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रिजर्व बैंक ने बढ़ाई सार्वजनिक परामर्श की भागीदारी, 72 सत्र आयोजित

RBI ने 2021-2024 के दौरान नियामकीय और पर्यवेक्षी क्षेत्रों में 72 सार्वजनिक परामर्श आयोजित किए, जिनमें 2023-24 में ही 40 सत्र शामिल हैं।

Last Updated- June 17, 2024 | 10:07 PM IST
Bank Holiday

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बीते तीन वर्षों में विभिन्न नियामकीय व पर्यवेक्षी डोमेन में 72 सार्वजनिक परामर्श आयोजित किए हैं। आरबीआई की सालाना रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय बैंक ने सार्वजनिक भागीदारी का विस्तार किया है।

आरबीआई के विनियमन विभाग (डीओआर) ने 2023-24 में 21 सार्वजनिक परामर्श आयोजित किए हैं जबकि बीते दो वर्षों में छह और पांच परामर्श आयोजित किए थे। डीओआर को विनियमित इकाइयों के लिए दिशानिर्देश तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई है।

भुगतान और निपटान विभाग (डीपीएसएस) और पर्यवेक्षी विभाग (डीओएस) ने इस वर्ष साझेदारों के साथ परामर्श का विस्तार किया है। नियामक ने बीते कुछ वर्षों में नए व प्रमुख नियामकीय तरीकों, वृद्धिशील बदलाव और हालिया दिशानिर्देशों की व्यापक समीक्षा के लिए सार्वजनिक परामर्श आयोजित किए हैं। इसके जरिये लोगों से फीडबैक प्राप्त किया जाता है। आरबीआई ने 2021 से 2024 के दौरान विभिन्न नियामकीय व पर्यवेक्षीय क्षेत्रों में 72 सार्वजनिक परामर्श आयोजित किए थे और इस क्रम में 15-60 दिनों में फीडबैक मुहैया करवाया जाता है।

आरबीआई की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय बैंक ने वित्त वर्ष 2023-24 में 40 सार्वजनिक परामर्श आयोजित किए हैं। विनियमन समीक्षा प्राधिकरण 2.0 की 2022 की सिफारिशों के अनुसार आरबीआई ने अंतिम रूप देने से पहले सार्वजनिक डोमेन में प्रारूप के दिशानिर्देश पेश किए हैं। इसकी वेबसाइट पर कार्यसूमह की रिपोर्ट, चर्चा पत्र और मसौदा दिशानिर्देश पेश करके सार्वजनिक परामर्श किया जाता है।

इस क्रम में आरबीआई इन हाउस परामर्श भी आयोजित करता है और विस्तृत परामर्श के लिए सलाहकार समितियों का भी गठन करता है। साझेदारों के सवालों का जवाब देने के लिए अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न भी जारी किए जाते हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि नियमित रूप से फीडबैक मिलता रहे। संभावित जोखिमों पर नियमित जागरूकता के लिए 16 नवंबर 2023 को एनबीएफसी के उपभोक्ता उधारी और बैंक उधारी पर नियामकीय उपायों की घोषणा की गई थी।

दरअसल, महामारी के बाद उपभोक्ताओं की उधारी महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ गई थी। यह बैंकों से एनबीएफसी के उधारी लेने की निर्भरता से बढ़ गई थी। लिहाजा इस पर नियामक ने चिंताएं जताई थीं। लिहाजा मजबूत परिसंपत्ति गुणवत्ता और विवेकपूर्ण हस्तक्षेप अनिवार्य हो गया था। इस सहभागी दृष्टिकोण से अनियमताओं, खामियों और साझेदारी की चिंताओं की पहचान करने में मदद करता है और इससे अधिक मजबूत नियम बनते हैं। रिपोर्ट के अनुसार मौद्रिक नीति सहित अन्य मुद्दों पर साझेदारों से नियमित रूप से विचार-विमर्श करने से पारदर्शिता बढ़ती है और समावेशिता बढ़ती है।

First Published - June 17, 2024 | 10:07 PM IST

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