एक छोटे किसान कृष्ण सिन्हा ने राज्य की राजधानी रायपुर से कुछ ही किलोमीटर दूर सीमांत क्षेत्र में तीन एकड़ जमीन खरीदी।
छत्तीसगढ़ एक अलग राज्य के रूप में वहां के लोगों के लिए वरदान साबित हो रहा है। सात वर्ष पहले जब यह राज्य मध्य प्रदेश से अलग कर बनाया गया, तब सिन्हा को राज्य की राजधानी से लगभग 10 किलोमीटर दूर साडू गांव में अपनी जमीन के लिए कोई खरीदार नहीं मिलता था।
लेकिन दो महीने पहले, उन्होंने अपनी जमीन एक निजी बिल्डर को रिहायशी कालोनी बनाने के लिए 60 लाख रुपये में बेच दी। लंदन के वेंदात समूह के कैंसर अस्पताल बनाने के साथ ही कई अन्य हाउसिंग परियोजनाएं इन दिनों साडू गांव में और उसके आस-पास चल रही हैं। यहां की जमीन की कीमतों में आई तेजी से किसान आश्चर्यचकित हैं।
अब वे बिल्डरों से अपनी जमीन-जायदाद को बेचने के लिए मोल-भाव भी करने लगे हैं। रियल एस्टेट अर्थव्यवस्था में छत्तीसगढ़ एक अपवाद के रूप में सामने आया है। जहां एक तरफ पूरे देशभर के रियल एस्टेट कारोबार में मंदी दर्ज की जा रही है, वहीं राज्य में रिहायशी और व्यावसायिक संपत्तियों की कीमतें आसमान छू रही हैं। अगर विशेषज्ञों की बात पर विश्वास हो तो, ये कीमतें निकट भविष्य में तो जमीन का मुंह नहीं ताकने वालीं।आर्किटेक्ट आलोक महावर का कहना है, ‘सभी विषमताओं के बावजूद छत्तीसगढ़ में रियल एस्टेट कारोबार में ग्राफ ऊंचा बना रहेगा।’
लेकिन बाजार के हालिया चलन का शुरू की जा चुकी परियोजनाओं पर जरूर कुछ असर पडा है। शहर में प्रस्तावित 10 मॉल परियोजनाओं में से 5 तो पहले ही निर्माण सामग्री की कीमतों में हुई वृध्दि के चलते विलम्बित की जा चुकी हैं। आलोक महावर का कहना है, ‘इस्पात और सीमेंट की कीमतों में मौजूद अस्थिरता की वजह से देरी हो रही है और यह कुछ समय के लिए है, क्योंकि रियल एस्टेट कारोबार में तेजी बनी रहने वाली है।
‘प्रमुख प्रॉपर्टी डीलर, संदीप अग्रवाल के मुताबिक राज्य सरकार की ओर से विद्युत, इस्पात और अन्य क्षेत्रों में निवेशकों को आकर्षित करने के साथ ही रियल एस्टेट कारोबार नई ऊंचाइयों को पा सकेगा। अग्रवाल का कहना है, ‘रायपुर में रियल एस्टेट कारोबार में निवेश 5 हजार करोड़ रुपये के स्तर को पार कर चुका है।’ उनका मानना है कि एक बार जब बड़े कॉर्पोरेट घराने यहां अपने दफ्तर बना लेंगे, तब रियल एस्टेट के कारोबार में और उछाल आएगा।
पिछले चार वर्षों में प्राइम लोकेशनों पर रिहायशी जमीन की कीमतें 400 रुपये से 3 हजार रुपये प्रति वर्गफुट तक पहुंच गई हैं, जबकि व्यावसायिक जमीन की कीमतें 3 हजार से 10 हजार रुपये प्रति वर्गफुट के बीच हैं। अग्रवाल का कहना है कि राज्य से बाहर के प्रमोटर और बिल्डर भी यहां रियल एस्टेट कारोबार में निवेश करने के लिए उत्साहित हैं।
उन्होंने कहा, ‘मंदी का छत्तीसगढ़ के निजी बिल्डरों पर कोई असर दिखाई नहीं देता, हां, इसका सरकार पर जरूर असर पड़ा है, जिसके चलते सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।’राज्य का छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड (सीएचबी) ने निलामी की वर्तमान बोलियों में कॉन्ट्रेक्टरों के गैर-मौजूदगी पर अपनी महत्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए एक बार फिर टेंडर निकाला है।
बोर्ड के चेयरमैन सुभाष राव का कहना है, ‘कॉन्ट्रेक्टरों ने पुरानी दरों पर काम करने से मना कर दिया और बोर्ड को एक बार फिर से परियोजनाओं के लिए टेंडर निकालने पर मजबूर किया है।’ राव का कहना है, ‘जब नई परियोजनाओं में देरी हो रही है, तब वर्तमान परियोजनाएं भी इससे अछूती नहीं बची हैं।
कॉन्ट्रेक्टर ऐसा काम पूरा करने में लगे हुए हैं, जिसमें इस्पात का इस्तेमाल नहीं हो रहा हो।’ नई प्रस्तावित राजधानी में बोर्ड को घरों की कीमतों में बदलाव लाना पड़ा है। फिर भी 50 प्रतिशत घर अभी भी खाली पड़े हैं। महावर ने बताया, ‘राज्य में जमीन के लिए जबर्दस्त मांग है, इसीलिए बिल्डर योजनाओं और प्रलोभन के साथ खरीदार को आकर्षित करने से बच रहे हैं।’
उन्होंने कहा कि सिर्फ अनधिकृत कालोनियों वाले प्रमोटर और बिल्डर इस तरह के उपायों का सहारा अपनी जमीन को बेचने के लिए ले रहे हैं।गरीब तबके के लिए 1.10 लाख रुपये वाले घर की अटल आवास योजना में बोर्ड के अधिकारी खुद को परेशानी में खड़ा महसूस कर रहे हैं। कॉन्ट्रेक्टर इस कीमत में काम करने से मना कर रहे है और बोर्ड गरीब लोगों के लिए बनाए जाने वाले घरों की लागत में बढ़ोतरी नहीं कर सकती और राज्य में अक्तूबर-नवंबर में चुनाव होने वाले हैं।