कंपनियों को लागत में कुछ राहत मिल सकती है।

First Published - July 13, 2008 | 11:05 PM IST

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