घरेलू पुन: बीमा में वर्षों तक दबदबा रखने वाली एकमात्र सरकारी कंपनी जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (जीआईसी री) को प्रतिस्पर्धा में इजाफा देखने को मिल रहा है। बीमा नियामक से प्रेम वत्स और कामेश गोयल समर्थित वैल्यूएटिक्स री को मंजूरी मिल रही है। इसी तरह जियो फाइनैंशियल सर्विसिज और अलायंस ग्रुप ने अलायंस के मौजूदा अलायंस री और अलायंस कॉमर्शियल पोर्टफोलियो व भारत में उसकी गतिविधियों का लाभ उठाने के लिए 50:50 की साझेदारी से पुन: बीमा करने के लिए गठजोड़ किया है।
इन बदलावों से जीआईसी री के दबदबे को तत्काल चुनौती मिलने की उम्मीद नहीं हैं। इस सरकारी कंपनी को ऑबलिगेटरी सेशन और वरीयता मिलने का फायदा होगा। ऑबलिगेटरी सेशन के तहत सामान्य बीमा कंपनियों को अपने जोखिम के पोर्टफोलियो का अनिवार्य रूप से जीआईसी री से पुन: बीमा करने की आवश्यकता होती है। इसका अर्थ है कि बीमाकर्ता बीमित राशि या प्रीमियम का खास प्रतिशत जीआईसी री को देना होगा, चाहे उनके पास अन्य पुन: बीमा समझौते हों या नहीं।
बीमा क्षेत्र के सलाहकार ने कहा, ‘हमेशा प्रतिस्पर्धा लाभदायक होती है और घरेलू निजी पुन: बीमाकर्ता की आवश्यकता है। अभी जो दो नई कंपनियां स्थापित होंगी, उनसे जीआईसी री को अपनी मौजूदा स्थिति के कारण तत्काल कोई खतरा पैदा नहीं होगा। हालांकि इन कंपनियों की स्थापना और नियामकीय मंजूरी को भी कुछ समय लग सकता है। हालांकि इस दौरान जीआईसी री के अपने स्थिति नहीं मजबूत करने की स्थिति में इस सरकारी पुन: बीमाकर्ता के लिए चुनौती पैदा हो सकती हैं।’
जीआईसी री के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक (सीएमडी) एन. रामास्वामी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से हाल में हुई बातचीत में निजी पुन: बीमाकर्ताओं के बारे में बातचीत की थी। उन्होंने कहा था, ‘वैल्यूएटिक्स आने वाली है और प्रतिस्पर्धा होगी। हालांकि मेरा विचार है कि बाजार में हरेक के लिए जगह है। हमें अभी तक नहीं मालूम है कि ओबलिटेगरी सेशन हम दोनों के बीच बांटे जाएंगे। आईटीआई री नामक एक कंपनी की पहले स्थापना की गई थी। उस समय मुझे लगता है कि उन्हें बताया गया था कि पहले उन्हें रेटिंग प्राप्त करनी होगी और फिर तीन साल तक बाजार में रहने के बाद ऑबलिगेटरी सेशन के लिए पात्र होगी। उस समय यही नियम था। हमें अभी भी नियामक इरडाई से पता लगाने की आवश्यकता है और इसके लिए बहुत जल्दबाजी है।’