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कंपनियों के रिटायरमेंट कार्यक्रम से बीमा फर्मों की चांदी

Last Updated- December 07, 2022 | 1:45 AM IST

प्राइवेट कंपनियों में अपने कर्मियों के बीमा,ग्रैच्युटी,रिटायरमेंट प्रोग्रामों को बीमा कंपनियों से अंजाम देने का चलन बढ़ा है। इससे बीमा कंपनियों की आय में खासा इजाफा हो रहा है।


इस चलन की शुरूआत महज दो साल पहले ही हुई थी,और इन दो सालों के भीतर ही अब सेल,निकोलस पीरामल, विशाखापत्तनम पोर्ट भी बीमा कंपनियों से रिटायरमेंट प्रोग्राम पूरा करने का आग्रह कर रहीं हैं।

पिछले साल,पब्लिक सेक्टर की विभिन्न कंपनियों जिनमें बैंक,स्टील,फार्मास्यूटिकल और आईटी समेत अन्य कंपनियों ने इस प्रोग्राम को बीमा कंपनियों को सौंप दिया है। इन बीमा कंपनियों में जीवन बीमा निगम केसाथ ज्यादा डील हुई हैं। सेल सहित अन्य कंपनियों ने अपने ग्रैच्युटी देने का काम एलआईसी, एसबीआई लाइफ, आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी स्टैंडर्ड लाइफ को सौंपा है।

इस बाबत एलआईसी के एक अधिकारी कहते हैं कि इससे पहले तक हम 3,000 करोड़ रुपये की नया बिजनेस प्रीमियम चलाते थे,जबकि अब इस कारोबार से हमारा कुल कारोबार बढ़कर 10,000 करोड़ रुपये से 11,000 करोड़ रुपये का हो गया है। एसबीआई लाइफ के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी यूएस रॉय कहते हैं कि इस प्रोग्राम की शुरूआत पिछले साल अकाउंटिंग स्टैंडर्ड 15 संबंधी दिशा निर्देश लागू होने पर हुई।

इसके तहत कर्मियों की लाइबिलिटीज मसलन बोनस मेडिकल बेनिफिट, ग्रेच्युटी,प्रोविडेंट फंड  सबको पहले साल में ही मुनाफे या घाटे के खाते में डालना जरूरी है। कंपनियां हालांकि, बीमा के अलावा भी अपने कर्मियों को अतिरिक्त बोनस या फिर ज्यादा रिटर्न दे सकती हैं। लेकिन अगर कंपनी इस प्रोग्राम को खुद से ही प्रबंध करती है,तो यह निवेश प्रबंधन निवेश नियम 67 के अनुरूप होना चाहिए।

इस नियम के मुताबिक कर्मियों के 25 फीसदी इम्प्लॉइ फंड को केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों में जमा करना है,जबकि 15 फीसदी रकम राज्य सरकार या फिर केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों के लिए निश्चित की जानी चाहिए । इसके अलावा दूसरे 30 फीसदी हिस्से को बांडों, प्रतिभूतियां या फिर पब्लिक वित्तीय संस्थानों के लिए रखा जा सकता है, या फिर जमा करने के लिहाज से तीन सालों के लिए इसे जमा किया जा सकता है।

इस 30 फीसदी जमा रकम के साथ सकारात्मक पहलू यह है कि इसे किन्हीं भी स्कीमों के तहत जमा किया जा सकता है। इस बाबत आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल के तरुण भगत का कहना है कि अच्छा रिटर्न पाने के लिहाज से कंपनियां बीमा कंपनियों की ओर रूख कर रही हैं, इसका सीधा उदाहरण हमारी सूची में दिन-ब-दिन कंपनियों के नाम में इजाफा होना है।

कंपनियां ऐसा इसलिए कर रही हैं क्योंकि जब वो खुद से ये काम करती हैं तो वो शेयर बाजार की तेजी का फायदा नहीं उठा पातीं। दूसरी तरफ इरडा ने यूलिप फंडों से संबंधित कुछ नियामक तय किए हैं, जिसके तहत यूलिप जैसी स्थितियों में शेयरों में 60 फीसदी से ज्यादा निवेश नही किया जा सकता है,जबकि ज्यादातर ग्रेच्युटी और सुपरएनुएशन योजनाओं के जरिए इक्विटी फंडों में 20 फीसदी का निवेश किया जा सकता है।

हम और अन्य प्राइवेट खिलाड़ी इसे सिस्मेटिक इंवेस्टमेंट प्लांनिंग के जरिए कर रहे हैं। मालूम हो कि शेयरों में निवेश का मतलब अब तक बेहतर रिटर्न से रहा है,जबकि भविष्य निधि में8.5 फीसदी रिटर्न मिलता है। इसी का तकाजा है कि अब क र्मियों की बेहतरी के लिए कंपनियां प्राइवेट और शेयर कारोबार करने वालों के साथ गठजोड़ कर रही हैं।

इस कारोबार में हिस्सेदारी का जहां तक सवाल है तो आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस की दो फीसदी हिस्सेदारी अब 32.5 फीसदी तक पहुंच गई है। इरडा ने इस बाबत कुछ आंकड़े जारी किए हैं और कहा है कि प्राइवेट बीमा कंपनियों ने  प्रीमियम में 52.78 फीसदी का इजाफा हासिल किया है जबकि एलआईसी को इस बाबत 7 फीसदी का घाटा हुआ है।  

First Published - May 26, 2008 | 11:16 PM IST

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