वित्त-बीमा

कॉरपोरेट बैंकिंग में राहत: RBI ने लोन की रकम सीमित करने वाला 2016 का सर्कुलर वापस लिया

इस सर्कुलर का उद्देश्य बैंकिंग तंत्र के किसी एक बड़ी कंपनी को दिए गए कुल ऋण से पैदा होने वाले जोखिम को कम करना था

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अनुप्रेक्षा जैन   
सुब्रत पांडा   
Last Updated- October 01, 2025 | 10:09 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 2016 का वह सर्कुलर वापस ले लिया है, जो बैंकिंग तंत्र को किसी उधार लेने वाले को एक निश्चित सीमा से अधिक ऋण देने से रोकता था। इस सर्कुलर का उद्देश्य बैंकिंग तंत्र के किसी एक बड़ी कंपनी को दिए गए कुल ऋण से पैदा होने वाले जोखिम को कम करना था। हालांकि, बड़े ऋण निवेश फ्रेमवर्क को जारी रखा जाएगा, जो किसी एक उधार लेने वाले या संबंधित उधार लेने वालों के समूह के प्रति व्यक्तिगत बैंकों के ऋण देने की सीमा निर्धारित करता है।

सर्कुलर के अनुसार बैंकिंग व्यवस्था द्वारा किसी लेनदार को दिए जा सकने वाले ऋण की अधिकतम सीमा जो वित्त वर्ष 2018 में 25,000 करोड़ रुपये थी उसे घटाकर वित्त वर्ष 2019 में 15,000 करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2020 में 10,000 करोड़ रुपये कर दिया गया। केंद्रीय बैंक ने एक बयान में कहा, ‘समीक्षा के बाद, विशेष रूप से इन दिशानिर्देशों के आने के बाद से कॉरपोरेट क्षेत्र की बैंक फंडिंग के प्रोफाइल में जो बदलाव आए हैं, उन्हें देखते हुए इन दिशानिर्देशों को वापस लेने का प्रस्ताव किया गया है।’

केंद्रीय बैंक ने कहा, ‘बैंकों के लिए जो बड़ी निवेश सीमा लागू की गई है, उसके कारण निजी तौर पर बैंक के स्तर पर जोखिम नियंत्रित होता है लेकिन पूरे बैंकिंग तंत्र के स्तर पर जोखिम की स्थिति को जब भी खतरा माना जाएगा तब उसे विशेष बड़े आर्थिक स्तर के सुरक्षा उपायों के माध्यम से नियंत्रित किया जाएगा।’

बड़ी निवेश सीमा के अनुसार एक बैंक किसी एकल उधारकर्ता को अपनी कुल पात्र पूंजी आधार (टीयर 1 पूंजी) के 20 प्रतिशत से अधिक ऋण नहीं दे सकता है और यदि वह किसी कॉरपोरेट समूह को ऋण दे रहा है तब इसकी सीमा 25 प्रतिशत है।

आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा के अनुसार, 2016 की यह नीति मुख्य रूप से जोखिम को कम करने और बैंकिंग तंत्र स्तर पर बड़ी कंपनियों को दिए जाने वाले ऋण को सीमित करने से जुड़ी थी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कुल बैंक निवेश में कॉरपोरेट जगत की हिस्सेदारी पिछले कुछ वर्षों में लगभग 10 प्रतिशत कम हुई है, इसीलिए जोखिम कम हो गया है। यही मुख्य कारण है कि आरबीआई ने सर्कुलर को हटाने का प्रस्ताव दिया है।

मल्होत्रा ने कहा, ‘हमें अपने नियमों को तर्कसंगत बनाना जारी रखना होगा ताकि अर्थव्यवस्था की उत्पादक जरूरतें कम से कम अनुपालन बोझ और कम लागत के साथ पूरी हो सकें और साथ ही यह भी सुनिश्चित हो कि जहां विवेकपूर्ण उपाय जरूरी है, वहां कोई समझौता न हो।’ हालांकि, मल्होत्रा ने यह स्पष्ट किया कि इन कदमों को किसी भी तरह की ढील या वित्तीय स्थिरता को नजरअंदाज किए जाने के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘हमारे लिए स्थिरता सबसे अहम है चाहे वह मूल्य स्थिरता हो या वित्तीय स्थिरता। साथ ही, हमें बहुत सावधानी बरतनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि हम अपनी अर्थव्यवस्था के विभिन्न उत्पादक क्षेत्रों की वास्तविक जरूरतों को पूरा करने में किसी भी तरह से विकास में बाधा नहीं डाल रहे हैं या उसे सीमित नहीं कर रहे हैं।’

बैंकरों के अनुसार, 2016 के सर्कुलर को वापस लेने से जमीनी स्तर पर कोई बड़ा असर पड़ने की संभावना कम है, क्योंकि धीमी पूंजीगत खर्च चक्र, फंडिंग के वैकल्पिक स्रोत और अच्छी नकदी आरक्षित निधि जैसे कारकों की वजह से कॉरपोरेट जगत की ओर से ऋण की मांग कम है। एक सरकारी बैंक के वरिष्ठ बैंकर का कहना है कि इस तरह की राहत से कोई बड़ा बदलाव नहीं आएगा और अब भी बैंक कंपनियों को ऋण देने में सतर्कता बरतेंगे हालांकि बुनियादी ढांचा और एमएसएमई के क्षेत्र में ऋण में तेजी आएगी।

हालांकि एसबीआई रिसर्च ने अपने एक नोट में कहा कि इस कदम से आरबीआई कॉरपोरेट बैंक ऋण को बढ़ावा दे सकती है।

First Published : October 1, 2025 | 10:03 PM IST