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संघवी मूवर्स: बढ़त की रफ्तार के संग

Last Updated- December 07, 2022 | 5:43 AM IST

भारत की सबसे बड़ी क्रेन सेवा प्रदाता कंपनी और 100 टन वाले सेगमेंट में सबसे बेहतर खिलाड़ी के रूप में स्थापित कंपनी संघवी मूवर्स विकास के पथ पर अग्रसर है।


पिछले कुछ सालों के दौरान विभिन्न उद्योगों में जारी निवेश के बलबूते इसके विकास की गति में खासा इजाफा हुआ है। आग लगाती तेल की कीमतें,माल-भाड़े में लगातार होती बढ़ोतरी समेत वैश्विक स्तर पर क्रेन की बढ़ती कीमतों के मद्देनजर कोई भी यह कहेगा कि संघवी मूवर्स के कारोबार पर असर पड़ सकता है।

लेकिन इन सबके बावजूद कंपनी के सीएमडी चंद्रकांत पी.संघवी निश्चिंत हैं। विशाल छाबड़िया और जितेंद्र कुमार गुप्ता के साथ हुई बातचीत के दौरान संघवी आत्मविश्वास से लबरेज और खासे आश्वस्त लग रहे थे। बातचीत के दौरान उन्होनें अर्थव्यवस्था के व्यापक माहौल पर बात की और बताया कि  भविष्य में कंपनी किस प्रकार अपना विकास जारी रखेगी । उनसे बातचीत का ब्यौरा:

इन दिनों सीमेंट,पॉवर एंड स्टील जैसे उद्योगों की उत्पादकता प्रभावित हुई है। इसके पीछे विरोध, कच्चे माल की उपलब्धता और उपकरणों की कमी जैसी वजहें रहीं हैं। इन सबसे क्या आप किसी प्रकार की मंदी महसूस करते हैं?

यह बात सही है कि इस बीच कई योजनाओं में देरी हुई है। स्टील उत्पादन की क्षमता को लेकर ऐलान तो बहुत ज्यादा हुआ है लेकिन काम सिर्फ टाटा स्टील और जिंदल स्टील ने शुरू किया है जबकि कई और दूसरे खिलाड़ी जैसे आर्सेलर मित्तल और पॉस्को का काम अभी शुरू होना है।

लेकिन इस बात को लेकर हमें पूरा भरोसा है कि अगर इनमें से कुछ काम अभी तुरंत शुरू नहीं हुए तो आगामी एक या दो वर्षों मे ये काम करना शुरू कर देंगे। इस बीच हम बात अगर सीमेंट उद्योग की करें तो इसकी उत्पादन क्षमता में और इजाफा होने के आसार हैं और इस बाबत हम कई कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

ऊर्जा क्षेत्र में हमें कैपटिव पावर समेत वायु और ताप ऊर्जा उत्पादन करने वाली कंपनियों से नई पूछताछ मिली हैं। इसके अलावा रिलायंस एनर्जी से हम सासन और कृष्णापट्टनम प्रोजेक्ट के लिए ऑर्डर मिलने की आशा कर रहे हैं।

ये पूछताछ किस तरह की हैं। जैसे कितने बड़े और किस तरह के अवसर हैं?

जहां तक पूछताछ की बात है तो रिलायंस एनर्जी को अकेले 80 से 750 टन की रेंज की 50 तरह की क्रेनों की दरकार पड़ सकती है। लेकिन इस वक्त यह पूछताछ बातचीत के दौर में है। खास बात यह है कि कुछ श्रेणियों में हम अकेले खिलाड़ी हैं। मसलन 750 टन वाली श्रेणी वाले में रिलायंस को कम से कम ऐसी 4 से 6 क्रेनों की जरूरत पड़ेगी। साथ ही हम दिल्ली मेट्रो के संपर्क में हैं और पूछताछ पर नजर रखे हुए हैं।

सकल घरेलू उत्पाद  (जीडीपी) विकास की धीमी होती रफ्तार का कुछ उद्योगों पर क्या और कितना असर पड़ेगा?

जहां तक पवन चक्की,ऊर्जा क्षेत्र और सीमेंट उद्योग का संबंध है तो हम ऐसी किसी प्रकार की मंदी महसूस नहीं कर रहे हैं। साथ ही, इन सेक्टरों में क्रेन विभिन्न उद्योगों और कामों में बड़े स्तर पर व्यवहार में लाए जाते हैं। अगर सीमेंट सेगमेंट में पूरी तरह मंदी छा जाए तो फिर स्टील क्षेत्र से मांग आनी शुरू हो जाएगी। अकेले पावर सेक्टर की बात करें तो यहां बहुत ज्यादा मांग की संभावना है।

ग्यारहवीं योजना में 70,000 और 12 योजना में 80,000 मेगावाट ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। विशेषकर,पावर प्लांट के लिए जितनी मात्रा में क्रेन की दरकार हैं, वह पावर प्लांट की लागत का आधा फीसदी है। इससे बेहतर सूचक और क्या हो सकता है।

लिहाजा, कम से कम अगले तीन सालों तक हम अपने कारोबार में कोई मंदी नहीं देख रहे हैं। हम पिछले चार सालों से 50 फीसदी सालाना विकास दर से बढ़ रहे हैं और अगले तीन साल के भीतर इसके 30 फीसदी दर से बढ़ने की उम्मीद कर है।

क्या आपको लगता है कि ज्यादातर विकासगत कार्य पूंजी खर्च (कैपेक्स ) पर निर्भर है,क्योंकि  मार्जिन बहुत ज्यादा है ही और क्रेन का इस्तेमाल चरम पर है?

आपने बिल्कुल सही फरमाया कि हमारा ज्यादातर कारोबार क्रेन इस्तेमाल से संबंधित है और हमारा विकास भी बहुत हद तक कैपेक्स पर निर्भर है। अगले साल से हमारे राजस्व का 80 फीसदी कैपेक्स से ही आने की ज्यादा संभावना है, जबकि शेष 20 फीसदी मौजूदा परिसंपत्तियों से आएंगे। साथ ही, वित्तीय वर्ष 2009 के लिए हम 250 करोड़ रुपये के कैपेक्स की योजना को अमली जामा पहनाने की सोच रहे हैं।

अगर मांग में इजाफा रहा तो हम योजना के लिए पूंजी बढ़ाकर 350 करोड़ रुपये कर सक ते हैं। पिछले साल हमने 750 टन वाली एक क्रेन को जोड़ा था,जबकि इस साल जनवरी से हम एक और 750 टन वाली क्रेन को जोड़ेंगे। इसके अलावा 400 टन वाली 6 से 7 क्रेन और 250 टन वाली कुल 12 क्रेन जोड़ने की योजना भी हम बना रहे हैं।

लिहाजा,नई क्रेनों के लिए अभी कई योजनाओं पर काम चल रहा है। मौजूदा हालात की बात करें तो इस वक्त हमारे पास कुल 42,540 टन की भार वहन क्षमता वाली क्रेन हैं,जिनमें अगले दो साल के भीतर कु ल 15,000 टन का इजाफा करने का हमारा लक्ष्य है। इन सबके अलावा विकास का एक अहम हिस्सा कीमत है। नए करारों में कीमतों में 10 से 15 प्रतिशत की वृध्दि से भी हमें फायदा मिलेगा और हमारा राजस्व बढ़ेगा। दाम बढ़ने की एक वजह यह भी है कि वैश्विक स्तर पर क्रेनों की कमी है।

कैपेक्स के मद्देनजर क्या आप कुछ इक्विटी बेचने की सोच रहे हैं?

इस साल तो कैपेक्स आंतरिक संसाधनों से यानी 25 प्रतिशत और 75 प्रतिशत कर्ज से पूरा किया जाएगा। लेकिन अगर हमने विदेशी अधिग्रहण किए तो फिर हमें कुछ इक्विटी बेचनी पड़ सकती है। हम ऐसी विदेशी कंपनियों की तलाश में हैं जो 150 से 200 करोड़ रुपए वाली हैं।

हमें पूरा विश्वास है कि हमें विदेशों में ग्राहक मिलने में कोई दिक्कत नहीं होगी। मसलन, अमेरिका में हमारी एक कस्टमर सुजलान कंपनी की सहयोगी आरकन है जो हमसे वहां पवन चक्कियां खुलवाने में हमारी मदद चाहती है।

इस प्रकार देखा जाए तो हमारे लिए विकास के लिए अपार संभावनाएं मौजूद हैं। न केवल घरेलू बल्कि विदेश में भी हम अपने आप को स्थापित करने की कवायद में हैं। देश की बात करें तो रियलटी क्षेत्र में बूम के चलते हमारे लिए माहौल काफी मुफीद है। 

First Published - June 15, 2008 | 11:45 PM IST

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