पिछले तीन सालों से लगातार मुनाफा कमाने वाली एसबीआई लाइफ को इस बार झटका लगा है।
वित्त वर्ष 2008-09 में कंपनी को अपने इक्विटी पोर्टफोलियो में 100 करोड रुपये के मार्क-टू-मार्क प्रावधान की वजह से 26 करोड रुपये का घाटा उठाना पडा है। इसके बावजूद एसबीआई लाइफ के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी यू एस राव आने वाले दिनों में कंपनी के लिए बेहतर संभावनाएं देख रहे हैं।
शिल्पी सिन्हा और सिध्दार्थ को दिए गए साक्षात्कार में राव ने कंपनी के प्रदर्शन और विभिन्न मुद्दों पर बात की।
क्या एसबीआई लाइफ को केवल मार्क-टू-मार्केट प्रावधान के कारण ही घाटा हुआ?
बीमा कारोबार को आंकने के परंपरागत तरीके, मसलन आय, खर्च, एक्चुरियल डेरिवेटिव की बात करें तो हमें कोई नुकसान नहीं उठाना पडा है। हालांकि इसके बावजूद महत्वपूर्ण एक्सेप्शनल प्रोवीजन रहे हैं, जो यद्यपि समान्य शर्तों में ही लागू किए जाते हैं, इसके नियामक द्वारा विस्तार से इसके बारे में कुछ कहा जाना बाकी है।
अब जबकि बीमा क्षेत्र में मार्केटिंग -टू-मार्केट के लिए विस्तृत नियामक प्रावधान चालू वित्त वर्ष में अपेक्षित हैं, इसे देखते हुए हमने पहले से ही अपने परंपरागत इक्विटी पोर्टफोलियो में मार्क-टू-मार्केट प्रावधान किया है जो हमारे बेहद परंपरागत अकाउंटिंग विधि के अनुसार हैं।
हमारे यूलिप्स और परंपरागत प्रॉडक्ट पोर्टफोलियो के 60:40 अनुपात को देखते हुए एमटीएम प्रावधान ने हमारी अकाउंटिंग को काफी हद तक प्रभावित किया है। इसके अलावा हमने वित्त वर्ष 2008-09 में अपने वितरण नेटवर्क को मजबूती प्रदान करने के लिए काफी निवेश किया है। मौजूदा वित्त वर्ष में बाजार में कारोबार के शिखर पर पहुंचने की संभावना क म ही है, इसे देखते हुए ताजा एमटीएम घाटे की संभावना कम ही नजर आ रही है।
क्या इस साल भी आप समान रफ्तार से विस्तार की योजना बना रहे हैं?
नहीं, इस साल हमारा ध्यान अपने आप को ज्यादा से ज्यादा मजबूती प्रदान करने पर होगा। बैंकाश्योरेंस की प्राप्ति जहां स्टेट बैंक (एसबीआई) के ग्राहकों से होती है वहीं अन्य योगदान बीमा सलाहकार (आईए) के जरिये आते हैं। खुदरा कारोबार में एजेंट और बैंक से आने वाले कारोबार का अनुपात 60:40 हो होता है।
हमारी यह कोशिश होगी कि इस अनुपात को बदल कर 50:50 किया जाए लेकिन साथ ही इस बात का पूरा ध्यान रखा जाएगा कि आईए के खुदरा विकास की क्षमताओं पर कोई प्रतिकूल असर नहीं हो क्योंकि बैंक की शाखाओं के जरिये होने वाला कारोबार बहुत कम होता है। स्टेट बैंक समूह के 16,000 शाखाओं में से वास्तविक रूप में मात्र 25 फीसदी से भी कम सक्रिय हैं।
अर्थव्यवस्था के विकास की रफ्तार 6 फीसदी रहने की संभावना बताई जा रही है। इसे देखते हुए आपकी योजना अधिक महत्वाकांक्षी नहीं हैं?
हमने उन क्षेत्रों में अपनी क्षमता को विकसित किया है जिन क्षेत्रों में हम बहुत मजबूत नहीं थे। क्षमताओं की असीम संभावनाओं को देखते हुए हम एसबीआई की नई शाखाओं की योजना पर चलते हैं। इसके अलावा हमने पहले जो विस्तार किए थे, उससे लाभान्वित होने का यह सबसे उचित समय है क्योंकि एसबीआई पर लोग बहुत अधिक भरोसा करते हैं।
एसबीआई का ब्रांड काफी मजबूत है जबकि लोग अन्य बैंकों को लेकर कुछ सावधानी बरत सकते हैं। हम न सिर्फ क्षमताओं का काफी बेहतर इस्तेमाल कर सकते हैं, बल्कि लोगों को एक साफ और पारदर्शी बीमा का विकल्प मुहैया करा सकते हैं।
अगर इस साल आपकी विकास दर 50 फीसदी रहती है तो उस स्थिति में आपको पूंजी की भी जरूरत पड़ेगी?
हमारे ऊपर एसबीआई का हाथ है पर हम भी अपने स्तर से धन जुटाने में सक्षम हैं। हम सबसे कम पूंजीकृत कंपनी हैं और चूकता पूंजी 1,000 करोड रुपये है और इससे पहले वित्त वर्ष 2007-08 की चौथी तिमाही में हमने पूंजी जुटाई थी।
हम बड़े स्तर पर परंपरागत कारोबार को अंडरराइट करते हैं, लेकिन इसके बाद भी हमें कोई नुकसान नहीं हुआ है। इस समय हमारा सॉल्वेंसी मार्जिन आवश्यक 1.5 के मुकाबले 2.8 फीसदी है। इस लिहाज से इस समय हमें पूंजी की कोई आवश्यकता नहीं है।
एसबीआई लाइफ कब तक लोगों के बीच जाएगी?
सूचीबध्द कराने में काफी तैयारी की जरूरत पड़ती है और इस लिहाज से काम हो रहा है। मौजूदा हालत को देखते हुए इस समय लोगों के बीच जाने के बारे में निश्चित तौर पर कुछ भी कहना मौजूदा समय के लिहाज से अनुकूल नहीं है।
